कविता पुस्तक समीक्षा
थल सेना में अधिकारी कर्नल अमरदीप सिंह का जन्म देहरादून (उत्तराखंड) में हुआ। पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी-अंग्रेजी में कविताएं और अंग्रेजी में लेख प्रकाशित, अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित।
थल सेना में अधिकारी कर्नल अमरदीप सिंह का जन्म देहरादून (उत्तराखंड) में हुआ। देहरादून और पुणे से आरंभिक शिक्षा हासिल की। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से विज्ञान संकाय में स्नातक। पत्र-पत्रिकाओं में हिंदी-अंग्रेजी में कविताएं और अंग्रेजी में लेख प्रकाशित, अब तक दो कविता संग्रह प्रकाशित।
संप्रति: महू (मप्र) में सेवारत।
आओ बैठ कर
आओ बैठ कर
धडकनें गिनें
तुम मुझको महसूस करो
और सांसों के साथ
मैं तुम्हें तलाशूं
आओ न
नया कुछ करें
खुद से
ये सवाल करें
कि बिना पूछे
कैसे घर कर गए हो तुम
कैसे आ गए हो
अनजाने ही खयालों में
क्यों आने लगे हो
सपनों में
क्यों उलझा गए हो
सवालों में
आओ फिर से
सब कुछ मिटाकर
खाली ब्लैकबोर्ड पर
नया कुछ लिखें
ये जो मुस्कान है
न जाने वाली
उसका सबब ढूंढें
ये जो खुशबू
उठती है तन से
उसमें महकें
आओ न मिलकर
फुनगी पर बैठी
चिडिय़ा से चहकें
तुम मेरे खयालों
से नहाओ
मैं तुम्हारी यादों
में डूब जाऊं
आओ न फिर से
नए रंग हो जाएं
और प्यार से निखरें....।
जीवन कर दो
मेरी सांसों में मिलकर
अपनी सांसों को गिन लो
और मेरे ख्वाबों को तुम
अपनी आंखों में भर लो
हर सिलवट में ढूंढो न
हर सिलवट का मतलब तुम
मुझको पास बुला लो
तुम अपनी करवट कर लो
घुल जाने दो प्राणों को
इस रिश्ते को इक नाम तो दो
मेरे कदमों में तुम अपने
आने की आहट भर दो...
एक ऋतु की बात नहीं
ये प्रेम है जीवन गीत मेरा
आज बरस जाओ न मुझ पर
मुझको तुम सावन कर दो
होंठों से छू लोगी तो
पानी अमृत हो जाएगा
आज थाम लो धडकन को
तुम जीवन को जीवन कर दो
एक नशा है प्यार का पल
तुम संजो कर रखना इसको
भर लो जी चाहे जितना
तुम इसको ही दामन कर लो।
कर्नल अमरदीप सिंह
किताबों की दुनिया
हास्यात्मक व्यंग्य की प्रस्तुति
पुस्तक- वसु का कुटुम
संपादक- मृदुला गर्ग
प्रकाशन- राजकमल प्रकाशन, दिल्ली
मूल्य- 125 रुपये
अब तक की लेखनी से एकदम उलट मृदुला गर्ग ने लंबी कहानी 'वसु का कुटुम में समसामयिक घटनाओं पर हास्यात्मक व्यंग्य प्रस्तुत किया है। 'उसके हिस्से की धूप, 'कठगुलाब, 'चित्तकोबरा ये सभी कृतियां उपन्यासकार मृदुला गर्ग की हैं, जिनमें स्त्री-पुरुष संबंधों के इर्द-गिर्द कथ्य घूमता है। उनकी ज्यादातर कहानियों में स्त्री पात्र प्रबल होती है, जो सामाजिक व्यवस्था से लडती है और अंत में खुद को विजेता घोषित करती है। 'वसु का कुटुम अब तक लिखी उनकी सभी कहानियों से बिलकुल अलग हटकर है। यह एक लंबी कहानी है। इसे पढते हुए पाठकों को यह ज्ारूर एहसास होगा कि लेखिका ने शहर, देश-समाज और एक आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी की सूक्ष्मता से पडताल की है। इसमें उन्होंने स्वयं तटस्थ रहकर न सिर्फ समसामयिक घटनाओं का कथावाचन किया है, बल्कि अपनी पैनी नजर को व्यंग्य की धार भी दी है। बडे रोचक अंदाज्ा में उन्होंने रिहायशी इलाके में ग्ौरकानूनी ढंग से बनाई जा रही एक बिल्डिंग से कहानी की शुरुआत की है और आगे क्रम मेें अतिक्रमण, प्रदूषण, ग्ौर सरकारी संस्थाओं की कार्यशैली, कालाधन और भ्रष्टाचार करने वालों पर तीखा प्रहार किया है। यह सच है कि भारत में कोई भी काम रिश्वत देकर आसानी से कराया जा सकता है। कहानी की एक पात्र ऐसी लडकी है, जो अपने मुहल्ले में हो रहे अतिक्रमण और ग्ौरकानूनी काम के ख्िालाफ थाने में शिकायतें दर्ज करती है, लेकिन इसका उसे कोई फायदा नहीं मिलता। उल्टे ग्ौरकानूनी काम और तेज्ा गति से होने लगता है। इस लडकी को दिल्ली के चर्चित दामिनी कांड से जोडकर उन्होंने जघन्य अपराधों के कारणों का भी व्यंग्यात्मक लहज्ो में पर्दाफाश किया है। साथ ही, इलेक्ट्रॉनिक चैनलों के टीआरपी गेम को भी निशाने पर लिया है। भाषा सहज, सरल और संप्रेषनीय है। बातचीत की शैली में कही गई बात न सिर्फ हंसाती है, बल्कि सोचने के लिए भी मजबूर करती है।
स्मिता