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बस अब और नहीं

बच्चे हैं तो मनमानी करेंगे ही, ऐसी सोच पेरेंटिंग के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती है। इसलिए बेहतर यही होगा कि छोटी उम्र से ही बच्चों के लिए शरारतों की सीमा निर्धारित की जाए।

By Edited By: Published: Mon, 01 Sep 2014 04:28 PM (IST)Updated: Mon, 01 Sep 2014 04:28 PM (IST)
बस अब और नहीं

उछल-कूद, चीखना-चिल्लाना और छीना-झपटी जैसी क्रियाएं बाल सुलभ व्यवहार का जरूरी हिस्सा मानी जाती हैं। बच्चों की इन्हीं हरकतों से घर में रौनक बनी रहती है, पर उनकी शरारतों की भी एक सीमा तय होनी चाहिए। अगर छोटी उम्र से ही उनके ऐसे शरारती व्यवहार को नियंत्रित नहीं किया गया तो आगे चलकर ऐसे बच्चे अनुशासनहीन हो जाते हैं और उन्हें सही रास्ते पर लाना पेरेंट्स के लिए बडा सिरदर्द बन जाता है।

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तय होनी चाहिए सीमा

समय के साथ पेरेंटिंग के तरीके में ही नहीं, बल्कि इसकी शब्दावली में भी बदलाव आ रहा है। अब डिसिप्लिन के बजाय सेटिंग लिमिट्स शब्द का प्रयोग किया जाता है। बात केवल शब्दों में बदलाव तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे परवरिश के तरीके पर भी सकारात्मक प्रभाव पडता है। बडे होने के बाद बच्चों के साथ सख्ती बरतने के बजाय छोटी उम्र से ही उनके व्यक्तित्व को सही आकार में ढालने की कोशिश करनी चाहिए। छोटे बच्चे अपनी भावनाओं और व्यवहार को पूरी तरह नियंत्रित नहीं कर पाते। ऐसे में पेरेंट्स का यह फर्ज बनता है कि वे शुरुआत से ही बच्चे के लिए सही रुटीन और उसके व्यवहार के लिए कुछ नियम बनाएं। रोजमर्रा की छोटी-छोटी बातों की मिसाल देते हुए उसे सही-गलत का फर्क समझाएं। अगर वह अपने भाई या बहन की चीजें छीनता है तो उसे उसी वक्त ऐसा करने से रोकें और समझाएं कि किसी के भी साथ ऐसी छीना-झपटी ठीक नहीं। तुम अपने भाई से कहो कि प्लीज, थोडी देर के लिए मुझे अपना टॉय दे दो। इससे उसे यह बात समझ आ जाएगी कि दूसरों से उनकी चीज छीनने के बजाय प्यार से मांगनी चाहिए। इससे वह अपने व्यवहार की सीमाएं पहचानने लगेगा और अगली बार ऐसी हरकत नहीं करेगा। उसे शुरू से ही दूसरों का खयाल रखना और उनके साथ अपनी चीजें शेयर करना सिखाएं।

प्यार से बनेगी बात

बच्चे को यह एहसास होना चाहिए कि आप उससे बहुत प्यार करती हैं, लेकिन उसकी गलत आदतें आपको नापसंद हैं। यह सोचना गलत है कि लाड-प्यार से बच्चे बिगड जाते हैं। प्यार के बिना बच्चे को अनुशासित करने का तरीका सही नहीं है। इससे उसका आत्मविश्वास कमजोर पड जाएगा। क्लास में अच्छी परफॉर्मेस पर आप जिस तरह उसे शाबाशी देती हैं, ठीक उसी तरह अगर कभी उसका रिजल्ट अच्छा न हो तो भी उसके साथ आपके प्यार में कोई कमी नहीं आनी चाहिए, बल्कि अगली बार सही ढंग से कोशिश करने के लिए उसका हौसला बढाएं।

संतुलित व्यवहार अपनाएं

अगर अच्छी आदतों की अहमियत समझते हुए बच्चे उन्हें अपने व्यवहार में उतारने की कोशिश करें तो उनके व्यक्तित्व में सहजता से सकारात्मक बदलाव आता है। कुछ पेरेंट्स सख्त अनुशासन का डर दिखाते हुए बच्चे से अपनी हर बात मनवाते हैं। ऐसे अभिभावकों के बच्चे थोडी देर के लिए उनकी बात जरूर मान लेते हैं, लेकिन दोबारा जब भी उन्हें मौका मिलता है, वे वही गलतियां दोहराने से बाज नहीं आते। इसी तरह अगर बच्चों को ज्यादा छूट दी जाए तो भी वे अपने पेरेंट्स की बातों को गंभीरता से नहीं लेते। बच्चों को सही परवरिश देने के लिए पेरेंट्स को हमेशा संतुलित व्यवहार अपनाना चाहिए।

