Move to Jagran APP

उपहार नहीं भावनाएं हैं बेशकीमती

भाई-बहन के नेह भरे नाते की याद दिलाने हर साल रक्षाबंधन का त्योहार आता है। इसकी खुशी को यादगार बनाने के लिए उपहारों के आदान-प्रदान का भी चलन है, पर यहां उपहार की कीमत के बजाय देने वाले की भावनाएं ज्यादा अहमियत रखती हैं।

By Edited By: Published: Sat, 02 Aug 2014 11:34 AM (IST)Updated: Sat, 02 Aug 2014 11:34 AM (IST)

तब-छोटी सी थाली में रेशमी धागे से बनी राखी, रोली, अक्षत और दो-चार मिठाइयां रखी जातीं। बहन भाई के माथे पर तिलक लगाकर राखी बांधती और मिठाई खिलाकर भाई की आरती उतारती। बदले में भाई अपनी जेब से कुछ पैसे निकालकर राखी की थाली में रख देता, बस मन जाता था त्योहार।

loksabha election banner

अब-डिजाइनर राखियों से सजी रेडीमेड थालियां बाजारों में बिक रही हैं। आज के भाई कैलरी कॉन्शियस हैं और वे मिठाइयां खाना पसंद नहीं करते। इसके लिए भी बाजार ने पूरा इंतजाम कर रखा है। इंपोर्टेड चॉकलेट्स और कुकीज, बिस्किट, जूस, एनर्जी ड्रिंक्स, शुगर फ्री मिठाइयां और नमकीन..और न जाने कितनी ही तरह की चीजों से दुकानें भरी पडी हैं। ये तो वैसी चीजें हैं, जो बहनों द्वारा भाई को दी जाती हैं। इसके अलावा भाइयों को भी अपनी बहन के लिए गिफ्ट खरीदना होता है। इसके लिए ब्रैंडड आउटफिट्स, ज्यूलरी (असली और ऑर्टिफियिशल), शो पीसेज, क्रॉकरी सेट और घरेलू उपकरण जैसी ढेर सारी चीजें मौजूद हैं। इसके अलावा आजकल गिफ्ट वाउचर के रूप में भी उपहार देने का भी चलन बढ रहा है।

खो रही है सादगी

जीवन के साथ हमारे त्योहारों की भी सरलता खत्म हो रही है। हमें इसका अंदाजा भी नहीं हुआ कि बाजार हमारी जिंदगी पर किस तरह हावी हो चुका है। एक-दूसरे को गिफ्ट देने में कोई बुराई नहीं, लेकिन जब वह व्यक्ति के स्टेटस के साथ जुड जाता है तो भाई-बहन का सहज रिश्ता भी बेहद औपचारिक बन जाता है। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक सलाहकार डॉ. अशुम गुप्ता कहती हैं, बचपन में भाई-बहन का रिश्ता बेहद सहज और आत्मीय होता है, लेकिन शादी के बाद उनकी जिंदगी का एक नया अध्याय शुरू हो जाता है। उनके रिश्ते में पहले जैसी आजादी नहीं रह जाती। अब दोनों को एक-दूसरे के लाइफ पार्टनर की भावनाओं का भी खयाल रखना पडता है। अगर बहन अविवाहित है तो भाई उसे अपनी हैसियत और सुविधा के मुताबिक उपहार में कुछ भी दे देता है, पर बहन की शादी के बाद उसके लिए गिफ्ट खरीदते समय भाई को दस बार सोचना पडता है कि बहन के पति या ससुराल वालों को यह उपहार कहीं सस्ता तो नहीं लगेगा? भाई की शादी के बाद बहन का भी यही हाल होता है। अब भाई के लिए कुछ भी खरीदते समय बार-बार उसके मन में यही खयाल आता है कि अगर कोई कमी रह गई तो भाभी बुरा मान जाएंगी।

