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कोशिश से मिटेंगी दूरियां

आज की अति व्यस्त जीवनशैली में लोगों के पास अपने रिश्तेदारों से मिलने का समय नहीं होता, जिससे बच्चे भी आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं और उनका समाजीकरण सही ढंग से नहीं होता।

By Edited By: Published: Thu, 23 Mar 2017 02:18 PM (IST)Updated: Thu, 23 Mar 2017 02:18 PM (IST)

आज की अति व्यस्त जीवनशैली में लोगों के पास अपने रिश्तेदारों से मिलने का समय नहीं होता, जिससे बच्चे भी आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं और उनका समाजीकरण सही ढंग से नहीं होता। इसलिए समय रहते सचेत हो जाएं और अपने बच्चों को भी रिश्तों की अहमियत समझाएं।

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यह सच है कि बदलते वक्त के साथ एकल परिवारों की तादाद बढती जा रही है, जहां कामकाजी माता-पिता के साथ बच्चे घर पर अकेले रहते हैं। व्यस्तता की वजह से लोगों का आपस में मिलना-जुलना भी नहीं हो पाता। ऐसे इंट्रोवर्ट और शर्मीले बच्चों की वजह से कई बार लोगों को रिश्तेदारों के सामने शर्मिंदगी झेलनी पडती है। यहां दी जा रही हैं कुछ ऐसी स्थितियां, जो पेरेंट्स के लिए अलार्मिंग साबित हो सकती हैं :

परिस्थिति नं. 1 : मॉम, ये कौन हैं...इन्हें मैं क्या कहकर बुलाऊं...जैसे सवाल अगर बच्चा पूछने लग जाए तो समझें कि यह एक अलार्मिंग सिचुएशन है।

परिस्थिति नं. 2 : 'मां मेरा फेवरिट पिलो, खिलौना या किताब नहीं मिल रही है, क्या आपको पता है? इस पर हमारा जवाब होता है, पता नहीं, अभी मुझे परेशान मत करो।

परिस्थिति नं. 3 : अगर आप किसी भी बच्चे से अचानक पूछें कि वह अपने रिश्तेदारों के बारे में बताए तो इस बात की आशंका अधिक है कि वह अपने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, अपने किसी एक चाचा और चाची के अतिरिक्त किसी भी अन्य रिश्तेदार का नाम याद नहीं कर पाएगा।

परिस्थिति नं. 4 : अगर घर पर रिश्तेदार या सगे-संबंधी आते हैं तो क्या आपके बच्चे अपने कमरे में दुबक जाते हैं?

परिस्थिति नं. 5 : किसी शादी या पारिवारिक समारोह में जाने से ज्यादा वे गेम जोन या मूवी में जाना पसंद करते हैं।

ऊपर दी गई कुछ परिस्थितियां अगर आपकी जिंदगी सेजुडी हुई लगें तो समझ जाएं कि आपकी सोशल लाइफ अच्छी नहीं है। कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, गुरुग्राम के काउंसलिंग साइकोलॉजी विभाग में कंसल्टेंट स्मृति कौल के मुताबिक, हमेशा पेरेंट्स यही सोचते हैं कि जब बच्चा बडा हो जाएगा, तब उसे रिश्तों के बारे में समझाएंगे लेकिन यह गलत है। बच्चों को शुरू से ही सोशल स्किल्स सिखानी चाहिए क्योंकि जब बच्चा बडा होने लगता है, तब उसमें नियम में रहने की आदत डालना मुश्किल है। इसके अतिरिक्त उन्हें प्यार से हर चीज समझाएं। कुछ पेरेंट्स बच्चों को छोटी-छोटी बातों पर निर्देश देते हैं, उनके ना समझने पर डांटते और मारते हैं। यह गलत तरीका है। आपका यह तरीका उन्हें जिद्दी और विद्रोही बना सकता है। इसलिए जितना हो सके, उन्हें प्यार से ही समझाने की

