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भालसुमर में होती है शेरावाली की पूजा

झारखंड के दुमका जिले के रामगढ़ प्रखंड मुख्यालय से सात किमी दूर रामगढ़-हंसडीहा मुख्य मार्ग पर स्थित भालसुमर दुर्गा मंदिर का इतिहास तकरीबन 200 वर्ष पुराना है। ग्रामीणों के मुताबिक जमींदार बानसिंह मांझी द्वारा यहां पूजा की शुरुआत की गई थी।

By Edited By: Published: Fri, 26 Oct 2012 02:42 PM (IST)Updated: Fri, 26 Oct 2012 02:42 PM (IST)

रामगढ़ [दुमका]। झारखंड के दुमका जिले के रामगढ़ प्रखंड मुख्यालय से सात किमी दूर रामगढ़-हंसडीहा मुख्य मार्ग पर स्थित भालसुमर दुर्गा मंदिर का इतिहास तकरीबन 200 वर्ष पुराना है। ग्रामीणों के मुताबिक जमींदार बानसिंह मांझी द्वारा यहां पूजा की शुरुआत की गई थी।

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जानकार बताते हैं कि यहां मंदिर स्थापना को लेकर लगवा स्टेट के राजा तथा जमींदार के बीच भागलपुर आयुक्त के न्यायालय में मुकदमा चला था। लगवा स्टेट के राजा मंदिर की स्थापना अपने यहां कराना चाहते थे लेकिन कोर्ट ने बानसिंह मांझी के पक्ष में फैसला दिया। इसके बाद यहां एक झोपड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई। बाद में चंदा एकत्र कर यहां विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया। बानसिंह की मृत्यु के पश्चात भालसुमर तथा डेलीपाथर में रह रहे उनके वंशजों के बीच मंदिर में पूजा-अर्चना को लेकर विवाद उत्पन्न होने लगा। भालसुमर व डेलीपाथर के ग्रामीण मंदिर में प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना करने को लेकर अड़ गए। बात प्रशासन तक पहुंची और इस विवाद को हल करने का प्रयास किया गया लेकिन कोई नतीजा निकलता न देख आम सहमति से डेलीपाथर के ग्रामीणों द्वारा निर्मित प्रतिमा मंदिर के अंदर तथा भालसुमर द्वारा निर्मित प्रतिमा बरामदे में रखकर पूजा-अर्चना की जाने लगी जो आज भी कायम है। ग्रामीणों के अनुसार माता के दरबार में जो भी भक्त सच्चे दिल से कुछ मांगता है उसकी मुराद पूरी होती है। दुर्गा पूजा के दौरान यहां सप्तमी को कलश स्थापित की जाती है। अष्टमी की रात्रि से ही यहां हजारों की संख्या में पाठा की बलि दी जाती है। पाठा के सिर को बेचने के लिए अंचलाधिकारी द्वारा पूर्व में ही इसकी नीलामी कर दी जाती है तथा एकमुश्त राशि ले ली जाती है। प्राप्त राशि से मंदिर का विकास किया जाता है। दुर्गा पूजा के दौरान प्रत्येक वर्ष बिहार तथा पश्चिम बंगाल से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। ऐसे तो यहां पर प्रत्येक मंगलवार को माता का दरबार सजता है लेकिन दुर्गा पूजा के दौरान पूजा-अर्चना कुछ खास ही महत्व रखता है। हालांकि मंदिर तक पहुंचने में श्रद्धालुओं को थोड़ा कष्ट उठाना होगा क्योंकि तीन वर्ष बाद भी आज तक सड़क निर्माण का कार्य को पूर्ण नहीं किया गया है।

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