भावनाएं हैं अनमोल

गिफ्ट पाकर निश्चित रूप से सभी को बहुत खुशी होती है, पर गिफ्ट की कीमत या उपयोगिता के बजाय देने वाले की भावनाएं ज्यादा अहमियत रखती हैं। बैंक में कार्यरत श्रद्धा शर्मा अपने एक ऐसे ही अनुभव का जिक्र करती हैं, मुझे आज भी याद है। बचपन में एक बार मेरे भाई ने रक्षाबंधन के दिन अपनी गुल्लक तोड कर मुझे 20 रुपये दिए थे। जब मैंने लेने से मना किया तो वह रो पडा और कहने लगा कि दीदी तुम समझती क्यों नहीं, मम्मी से पैसे लेकर देने के बजाय मैं तुम्हें खुद राखी बंधाई देना चाहता हूं। सचमुच, वह मेरे जीवन का अनमोल उपहार था। आज मेरा भाई एक मल्टीनेशनल कंपनी में कंट्री मैनेजर है और हर साल रक्षाबंधन पर वह मुझे ढेर सारे महंगे गिफ्ट देता है, पर मेरे लिए वो 20 रुपये आज भी बेशकीमती हैं।

बढती प्रदर्शनप्रियता

जब भी बहन भाई को राखी बांधती है तो वह उसे शगुन के तौर पर कुछ न कुछ उपहार देता है। पुराने समय में बहन भाई के लिए मिठाई का छोटा सा डिब्बा लेकर मायके जाती थी, पर समय के साथ रस्में बदलने लगीं। बहन को लगने लगा कि सिर्फ थोडी सी मिठाई और एक राखी के बदले भाभी हर साल इतनी महंगी साडी दे देती हैं। लेते हुए अच्छा नहीं लगता। पता नहीं भाभी क्या सोचती होंगी। कुछ ऐसा करना चाहिए कि उपहार लेते हुए मुझे संकोच न हो। शायद इसी सोच ने रक्षाबंधन के अवसर पर बहनों द्वारा भाई को भी ढेर सारा उपहार देने की परंपरा की शुरुआत की। इसीलिए अब बहनें भी भाई के लिए ढेर सारा उपहार लेकर जाती हैं।

इस संबंध में दिल्ली की होममेकर संगीता गर्ग (परिवर्तित नाम) कहती हैं, हम कुल तीन भाई और तीन बहनें हैं। मायके में संयुक्त परिवार है। रक्षाबंधन वाले दिन हम तीनों बहनें वहां पहुंचती हैं। मुझे हमेशा इस बात का ध्यान रखना पडता है कि मेरा उपहार दूसरी बहनों की तुलना में सस्ता न लगे। मैं जानती हूं कि मुझे ऐसा नहीं सोचना चाहिए, पर समाज की यही रीति है। हमारे वापस लौटने बाद भाभियां इस बात पर चर्चा जरूर करती होंगी कि किसने क्या दिया? ऐसे में मुझे अपने साथ पति के सम्मान का भी खयाल रखना पडता है। वरना, मायके में सब यही सोचेंगे कि इसके पति बडे कंजूस हैं और इसे अपनी मर्जी से खर्च करने की इजाजत नहीं देते।

रिश्ते में हो खुलापन

सामाजिक रीति-रिवाजों का निर्वाह उसी सीमा तक उचित है, जब तक कि वे बोझ न बनें। किसी भी रिश्ते में रस्मों या प्रदर्शनप्रियता की तुलना में भावनाएं ज्यादा अहमियत रखती हैं। भाई-बहन का रिश्ता भी कोई अपवाद नहीं है। अगर भाई-बहन के बीच निश्छल प्रेम हो तो रस्म-रिवाज के निर्वाह में कमी से उनके आपसी संबंधों पर कोई फर्क नहीं पडता।

