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मामूली नहीं है यह मर्ज

पैरों पर पडऩे वाले काले निशान को अकसर लोग त्वचा संबंधी मामूली समस्या समझकर नज़रअंदाज कर देते हैं, पर ऐसा करना उचित नहीं है। यह वेन्स संबंधी गंभीर समस्या भी हो सकती है। इसे क्रॉनिक वेनस इन्सफीसियंसी या सीवीआइ कहा जाता है। क्यों होती है यह समस्या और इससे कैसे

By Edited By: Published: Tue, 03 Mar 2015 10:55 AM (IST)Updated: Tue, 03 Mar 2015 10:55 AM (IST)
मामूली नहीं है यह मर्ज

पैरों पर पडऩे वाले काले निशान को अकसर लोग त्वचा संबंधी मामूली समस्या समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, पर ऐसा करना उचित नहीं है। यह वेन्स संबंधी गंभीर समस्या भी हो सकती है। इसे क्रॉनिक वेनस इन्सफीसियंसी या सीवीआइ कहा जाता है। क्यों होती है यह समस्या और इससे कैसे बचाव किया जाए। बता रहे हैं, इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल दिल्ली के वरिष्ठ कार्डियो थोरेसिक व वैस्कुलर सर्जन डॉ. के. के. पाण्डेय।

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अगर आपके पैरों के निचले हिस्से पर काले रंग के चकत्तेदार निशान हैं, पैरों की त्वचा का रंग बाकी शरीर की त्वचा के रंग से ज्य़ादा गहरा है, आपको एक घंटे से ज्य़ादा देर तक खडे रहने में परेशानी होती है, चलने से पैरों में सूजन आ जाती है, थोडा चलने के बाद खिंचाव या बहुत ज्य़ादा थकान महसूस होती है तो ऐसे निशान को अनदेखा न करें, क्योंकि यह वेन्स से जुडी गंभीर समस्या हो सकती है। जिसे मेडिकल भाषा में क्रोनिक वेनस इन्सफीसियंसी यानी सी.वी.आइ. कहते हैं।

स्त्रियों को हो सकती है समस्या

वैसे तो यह बीमारी किसी को भी हो सकती है, लेकिन 30 वर्ष से अधिक उम्र वाली स्त्रियों में ज्य़ादातर सी.वी.आइ. की समस्या देखने को मिलती है। ज्य़ादातर स्त्रियों में गर्भावस्था के दौरान या डिलिवरी के बाद इसके लक्षण दिखाई देते हैं। इसे दूर करने के लिए वे मालिश और अन्य घरेलू उपचारों का सहारा लेती हैं। इससे उन्हें थोडी देर के लिए दर्द से राहत जरूर मिल जाती है, लेकिन समस्या का कोई स्थायी हल नहीं मिल पाता।

जीवनशैली है जिम्मेदार

आधुनिक जीवनशैली की वजह से सीवीसी की समस्या तेजी से बढ रही है। टेक्नोलॉजी पर बढती निर्भरता की वजह से लोगों की शारीरिक गतिविधियां दिनोंदिन कम होती जा रही हैं। डेस्क जॉब करने वाले लोगों में इस बीमारी की आशंका बढ जाती है। इसके अलावा ट्रैफिक पुलिस, शेफ और ब्यूटी सलून में कार्यरत लोगों को भी यह समस्या हो सकती है क्योंकि इन्हें लगातार खडे होकर काम करना पडता है, इससे अशुद्ध रक्त फेफडों तक ऊपर पहुंचने के बजाय पैरों की रक्तवाहिका नलियों में ही जमा होने लगता है। इसी वजह से काले निशान या दर्द की समस्या होती है।

