Move to Jagran APP

गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक एकलव्य मंदिर

गुड़गांव के पास बसे गांव खांडसा में स्थित एकलव्य मंदिर गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है। एकलव्य के वंशज समय-समय पर यहां आते हैं और दो-तीन दिन ठहरकर पूजा-अर्चना करके लौट जाते हैं।

By Edited By: Published: Tue, 12 Jun 2012 05:33 PM (IST)Updated: Tue, 12 Jun 2012 05:33 PM (IST)

हरियाणा की पहचान जहां हरि के प्रदेश के रूप में है, वहीं इसे धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में कौरवों एवं पांडवों के मध्य हुए महाभारत के युद्ध के लिए भी जाना जाता है। महाभारत के युद्ध में सभी योद्धाओं ने अपना योगदान दिया और असंख्य वीरगति को प्राप्त हुए। गुरु द्रोणाचार्य भी उन महान योद्धाओं में शुमार थे। गुरु द्रोणाचार्य ने ही पांडवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी थी। हरियाणा के प्रसिद्ध शहर गुड़गांव को शुरू से ही गुरु द्रोण की नगरी कहा जाता है। पहले इसे गुरुग्राम कहा जाता था जो बाद में अपभ्रंश होकर गुड़गांव हो गया।

loksabha election banner

विभिन्न धार्मिक पुस्तकों में वर्णित है कि गुरु द्रोणाचार्य ने पांडु पुत्र अर्जुन को उस समय दुनिया का श्रेष्ठ धनुर्धर बनाने की शपथ खाई थी। अर्जुन उनका प्रिय शिष्य था। गुरु द्रोण और अर्जुन की जब बात चलती है तो एक और श्रेष्ठ धनुर्धर का जिक्र हुए बिना नहीं रहता है जिसका नाम एकलव्य था। गुरुग्राम के पास ही खांडव वन था। इसे खांडव प्रदेश भी कहा जाता था। एकलव्य इस खांडव प्रदेश के निषाद राजा हिरण्यधानु का पुत्र था।

एक दिन एकलव्य भी गुरु द्रोणाचार्य के पास धनुर्विद्या सीखने गया था किंतु गुरु द्रोणाचार्य ने यह कहकर एकलव्य को धनुर्विद्या का ज्ञान देने से मना कर दिया कि धनुर्विद्या राजकुमारों को ही सिखाई जाती है। एकलव्य फिर भी निराश नहीं हुआ। उसने गुरु द्रोणाचार्य को ही अपना इष्ट गुरु मान लिया और धनुर्विद्या सीखने का स्वयं ही प्रयास करने लगा। एक दिन पांडव राजकुमारों का कुत्ता भटककर एकलव्य के आश्रम के पास जा पहुंचा और वहां जाकर भौंकने लगा। धनुष-बाण चलाने में लीन एकलव्य का ध्यान उसके भौंकने के स्वर से भटका तो एकलव्य ने क्रोधित होकर कुत्ते का मुंह बाणों से भर दिया। एकलव्य के कौशल से प्रभावित गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से पूछा कि तुम्हारा गुरु कौन है। एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य को उनकी मूर्ति के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया और बोला कि मेरे तो आप ही गुरु हैं। इस पर गुरु द्रोणाचार्य ने कहा कि यदि मैं तुम्हारा गुरु हूं तो मुझे गुरुदक्षिणा में अपने दाहिने हाथ का अंगूठा दे दो। एकलव्य ने हंसते-हंसते अपना अंगूठा अपने इष्ट गुरु को अर्पित कर दिया। ऐसे गुरुभक्त एकलव्य का मंदिर गुड़गांव के पास बसे गांव खांडसा में स्थित है।

गांव खांडसा में राजकीय विद्यालय के पीछे यह छोटा सा मंदिर गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक बना हुआ है। इस मंदिर की लगभग दो एकड़ खाली जगह को खेल के मैदान के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। गांव खांडसा के निवासी राधेश्याम का कहना है कि पहले यहां छोटी सी कुटिया थी। कुछ समय पूर्व ही गांव की पंचायत ने इसे मंदिर का रूप दिया है। एकलव्य के वंशज समय-समय पर यहां आते हैं और यहां दो-तीन दिन तक पूजा-अर्चना करके लौट जाते हैं। इस मंदिर को भव्य रूप प्रदान किया जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढि़यां गुरु-शिष्य परंपरा के प्रतीक इस मंदिर से प्रेरणा ले सकें।

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.