इस संबंध में आर्किटेक्ट अजय चौहान कहते हैं, हमारे परिवार में ऐसी परंपरा है कि भाई को राखी बांधने से पहले बहनें उपवास रखती हैं। एक बार रक्षाबंधन के ठीक दो दिन पहले मुझे जरूरी काम से कहीं बाहर जाना पडा। निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक मुझे त्योहार वाले दिन सुबह वापस लौट आना था, लेकिन मौसम की खराबी की वजह से हमारी फ्लाइट चार घंटे लेट हो गई और मैं शाम को घर पहुंचा। तब तक भूख-प्यास की वजह से मेरी छोटी बहन की तबीयत इतनी बिगड गई थी कि मुझे उसे फौरन अस्पताल ले जाना पडा। उसके बाद से मैंने तय किया अगले साल से मेरी बहन कोई व्रत नहीं रखेगी। हमारे संबंध बेहद सहज हैं। त्योहार वाले दिन अगर उसे आने में परेशानी होती है तो मैं ही उसके घर चला जाता हूं। अगर कभी जल्दबाजी में उसके लिए गिफ्ट नहीं ख्ारीद पाता तो भी वह बुरा नहीं मानती क्योंकि हमारे लिए भावनाएं रस्मों से कहीं ज्यादा अहमियत रखती हैं।

इनकी नजर में रक्षाबंधन

हर साल भेजती हूं राखी

तनूजा चंद्रा, पटकथा लेखिका

मेरे भैया विक्रम चंद्रा अमेरिका में रहते हैं और वहां कैलिर्फोनिया यूनिवर्सिटी में पढाते हैं। मैं हर साल उन्हें राखी जरूर भेजती हूं। उसे पाकर वह इतने खुश होते हैं कि राखी बांध कर वह हर साल मुझे अपनी फोटो जरूर मेसेज करते हैं।

सगे भाई जैसा प्यारा है एडम

पूजा बेदी, टीवी एंकर

शायद आपको मालूम ही होगा कि वर्षो पहले ट्रैकिंग के दौरान हुए एक हादसे में मेरी मां प्रोतिमा बेदी और मेरे सगे भाई सिद्धार्थ की दर्दनाक मौत हो गई थी। मेरा स्टेप ब्रदर एडम उम्र में मुझसे 12 साल छोटा है। वह अमेरिका में रहता है, लेकिन मुझे सगी बहन से भी ज्यादा प्यार करता है। जब कभी इंडिया में होता है तो रक्षाबंधन वाले दिन खुद राखी लेकर मेरे घर चला आता है।

बेहद सहज है हमारा रिश्ताराजीव वर्मा, अभिनेता

मेरा मानना है कि किसी भी रिश्ते में सहजता और प्यार होना चाहिए। केवल रस्म अदायगी से बात नहीं बनती। अपनी दोनों बहनों से मेरे संबंध बेहद सहज हैं। अगर किसी वजह से वे मुझे राखी नहीं भेज पातीं तो उस दिन फोन पर मुझसे बात कर लेती हैं, मेरे लिए इतना ही काफी होता है।

बहुत याद आती है घर की

दीपिका सिंह, टीवी कलाकार

दिल्ली में हमारा बहुत बडा संयुक्त परिवार है। वहां हर साल रक्षाबंधन का त्योहार बडे धूमधाम से मनाया जाता है। हमारे बहुत सारे कजंस हैं। हमारे परिवार में लडकियों की संख्या ज्यादा है और कुल मिलाकर चार भाई हैं। राखी बांधते समय गिफ्ट को लेकर अकसर हमारे बीच प्यार भरी नोक-झोंक होती थी। मेरा छोटा भाई काफी पहले से मुझे गिफ्ट देने की तैयारी करता था। गिफ्ट चाहे बडा हो या छोटा मेरे लिए देने वाले की भावनाएं ज्यादा अहमियत रखती हैं। पिछले दो वर्षो से रक्षाबंधन पर मुझे दिल्ली जाने का मौका नहीं मिल पा रहा। इसलिए मैं अपने भाइयों को कुरियर से राखी भेज देती हूं। ऐसे अवसरों पर मुझे घर की बहुत याद आती है।

विनीता


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.