क्यों होता है ऐसा

शरीर के अन्य अंगों की तरह पैरों को भी आक्सीजन की जरूरत पडती है। यह आक्सीजन हार्ट की आर्टरीज में प्रवाहित शुद्ध रक्त के जरिये पहुंचाई जाती है। पैरों को आक्सीजन देने के बाद यह आक्सीजन रहित अशुद्ध ख्ाून वेन्स के जरिये वापस पैरों से ऊपर फेफडे की तरफ शुद्धीकरण के लिए पहुंचाया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि ये नसें पैरों का ड्रेनेज सिस्टम बनाती हैं। किसी कारण से अगर इनकी कार्यप्रणाली शिथिल हो जाती है तो पैरों का डे्रनेज सिस्टम चरमरा जाता है। जिसका परिणाम यह होता है कि ऑक्सीजन रहित अशुद्ध खून ऊपर चढकर फेफडे की ओर जाने की बजाय पैरों के निचले हिस्से में जमा होना शुरू हो जाता है। इसी वजह से पैरों में सूजन और काले निशानों की समस्या शुरू हो जाती है। अगर समय रहते इनका समुचित इलाज नहीं कराया गया तो ये काले निशान गहरे होकर धीरे-धीरे जख्म में परिवर्तित हो जाते हैं। जिन लोगों को डीप वेन थ्रोम्बोसिस यानी डीवीटी की समस्या होती है, उनके पैरों की नसों में ख्ाून के कतरे जमा हो जाते हैं और वे उसकी दीवारों को नष्ट कर देते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि शिराओं के जरिये अशुद्ध रक्त के ऊपर चढऩे की प्रक्रिया बुरी तरह से बाधित हो जाती है, जो अंतत: सीवीआइ को जन्म देती है। एक्सरसाइज की कमी भी इस बीमारी की प्रमुख वजह है। शारीरिक निष्क्रियता की स्थिति में पैरों की मांसपेशियों द्वारा निर्मित पंप, जो अशुद्ध रक्त को ऊपर चढाने में मदद करता है, वह कमजोर पड जाता है। कुछ लोगों की नसों में स्थित वाल्व जन्मजात रूप से ही ठीक से विकसित नहीं हो पाते, ऐसे मरीजों में सी.वी.आइ. के लक्षण कम उम्र में ही नजर आने लगते हैं।

क्या है उपचार

अगर पैरों में काले चकत्तेदार निशान दिखाई दें तो इसे त्वचा रोग समझने की भूल न करें। ऐसी स्थिति में बिना देर किए किसी वैस्क्युलर सर्जन से सलाह लें। उपचार के दौरान सबसे पहले इन निशानों का असली कारण जानने की कोशिश की जाती है। इसके लिए वेन डॉप्लर स्टडी, एम.आर. वेनोग्राम व कभी-कभी एंजियोग्राफी का सहारा लिया जाता है। ख्ाून की विशेष जांच कर यह पता लगाना पडता है कि ख्ाून जमने की प्रक्रिया दोषपूर्ण तो नहीं है। इन विशेष जांचों के आधार पर ही सीवीआइ के इलाज की सही दिशा निर्धारण होता है। ज्य़ादातर मरीजों में दवा और विशेष व्यायाम की ही जरूरत होती है, गंभीर स्थिति होने पर सर्जरी भी करानी पड सकती है। वेन वाल्वुलोप्लास्टी, एग्जेलरी वेन ट्रांस्फर या वेन्स बाइपास सर्जरी जैसी आधुनिकतम तकनीक की मदद से इस बीमारी का उपचार संभव है। वेन बाइपास सर्जरी आजकल काफी लोकप्रिय हो रही है। इसके लिए कभी-कभी विदेशों से आयातित कृत्रिम वेन्स का इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी इन्डोस्कोपिक वेन सर्जरी या फिर लेजर सर्जरी का भी सहारा लेना पडता है।

