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क्या आप जानते हैं? यहां भी विराजते हैं काशी विश्वनाथ

भगवान शिव को समर्पित है समुद्रतल से 1160 मीटर की ऊंचाई पर स्थित उत्तरकाशी का प्राचीन विश्वनाथ मंदिर। मान्यता है कि कलयुग की शुरुआत में भगवान काशी विश्वनाथ ने हिमालय का रुख किया। यहां वरुणावत पर्वत के नीचे असी वरुणा व भागीरथी नदी के मध्य उन्होंने खुद को स्थापित कर लिया। इसलिए इसे कलयुग की काशी भी कहा जाता है। विश्वनाथ मंदिर के

By Edited By: Published: Wed, 23 Apr 2014 12:34 PM (IST)Updated: Wed, 23 Apr 2014 12:41 PM (IST)
क्या आप जानते हैं? यहां भी विराजते हैं काशी विश्वनाथ

भगवान शिव को समर्पित है समुद्रतल से 1160 मीटर की ऊंचाई पर स्थित उत्तरकाशी का प्राचीन विश्वनाथ मंदिर। मान्यता है कि कलयुग की शुरुआत में भगवान काशी विश्वनाथ ने हिमालय का रुख किया। यहां वरुणावत पर्वत के नीचे असी वरुणा व भागीरथी नदी के मध्य उन्होंने खुद को स्थापित कर लिया। इसलिए इसे कलयुग की काशी भी कहा जाता है।

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विश्वनाथ मंदिर के कारण ही बाड़ाहाट नगर को उत्तर का काशी यानी उत्तरकाशी कहा जाता है। यहां भगवान शिव का स्वयंभू शिवलिंग मौजूद है। महारानी कांति ने 1857 ईस्वी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उससे पहले यह एक पूजा स्थल के रूप में मौजूद था। महारानी कांति टिहरी नरेश महाराज सुदर्शन शाह की पत्‍‌नी थीं। मंदिर कत्यूर शिखर शैली में निर्मित है और इसका वास्तुशिल्प दर्शनीय है। उत्तरकाशी आने वाले पर्यटक इस मंदिर को देखने जरूर आते हैं।

भगवान शिव को समर्पित है समुद्रतल से 1160 मीटर की ऊंचाई पर स्थित उत्तरकाशी का प्राचीन विश्वनाथ मंदिर। मान्यता है कि कलयुग की शुरुआत में भगवान काशी विश्वनाथ ने हिमालय का रुख किया। यहां वरुणावत पर्वत के नीचे असी वरुणा व भागीरथी नदी के मध्य उन्होंने खुद को स्थापित कर लिया। इसलिए इसे कलयुग की काशी भी कहा जाता है। विश्वनाथ मंदिर के कारण ही बाड़ाहाट नगर को उत्तर का काशी यानी उत्तरकाशी कहा जाता है। यहां भगवान शिव का स्वयंभू शिवलिंग मौजूद है। महारानी कांति ने 1857 ईस्वी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उससे पहले यह एक पूजा स्थल के रूप में मौजूद था। महारानी कांति टिहरी नरेश महाराज सुदर्शन शाह की पत्‍‌नी थीं।

मंदिर कत्यूर शिखर शैली में निर्मित है और इसका वास्तुशिल्प दर्शनीय है। उत्तरकाशी आने वाले पर्यटक इस मंदिर को देखने जरूर आते हैं।

विशेष आयोजन- हर वर्ष महाशिवरात्रि पर्व पर मंदिर में जलाभिषेक के लिए हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसके लिए मंदिर समिति की ओर से शंख ध्वनि प्रतियोगिता, भजन संध्या व अन्य धार्मिक आयोजन किए जाते हैं।

कैसे पहुंचें -ऋषिकेश से सड़क मार्ग से 154 किमी की दूरी तय कर उत्तरकाशी पहुंचा जा सकता है। यहां बस अड्डे से पैदल दूरी पर विश्वनाथ मंदिर है।

पहनावा- मई से अक्टूबर तक गर्मियों में पहने जाने वाले सामान्य वस्त्र। नवंबर से अप्रैल तक गर्म कपड़े।

यात्री सुविधा- उत्तरकाशी नगर में बाबा काली कमली, दंडी क्षेत्र व पंजाब-सिंध क्षेत्र की धर्मशालाओं के साथ ही विभिन्न होटल व विश्रमगृह उपलब्ध हैं।

कपाट खुलने का समय- मंदिर सालभर श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है। दर्शन-पूजा का समय सुबह पांच से रात नौ बजे तक है।

मौसम- मई से अक्टूबर तक हल्का गर्म, लेकिन मनोरम, नवंबर से मार्च तक आसपास हिमपात के कारण सर्द मौसम।


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