दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके...
भारतीय परिवारों में शादी दो दिलों ही नहीं, दो परिवारों का भी मिलन है। कई बार तो एक शादी में ही कई भावी शादियों की संभावनाएं तैयार हो जाती हैं। मंडप के नीचे नई प्रेम कहानियां शुरू होती हैं। ऐसी कहानियों से भरे कुछ दिलचस्प नज़्ाारे पाठकों के लिए।
कहते हैं जोडिय़ां स्वर्ग में बनती हैं। मगर भारतीय शादियों की बात ही निराली है। यहां 'एक के साथ एक फ्रीÓ का पैकेज मिलना बड़ी बात नहीं। अकसर एक मंडप में कई शादियां तय होती हैं, कई प्रेम कहानियां शुरू होती हैं तो कुछ परवान चढ़ती हैं। कुछ दिलजले $िकस्से आम होते हैं तो कुछ दिलफेेंक रोमियो भी लड़कियों के इर्द-गिर्द मंडराते रहते हैं। ऐसी शादियों में कइयों को तो बरसों पुरानी प्रेमिकाएं भी नज़्ार आ जाती हैं और फिर तो दिल-जिगर सब लहूलुहान होने लगता है। इन प्रेमियों में से कुछ को मंज़्िाल मिलती है तो कुछ स$फर में तनहा रह जाते हैं। भारतीय शादियों में ऐसे नज़्ाारे बड़े आम हैं। ज़्ारा ग़्ाौर $फरमाएं इन पर।
दीदी तेरा देवर दीवाना
दूल्हे का छोटा भाई और दुलहन की छोटी बहन हो तो $िकस्मत कनेक्शन बनता ही है। भाई के दिल में कुछ-कुछ होने लगता है तो दुलहन की बहन शरमाती हुई मन ही मन ख़्ाुद को 'हम आपके हैं कौनÓ की माधुरी दीक्षित समझने लगती है। जूते छिपाने के बहाने चुहलबाज़्िायां होती हैं, छेड़छाड़ होती है। हंसी-मज़्ााक, मज़्ोदार खेल और अंत्याक्षरियों के बहाने दिल की बातें कही-सुनी जाती हैं। ज़्ारूरी नहीं कि दीदी के देवर से आगे भी मेल-मुला$कातों का सिलसिला चले, मगर शादी में मिले चंद पल उम्र भर के लिए कुछ हसीन यादें तो छोड़ ही जाते हैं।
मम्मी ने चाय पर बुलाया है...
'देखो लड़कियों, शादी में चटर-पटर मत बोलना, हर व$क्त मोबाइल पर गेम मत खेलती रहना। पार्लर जाकर अच्छी तरह तैयार हो जाओ, अपनी ड्रेस संभाल कर रखना....,Ó सभी विवाह-योग्य लड़कियों को मांओं से हिदायतें मिलने लगती हैं। परिवार में एक लड़की की शादी हो तो चाचियों, बुआ, फूफियों, ताइयों की ख़्वाहिशें उबाल मारने लगती हैं। आख़्िार सबकी बेटियां जो हैं। कौन जाने इस शादी के बहाने अपनी बेटी का रिश्ता तय हो जाए! लड़कियों के लिए यह अजब परीक्षा की घड़ी होती है। ज़्ाोर से बोलने, हंसने, मोबाइल पर ज्य़ादा बात करने या घूम-घूम कर खाते रहने के लिए नंबर तो कटने ही हैं। सुयोग्य संभावित वरों से थोड़ी दूरी बना कर रहना भी ज़्ारूरी होता है। मॉडर्न कन्याओं को सुशील, गंभीर, मृदुभाषी व शर्मीली बनना पड़ता है। आख़्िार भावी दूल्हों के माता-पिता पर भी तो इंप्रैशन जमाना है। इस टेस्ट में पास हो जाएं तो जल्दी ही वह मुकाम आ जाता है, जहां भावी वर को वधू की मां की तर$फ से चाय का न्यौता मिल जाता है।
ऐ मेरी ज़्ाोहरा जबीं
शादियों में कुछ पुराने फिल्मी हीरो टाइप आशि$क भी ख़्ाूब नज़्ार आते हैं। मेहंदी से लाल हुए बाल, बढ़ी हुई तोंद पर टाइट बेल्ट से अटकाई गई पैंट, चेहरे पर उम्र की झलक, मगर आंखों में वही पुरानी शरारत जो बरसों पहले प्रेमिका को देख कर आया करती थी। घर-परिवार या मोहल्लों की ऐसी शादियों में अक्सर पूर्व प्रेमिकाएं टकरा जाया करती हैं। दो-तीन गदबद बच्चे लिए ज़्ोवरों से लदी-फदी और भारी साड़ी को किसी तरह संभालती इस प्रेमिका पर ज्यों ही नज़्ार पड़ती है, समय मानो ठहर सा जाता है, आशि$क महोदय के दिल में लहर उठने लगती है। पल भर के लिए दोनों ठिठक जाते हैं, आसपास के सारे दृश्य स्टेच्यू हो जाते हैं और फिल्म फ्लैश बैक में चलने लगती है। अपने व$क्त के ये शाहजहां भरी-पूरी मुमताज को देख कर 'ऐ मेरी ज़्ाोहरा जबीं...Ó वाला गाना गुनगुनाने को होते हैं कि तभी प्रेमिका का बच्चा रोते हुए नमूदार हो जाता है, 'मम्मी-मम्मी देखो भैया मुझे चिढ़ा रहे हैं, मुझे चॉकलेट नहीं दे रहे!Ó एकाएक इश्क का सुनहरा भूतकाल कठोर वर्तमान में बदल जाता है। प्रेमिका को याद आता है कि वह दो बच्चों की अम्मा है। उधर शाहजहां भी कांपती हुई हथेलियों को मलते रह जाते हैं। शादी भर उनकी शरारती आंखें प्रेमिका को तलाशती रहती हैं। मुमताज भी कोई कम तो नहीं। किसी न किसी बहाने सामने आती रहती है या छुप-छुप कर नज़्ाारा लेती रहती है अपने शाहजहां का। शाहजहां अपने कैमरे की नज़्ार से दीदार करते हैं और दो-चार आड़ी-तिरछी तसवीरें खींच ही लेते हैं अपनी मुमताज की।
