अक्षयवट की छांव में पंडाजी देते सुफल
अश्रि्वन अमावस्या मंगलवार (23 सितंबर) 17 दिवसीय गया श्राद्ध का 16वां दिवस है। इस तिथि को अक्षयवट तीर्थ में श्राद्ध होता है। तिल मिश्रित पिंडदान का यह अंतिम दिवस है। आज महालय पर्व की समाप्ति का दिवस है। स्थानीय (गया) के समय मान के अनुसार दिन में 9/5 बजे अमावस्या तिथि प्रवेश करती है। पिता की मृत्यु तिथि ज्ञान नहीं रहने पर एक दिवसीय श्राद्ध अमावस्या तिथि म
अश्रि्वन अमावस्या मंगलवार (23 सितंबर) 17 दिवसीय गया श्राद्ध का 16वां दिवस है। इस तिथि को अक्षयवट तीर्थ में श्राद्ध होता है। तिल मिश्रित पिंडदान का यह अंतिम दिवस है। आज महालय पर्व की समाप्ति का दिवस है।
स्थानीय (गया) के समय मान के अनुसार दिन में 9/5 बजे अमावस्या तिथि प्रवेश करती है। पिता की मृत्यु तिथि ज्ञान नहीं रहने पर एक दिवसीय श्राद्ध अमावस्या तिथि में ही होता है। माड़नपुर मुहल्ले में अक्षयवट वेदी पर एक वट वृक्ष है जिसका क्षय (नाश) महाप्रलय आने पर भी नहीं होता है। संपूर्ण सृष्टि जलमग्न हो जाती है किंतु यह वृक्ष यथा स्थिति में रहता है। विष्णु भगवान बालक रूप में इस वृक्ष पर शयन करते हैं। ऐसा अक्षयवट वृक्ष अवन्तीपुरी (उज्जयिनी), प्रयाग, वृंदावन एवं जगन्नाथपुरी में भी है। गया का वट वृक्ष इन सबों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसकी छाया में आश्रि्वन अमावस्या को पिंडदान करके 16 वस्तुओं के साथ शय्यादान किया जाता है। यह दान गयापाल ब्राहमण को दिया जाता है।
इसमें अन्न की प्रधानता है। ब्रहमा के मानस से उत्पनन होने से पंडा जी को ब्रहम कल्पित ब्राहमण कहा जाता है। इनके आदेश से ही गया श्रद्ध का प्रथम पिंड आरंभ होता है तथा 16वें दिन अंतिम पिंड प्रदान करने के बाद श्राद्धकर्ता के श्राद्ध की पूर्णता घोषित करते हैं। इसके क्रम में पंडाजी श्रद्धकर्ता की पीठ पर दाहिना हाथ रखकर आशीर्वाद देते हैं। उक्त कार्य वट वृक्ष की छाया में ही होता है। यहां पंडा जी को भोजन कराना करोड़ ब्राहमण को भोजन कराने के समान फलदायक है। वटेश्वर शंकर का दर्शन एवं वृद्ध प्रपितामहेश्वर का दर्शन मुक्तिदायक है।