मैं और मेरे मम्मी-पापा डॉ. निभीत कपूर, मनोचिकित्सक, पीसफुल माइंड फाउंडेशन, दिल्ली के मुताबिक, बच्चों में संस्कार की नींव माता-पिता द्वारा ही रखी जाती है। अगर पेरेंट्स ही रिश्तों को तवज्जो नहीं देंगे तो बच्चे तो इन से अनजान रहेंगे ही। आज मैं और मेरे की भावना इतनी प्रबल हो गई है कि व्यक्ति को सिर्फ अपनी पत्नी और बच्चे ही दिखाई देते हैं। दूसरे रिश्तों को वे उनके बाद ही स्थान देते हैं। पेरेंट्स की इस आत्मकेंद्रित सोच की वजह से बच्चे भी इसे अपना लेते हैं और उन्हें सिर्फ खुद से मतलब होता है। बच्चे भी माता-पिता से ही अपने-पराये का भेदभाव सीखते हैं। इससे रिश्तों में उदासीनता आने लगती है।

मिलकर सुलझाएं समस्या ऐसा कई बार होता है कि हम किसी काम में व्यस्त होते हैं और बच्चे हमारे पास आकर कहते हैं कि 'मुझे यह बनाकर दे दो, मेरी मैथ्स की प्रॉब्लम सॉल्व करवा दो या मुझे अपनी किताबें या डे्रस नहीं मिल रही? इस पर अकसर हमारा जवाब होता है, अभी नहीं। मैं बिजी हूं, खुद सॉल्व करो, जबकि ऐसी स्थिति में आप अपना काम छोडकर बच्चे की मदद करनी चाहिए। ऐसी छोटी-छोटी बातों से न केवल बच्चों का आत्मविश्वास बढता है, बल्कि साथ मिलकर किसी भी समस्या का निदान ढूंढने से रिश्ते भी प्रगाढ होते हैं।

निंदा से बचें अगर कभी किसी बात को लेकर आपके मन में अपने रिश्तेदारों के प्रति नाराजगी हो तो बच्चों के सामने उसका जिक्र न करें। कई बार अनजाने में ही लोग बच्चे के सामने अपने करीबी रिश्तेदारों की बुराई करने लगते हैं। अगर इस तरह की बातें आपके घर में अकसर होती हैं तो उन सभी रिश्तदारों के प्रति उसके कोमल मन में नफरत की भावना भर जाएगी और वह उनसे मिलने-जुलने से कतराने लगेगा।

गुस्से पर रखें काबू अपनी भावनाओं को सही तरीकों से दूसरों के सामने कैसे रखा जाए, यह बच्चों को जरूर बताएं। उन्हें गुस्से पर नियंत्रण रखना भी समझाएं। चार साल के ऊपर के बच्चों में भावनाएं विकसित होने लगती हैं, उन्हें प्यार और गुस्से जैसी भावनाएं अच्छी तरह समझ में आती हैं। गुस्से पर नियंत्रण बहुत जरूरी है पर याद रखें, बच्चों को डांटना इसका स्थायी समाधान नहीं है। अपनाएं कुछ टिप्स : 1 से 10 तक की गिनती गिनने से भी गुस्सा कंट्रोल में आ जाता है। ज्य़ादा गुस्सा आए तो बच्चे को तुरंत पानी पिलाएं। ध्यान को डायवर्ट करें, जैसे उससे उसके स्कूल के बारे में कुछ पूछें या किसी पसंदीदा खिलौने या कहानियों के बारे में बातें करें। डीप ब्रीदिंग के जरिये भी गुस्से पर काबू पाया जा सकता है।

सहयोग की अहमियत बच्चे के सामने समय-समय पर यह जाहिर करते रहें कि किस तरह आप अपनी छोटी-बडी चीजों के लिए परिजनों पर निर्भर रहते हैं। किस तरह माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची आदि सभी हर परेशानी में आपकी मदद करते हैं। उसे बताएं कि आपको परिवार के सदस्यों से बात करना या उनके साथ समय बिताना कितना अच्छा लगता है। उसे यह भी समझाएं कि परिवार किस तरह सबका सपोर्ट सिस्टम होता है।

रोल मॉडल बनें सबसे जरूरी है आपका अपना व्यवहार। बच्चे थ्योरी से कभी नहीं सीखते। वे एक अच्छे ऑब्जर्वर होते हैं। आप रिश्तों के बारे में उन्हें कितनी ही सकारात्मक बातें सिखा लें पर अगर आप खुद रिश्तों को लेकर नकारात्मक हैं तो बच्चे में भी ऐसी ही सोच विकसित होगी। आप खुद ही अपने बच्चे के लिए रिश्तों की पहली पाठशाला हैं। रिश्तों को लेकर आपका सकारात्मक होना ही उसको कई सारे खुशगवार रिश्तों से घेर देगा।


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