आंखों ही आंखों में 'तुमने कुछ कहा क्या?Ó
'नहीं तो, तुमने कुछ सुना क्या?Ó
जी हां-कई जोड़े ऐसे होते हैं, जो पूरी शादी में एक-दूसरे के आसपास मंडराते हैं, आंखों ही आंखों में इशारे करते हैं, कई वादे कर लेते हैं और कई शिकायतें भी। आंखों ही आंखों में सात जन्मों की कसमें खा बैठते हैं, मगर मुंह से बोल नहीं फूटते। दिल की बात ज़्ाुबां तक आते-आते इतनी देर हो जाती है कि शादी बीत जाती है और सब अपने-अपने घर लौट जाते हैं। ऐसी शर्मीली प्रजाति लड़कियों ही नहीं, लड़कों की भी होती है। इनकी प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही ख़्ात्म हो जाती है। घर लौटने के बाद कई दिन तक गमज़्ादा रहते हैं, प्रियतम की यादों में ठंडी आहें भरते हैं, बार-बार उसका चेहरा याद करते हैं, रातों को जागते हैं और इनके दिल के अरमां आंसुओं में बहने लगते हैं। ख़्ाुद को कोसते हैं कि कम से कम नाम पूछ लेते या $फोन नंबर ही एक्सचेंज कर लेते! यह स्थिति तब तक बनी रहती है, जब तक कि किसी दूसरी शादी का निमंत्रण-पत्र हाथ में नहीं आ जाता।
इज़्ाहारे हाल कर बैठे
पुरानी हिंदी फिल्मों में कई बार ऐसा दृश्य नज़्ार आता था, जिसमें एक शादी के दौरान ही दुस्साहसी हीरो सबके सामने हीरोइन को प्रपोज़्ा करता या उसकी मांग में सिंदूर भर देता। इसके बाद तो जैसे मंडप में भूचाल आ जाता। सारे लोग प्रेमी जोड़े की जान के दुश्मन बन जाते। प्रेमी-प्रेमिका वहां से जान बचा कर र$फूचक्कर हो जाते। भारत में रीअल शादियां भी फिल्मी शादियों से बहुत प्रेरित हैं। वास्तविक जीवन में भी कई बार ऐसे दुस्साहसी प्रेमी मिल जाते हैं, जो ज़्ामाने भर की रुसवाई झेल कर अपने सनम को हमस$फर बना लेते हैं। प्रेमी-प्रेमिका को दुस्साहसी बनाने में उनके दोस्तों की अच्छी-ख़्ाासी भूमिका रहती है। यही दुश्मन दोस्त शोले भड़काते हैं और जब आग लग जाती है तो चुपचाप खिसक लेते हैं। ये दुस्साहसी प्रेमी-प्रेमिका बाद में पछताते हैं। काश हम ऐसे न होते! प्यार की इस मजनूंगीरी का बुख़्ाार जल्दी ही उतर जाता है और आटे-दाल-सब्ज़्ाी का भाव याद आने लगता है। जैसे ही प्रेमी पति की भूमिका में उतरता है और प्रेमिका पत्नी बनती है, प्रेम कहीं मुंह छिपा कर बैठ जाता है....।
कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना
बेग़्ाानी शादी में कई अब्दुल्ला दीवाने होते हैं। मालूम नहीं होता कि ये लड़के वालों की तर$फ के हैं या लड़की वालों की तर$फ के। मगर ये अपने दिल को हथेली में लिए घूमते हैं। लड़की दिखी नहीं कि दिलोजान से हाज़्िार। एक ने इनकी तर$फ नहीं देखा तो तुरंत दूसरी की ओर बढ़ जाते हैं। इनका सीधा सा फंडा होता है, तू नहीं तो और सही और नहीं तो और सही...। जिस ओर भी लड़कियों की भीड़ हो, ये कोल्ड ड्रिंक्स या स्नैक्स की ट्रे लेकर घूमने लगते हैं। हद तो तब हो जाती है, जब ये दिलफेेंक लड़कियों की मांओं से भी फ्लर्ट करने लगते हैं। एकसाथ दो लड़कियों से फ्लर्ट करना भी इन्हें ख़्ाूब आता है। बड़ी बहन पर इश्क के तीर छोड़ते हैं और निशाना बनती है छोटी बहन। कुछ लड़कियां तो इनकी चाल में फंसते-फंसते रह जाती हैं। कुछ को असलियत पता चलती है तो चप्पलों-जूतियों से पिटाई भी कर देती हैं इनकी।
इंदिरा राठौर
इलस्ट्रेशंस : श्याम जगोता