एकमत हों अभिभावक

सेहत और सुरक्षा की दृष्टि से भी बच्चे के लिए अनुशासित व्यवहार बेहद जरूरी है। हो सकता है कि वह आपकी कुछ बातें न माने या अपना विरोध प्रदर्शित करने के लिए हर काम आपकी मर्जी के खिलाफ करने की कोशिश करे। ऐसे में आपको धैर्य से काम लेना चाहिए। पेरेंट्स के सतत प्रयास से ही बच्चे को अनुशासित किया जा सकता है। अगर उसकी किसी गलती के लिए मां उसे डांट रही हो और पिता बीच में रोक-टोक करने लगें तो ऐसे में बच्चा मां की बात कभी नहीं मानेगा। उसे सही व्यवहार सिखाने से पहले यह बहुत जरूरी है कि माता-पिता मिलकर यह तय करें कि वे अपने बच्चे से अनुशासन के किन नियमों का पालन करवाना चाहते हैं। उसके बाद वे उससे सिर्फ उन्हीं नियमों का पालन करने को कहें, जिन्हें उसके लिए निर्धारित किया गया है। मिसाल के तौर पर अगर मोबाइल पर गेम्स खेलने के लिए आपने उसे एक घंटे का समय दिया है तो निश्चित अवधि पूरी होने के तुरंत बाद उससे फोन वापस मांग लें। इसके बाद चाहे वह कितनी भी जिद करे, आप उसकी बात न मानें। अगर आप संयुक्त परिवार में रहती हैं तो अन्य सदस्यों को भी मना कर दें कि ऐसे मामलों में वे बच्चे के साथ लाड न जताएं। इससे उसे यह बात पक्के तौर पर समझ आ जाएगी कि जिद करने से उसके खेलने की समय-सीमा नहीं बढाई जाएगी। इसलिए वह अगली बार से आपके द्वारा बनाए गए नियमों को कभी नहीं तोडेगा।

माहौल हो खुशनुमा

अनुशासन के नियम बनाते समय बच्चे का व्यक्तित्व, उम्र और स्थितियों का भी ध्यान रखें। कुछ बच्चे मूलत: शांत प्रकृति के होते हैं। ऐसे बच्चों पर जबरन अनुशासन के नियम न थोपें। इसके अलावा केवल उन्हीं बातों के लिए स्पष्ट नियम बनाएं, जिनसे आसपास के लोगों या बच्चे की सुरक्षा को खतरा हो। उसे साफ तौर से समझा दें कि ऐसे नियमों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। ध्यान रहे कि बच्चे को अनुशासित करने का मतलब यह नहीं है कि उसकी शरारतों पर सख्त पाबंदी लगा दी जाए। इससे उसका व्यक्तित्व दब्बू बन जाएगा। आप उसे खुलकर हंसने-खेलने का मौका दें। इससे वह खुद को आपके करीब महसूस करेगा। अगर आप प्यार और अनुशासन के बीच सही तालमेल रखेंगे तो इससे बच्चे के व्यक्तित्व का विकास सहज ढंग से होगा।

अपनाएं पॉजिटिव पेरेंटिंग

-उसकी छोटी-छोटी गलतियों पर ध्यान देने के बजाय अच्छे प्रयासों की प्रशंसा करें।

-बच्चे के नकारात्मक व्यवहार को रोकने के लिए भी सकारात्मक तरीके अपना सकती हैं। अगर आप उसे विडियो गेम्स खेलने से रोकना चाहती हैं तो सीधे मना करने के बजाय उससे कहें कि चलो आज हम कैरम खेलते हैं, बहुत मजा आएगा।

-अगर एक बार मना करने पर वह आपकी बात न माने तो उसे पांच मिनट तक मनमानी करने के लिए छोड दें और अगली बार कुछ भी कहने के बजाय उसे सिर्फ नाराजगी भरी निगाहों से देखें। यकीन मानिए यह तरीका बहुत कारगर साबित होता है।

-बच्चे की प्रशंसा करने के तुरंत बाद उससे कोई काम करने को कहें। मसलन, तुमने कितनी सुंदर ड्राइंग बनाई है। चलो, अब स्टडी टेबल की सफाई कर लो। ऐसे में वह मना नहीं कर पाएगा।

(चाइल्ड काउंसलर पूनम कामदार से बातचीत पर आधारित)

विनीता


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