पितरों के लिए गया
झारखंड और बिहार की सीमा और गंगा की सहायक नदी फल्गु के तट पर बसा गया बिहार का दूसरा बड़ा शहर है। पितृपक्ष के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालु पिंडदान के लिए जुटते हैं।
झारखंड और बिहार की सीमा और गंगा की सहायक नदी फल्गु के तट पर बसा गया बिहार का दूसरा बड़ा शहर है। पितृपक्ष के अवसर पर यहां लाखों श्रद्धालु पिंडदान के लिए जुटते हैं। मान्यता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृत व्यक्ति को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में गया में पिंड शांति की कामना करने वालों की भारी भीड़ जुटती है। इन दिनों यहां पितृपक्ष मेला लगता है। कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों की 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची हैं। इन वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना श्रेष्ठ माना जाता है। इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख हैं। विष्णुपद मंदिर पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है। दंतकथाओं के अनुसार, विष्णु के पांव के निशान पर इस मंदिर का निर्माण हुआ है। इसीलिए गया को विष्णु की नगरी भी कहा जाता है। गया से 17 किलोमीटर की दूरी पर बोधगया स्थित है, जो बौद्ध तीर्थ स्थल है और यहीं बोधिवृक्ष के नीचे बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
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