अगर सजगता बरती जाए तो इस समस्या को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है। थोडा आराम मिल जाने के बाद बीच में इलाज अधूरा छोडऩा भी नुकसानदेह साबित होता है। अगर किसी व्यक्ति को एक बार ऐसी समस्या हो चुकी हो तो ठीक हो जाने के बाद भी साल में एक बार रुटीन चेकअप जरूर करवा लेना चाहिए।

इन बातों का रखें ध्यान

-अपने पैरों और कमर के चारों ओर कसे हुए कपडे न पहनें। इससे अशुद्ध ख्ाून की वापसी में रुकावट पैदा होती है।

- ऊंची एडी के जूते व सैंडल का प्रयोग कतई न करें। फ्लैट फुटवेयर पैरों की मांसपेशियों को हमेशा क्रियाशील रखते हैं। इससे शुद्ध और अशुद्ध रक्त का आवागमन बना रहता है।

-सी.वी.सी. की समस्या से ग्रस्त लोग स्किपिंग, एरोबिक्स या ऐसी कोई भी उछल-कूद वाली एक्सरसाइज, जिसमें घुटने पर बार-बार झटके लगें, कतई न करें। इस तरह के व्यायाम, उनकी वेन्स को फायदा पहुंचाने के बजाय नुकसान पहुंचाते हैं।

-बगैर झटका दिए पैर उठाने व मोडऩे वाले व्यायाम नसों के लिए फायदेमंद हैं।

-ऑफिस में या घर पर ज्य़ादा समय तक लगातार पैर लटका कर न बैठें। अगर संभव हो तो पैरों को किसी छोटे स्टूल के सहारे पर टिका कर रखें। काम के बीच में हर दो घंटे के अंतराल पर पांच मिनट का ब्रेक लेकर सीट से उठकर टहलें।

-खाने में तेल व घी का प्रयोग बहुत कम मात्रा में करें। कम कैलरी वाले रेशेदार खाद्य पदार्थ, वेन्स के लिए फायदेमंद हैं। अपने वजन पर नियंत्रण रखें। इससे वेन्स पर पडऩे वाला अनावश्यक दबाव कम हो जाता है। किसी भी हालात में मोटापे को न पनपने दें।

- गर्भ निरोधक गोलियों या एस्ट्रोजन हॉर्मोन से बनी दवाओं का प्रयोग न करें क्योंकि ये नसों की दीवारों को नुकसान पहुंचाती हैं।

- नियमित मॉर्निंग वॉक करें। यह सबसे आसान और फायदेमंद एक्सरसाइज है। इससे पैरों से ऊपर की ओर वापस जाने वाले रक्त का प्रवाह तेज हो जाता है, जो व्यक्ति को सीवीआइ से बचाता है।

-कोई भी व्यायाम, जिसमें पैरों को कुछ मिनट के लिए ऊपर रखना पडे, अत्यंत लाभकारी होता है। अगर आपको ऐसी समस्या हो तो अपने चिकित्सक की सलाह के बाद ही एक्सरसाइज करें। सर्वाइकल स्पॉण्डिलाइटिस, रीढ की हड्डी से जुडी बीमारियों के मरीज या अन्य किसी न्यूरोलॉजिकल समस्या से पीडित लोगों को इस तरह का व्यायाम नहीं करना चाहिए।

- रात में सोते समय पैरों के नीचे दो तकिये लगाएं, जिससे पैर छाती से दस या बारह इंच ऊपर रहें। ऐसा करने से पैरों में ऑक्सीजन रहित ख्ाून के जमा होने की प्रक्रिया शिथिल पड जाती है, जो सीवीआइ से ग्रस्त पैरों के लिए अत्यंत लाभकारी है।

-दिन के समय विशेष तकनीक से बनी स्टॉकिंस पहनें। ये विशेष जुरार्बें पैरों में रक्त का प्रवाह बढाती हैं और गुरुत्वाकर्षण से नीचे की तरफ होने वाले ख्ाून के दबाव को कम करती है और सीवीआइ को बढऩे से रोकती है।


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