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दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके...

भारतीय परिवारों में शादी दो दिलों ही नहीं, दो परिवारों का भी मिलन है। कई बार तो एक शादी में ही कई भावी शादियों की संभावनाएं तैयार हो जाती हैं। मंडप के नीचे नई प्रेम कहानियां शुरू होती हैं। ऐसी कहानियों से भरे कुछ दिलचस्प नज़्ाारे पाठकों के लिए।

By Edited By: Published: Tue, 25 Nov 2014 12:22 AM (IST)Updated: Tue, 25 Nov 2014 12:22 AM (IST)

कहते हैं जोडिय़ां स्वर्ग में बनती हैं। मगर भारतीय शादियों की बात ही निराली है। यहां 'एक के साथ एक फ्री का पैकेज मिलना बडी बात नहीं। अकसर एक मंडप में कई शादियां तय होती हैं, कई प्रेम कहानियां शुरू होती हैं तो कुछ परवान चढती हैं। कुछ दिलजले िकस्से आम होते हैं तो कुछ दिलफेेंक रोमियो भी लडकियों के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। ऐसी शादियों में कइयों को तो बरसों पुरानी प्रेमिकाएं भी नज्ार आ जाती हैं और फिर तो दिल-जिगर सब लहूलुहान होने लगता है। इन प्रेमियों में से कुछ को मंज्िाल मिलती है तो कुछ सफर में तनहा रह जाते हैं। भारतीय शादियों में ऐसे नज्ाारे बडे आम हैं। ज्ारा ग्ाौर फरमाएं इन पर।

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दीदी तेरा देवर दीवाना

दूल्हे का छोटा भाई और दुलहन की छोटी बहन हो तो िकस्मत कनेक्शन बनता ही है। भाई के दिल में कुछ-कुछ होने लगता है तो दुलहन की बहन शरमाती हुई मन ही मन ख्ाुद को 'हम आपके हैं कौन की माधुरी दीक्षित समझने लगती है। जूते छिपाने के बहाने चुहलबाज्िायां होती हैं, छेडछाड होती है। हंसी-मज्ााक, मज्ोदार खेल और अंत्याक्षरियों के बहाने दिल की बातें कही-सुनी जाती हैं। ज्ारूरी नहीं कि दीदी के देवर से आगे भी मेल-मुलाकातों का सिलसिला चले, मगर शादी में मिले चंद पल उम्र भर के लिए कुछ हसीन यादें तो छोड ही जाते हैं।

मम्मी ने चाय पर बुलाया है...

'देखो लडकियों, शादी में चटर-पटर मत बोलना, हर वक्त मोबाइल पर गेम मत खेलती रहना। पार्लर जाकर अच्छी तरह तैयार हो जाओ, अपनी ड्रेस संभाल कर रखना...., सभी विवाह-योग्य लडकियों को मांओं से हिदायतें मिलने लगती हैं। परिवार में एक लडकी की शादी हो तो चाचियों, बुआ, फूफियों, ताइयों की ख्वाहिशें उबाल मारने लगती हैं। आख्िार सबकी बेटियां जो हैं। कौन जाने इस शादी के बहाने अपनी बेटी का रिश्ता तय हो जाए! लडकियों के लिए यह अजब परीक्षा की घडी होती है। ज्ाोर से बोलने, हंसने, मोबाइल पर ज्य़ादा बात करने या घूम-घूम कर खाते रहने के लिए नंबर तो कटने ही हैं। सुयोग्य संभावित वरों से थोडी दूरी बना कर रहना भी ज्ारूरी होता है। मॉडर्न कन्याओं को सुशील, गंभीर, मृदुभाषी व शर्मीली बनना पडता है। आख्िार भावी दूल्हों के माता-पिता पर भी तो इंप्रैशन जमाना है। इस टेस्ट में पास हो जाएं तो जल्दी ही वह मुकाम आ जाता है, जहां भावी वर को वधू की मां की तरफ से चाय का न्यौता मिल जाता है।

ऐ मेरी ज्ाोहरा जबीं

शादियों में कुछ पुराने फिल्मी हीरो टाइप आशिक भी ख्ाूब नज्ार आते हैं। मेहंदी से लाल हुए बाल, बढी हुई तोंद पर टाइट बेल्ट से अटकाई गई पैंट, चेहरे पर उम्र की झलक, मगर आंखों में वही पुरानी शरारत जो बरसों पहले प्रेमिका को देख कर आया करती थी। घर-परिवार या मोहल्लों की ऐसी शादियों में अक्सर पूर्व प्रेमिकाएं टकरा जाया करती हैं। दो-तीन गदबद बच्चे लिए ज्ोवरों से लदी-फदी और भारी साडी को किसी तरह संभालती इस प्रेमिका पर ज्यों ही नज्ार पडती है, समय मानो ठहर सा जाता है, आशिक महोदय के दिल में लहर उठने लगती है। पल भर के लिए दोनों ठिठक जाते हैं, आसपास के सारे दृश्य स्टेच्यू हो जाते हैं और फिल्म फ्लैश बैक में चलने लगती है। अपने वक्त के ये शाहजहां भरी-पूरी मुमताज को देख कर 'ऐ मेरी ज्ाोहरा जबीं... वाला गाना गुनगुनाने को होते हैं कि तभी प्रेमिका का बच्चा रोते हुए नमूदार हो जाता है, 'मम्मी-मम्मी देखो भैया मुझे चिढा रहे हैं, मुझे चॉकलेट नहीं दे रहे! एकाएक इश्क का सुनहरा भूतकाल कठोर वर्तमान में बदल जाता है। प्रेमिका को याद आता है कि वह दो बच्चों की अम्मा है। उधर शाहजहां भी कांपती हुई हथेलियों को मलते रह जाते हैं। शादी भर उनकी शरारती आंखें प्रेमिका को तलाशती रहती हैं। मुमताज भी कोई कम तो नहीं। किसी न किसी बहाने सामने आती रहती है या छुप-छुप कर नज्ाारा लेती रहती है अपने शाहजहां का। शाहजहां अपने कैमरे की नज्ार से दीदार करते हैं और दो-चार आडी-तिरछी तसवीरें खींच ही लेते हैं अपनी मुमताज की।

आंखों ही आंखों में 'तुमने कुछ कहा क्या?

'नहीं तो, तुमने कुछ सुना क्या?

जी हां-कई जोडे ऐसे होते हैं, जो पूरी शादी में एक-दूसरे के आसपास मंडराते हैं, आंखों ही आंखों में इशारे करते हैं, कई वादे कर लेते हैं और कई शिकायतें भी। आंखों ही आंखों में सात जन्मों की कसमें खा बैठते हैं, मगर मुंह से बोल नहीं फूटते। दिल की बात ज्ाुबां तक आते-आते इतनी देर हो जाती है कि शादी बीत जाती है और सब अपने-अपने घर लौट जाते हैं। ऐसी शर्मीली प्रजाति लडकियों ही नहीं, लडकों की भी होती है। इनकी प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही ख्ात्म हो जाती है। घर लौटने के बाद कई दिन तक गमज्ादा रहते हैं, प्रियतम की यादों में ठंडी आहें भरते हैं, बार-बार उसका चेहरा याद करते हैं, रातों को जागते हैं और इनके दिल के अरमां आंसुओं में बहने लगते हैं। ख्ाुद को कोसते हैं कि कम से कम नाम पूछ लेते या फोन नंबर ही एक्सचेंज कर लेते! यह स्थिति तब तक बनी रहती है, जब तक कि किसी दूसरी शादी का निमंत्रण-पत्र हाथ में नहीं आ जाता।

इज्ाहारे हाल कर बैठे

पुरानी हिंदी फिल्मों में कई बार ऐसा दृश्य नज्ार आता था, जिसमें एक शादी के दौरान ही दुस्साहसी हीरो सबके सामने हीरोइन को प्रपोज्ा करता या उसकी मांग में सिंदूर भर देता। इसके बाद तो जैसे मंडप में भूचाल आ जाता। सारे लोग प्रेमी जोडे की जान के दुश्मन बन जाते। प्रेमी-प्रेमिका वहां से जान बचा कर रफूचक्कर हो जाते। भारत में रीअल शादियां भी फिल्मी शादियों से बहुत प्रेरित हैं। वास्तविक जीवन में भी कई बार ऐसे दुस्साहसी प्रेमी मिल जाते हैं, जो ज्ामाने भर की रुसवाई झेल कर अपने सनम को हमसफर बना लेते हैं। प्रेमी-प्रेमिका को दुस्साहसी बनाने में उनके दोस्तों की अच्छी-ख्ाासी भूमिका रहती है। यही दुश्मन दोस्त शोले भडकाते हैं और जब आग लग जाती है तो चुपचाप खिसक लेते हैं। ये दुस्साहसी प्रेमी-प्रेमिका बाद में पछताते हैं। काश हम ऐसे न होते! प्यार की इस मजनूंगीरी का बुख्ाार जल्दी ही उतर जाता है और आटे-दाल-सब्ज्ाी का भाव याद आने लगता है। जैसे ही प्रेमी पति की भूमिका में उतरता है और प्रेमिका पत्नी बनती है, प्रेम कहीं मुंह छिपा कर बैठ जाता है....।

कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना

बेग्ाानी शादी में कई अब्दुल्ला दीवाने होते हैं। मालूम नहीं होता कि ये लडके वालों की तरफ के हैं या लडकी वालों की तरफ के। मगर ये अपने दिल को हथेली में लिए घूमते हैं। लडकी दिखी नहीं कि दिलोजान से हाज्िार। एक ने इनकी तरफ नहीं देखा तो तुरंत दूसरी की ओर बढ जाते हैं। इनका सीधा सा फंडा होता है, तू नहीं तो और सही और नहीं तो और सही...। जिस ओर भी लडकियों की भीड हो, ये कोल्ड ड्रिंक्स या स्नैक्स की ट्रे लेकर घूमने लगते हैं। हद तो तब हो जाती है, जब ये दिलफेेंक लडकियों की मांओं से भी फ्लर्ट करने लगते हैं। एकसाथ दो लडकियों से फ्लर्ट करना भी इन्हें ख्ाूब आता है। बडी बहन पर इश्क के तीर छोडते हैं और निशाना बनती है छोटी बहन। कुछ लडकियां तो इनकी चाल में फंसते-फंसते रह जाती हैं। कुछ को असलियत पता चलती है तो चप्पलों-जूतियों से पिटाई भी कर देती हैं इनकी।

इंदिरा राठौर

इलस्ट्रेशंस : श्याम जगोता


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