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शुरूआत एक नए सफर की

कितना अच्छा लगता है न जब स्कूल के डेली रूटीन में कुछ बदलाव हो जाता है। कॉलेज  लाइफ में कदम रखते ही बड़े व जि़म्मेदार हो जाने की अनुभूति मन में खुद  ब खुद आने लगती है।

By Edited By: Published: Tue, 06 Sep 2016 09:52 AM (IST)Updated: Tue, 06 Sep 2016 09:52 AM (IST)
शुरूआत एक नए सफर की
स्कूल लाइफ खत्म होते ही कॉलेज जाने की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। आखिर स्कूल के अनुशासित माहौल से निकलकर कॉलेज में कुछ आजादी मिलने की उम्मीद जो होती है। न तो सुबह बहुत जल्दी जगने की हडबडाहट होती है और न ही टाई और शूज ढूंढने का झंझट। कई कॉलेजों में कैजुअल ड्रेस अलाउड होती है जिससे स्टूडेंट्स के मन में जिंदगी के इस नए फेज को लेकर बहुत उत्साह रहता है। हो भी क्यों न? सालों से चली आ रही उस यूनिफॉर्म से छुटकारा जो मिल जाता है। वॉर्डरोब बदलने से लेकर कई स्टूडेंट्स तो अपना मेकओवर भी कर लेते हैं। नए कपडे, नया बैग, नई एक्सेसरीज, नए फुटवेयर्स... हर कोई चाहता है कि पहले ही दिन से वह अपने कॉलेज में छा जाए पर फ्रेशर्स के मन में उमंग के साथ ही डर व झिझक भी होती है। स्कूल के सीनियर से अब वे कॉलेज के फ्रेशर जो बन जाते हैं। वे दिन और थे... स्कूल में इलेवेंथ व ट्वेल्थ क्लास के स्टूडेंट्स को उनकी सीनियॉरिटी के आधार पर कई अहम जिम्मेदारियां सौंप दी जाती हैं। कहीं वे किसी ग्रुप के हेड होते हैं तो कहीं प्रिफेक्ट तो कहीं कुछ और...। स्कूल में जूनियर्स के बीच अपनी धाक जमवाने वाले ये सीनियर्स कॉलेज में नए सिरे से जिंदगी की शुरुआत करते हैं। फ्रेशर के तौर पर अपनी नई पहचान बनाने की जद्दोजहद में लग जाते हैं। स्टूडेंट हर्ष राज कहते हैं, 'कॉलेज के फस्र्ट डे को लेकर मेरे मन में कई तरह की बातें थीं। खुशी के साथ ही कुछ डर भी था कि कैसा माहौल होगा वहां का, रैगिंग होगी तो कैसे सामना करूंगा। आज उस दिन को याद करता हूं तो लगता है कि पहले दिन ने ही मुझे काफी जिम्मेदार बना दिया था। उसी दिन मुझे एहसास हुआ था कि पढाई के अलावा भी जिंदगी में बहुत कुछ है। कई ऐसी बातें और टम्र्स को मैंने जाना, जिनसे मैं पहले परिचित नहीं था।' राह आसां न थी किसी विषय में कम रुचि होने के बावजूद स्कूल में हर विषय पर बराबर ध्यान केंद्रित करना जरूरी होता है। प्रतिस्पर्धा के इस दौर में पसंदीदा विषय के साथ बेस्ट कॉलेज में एडमिशन मिलना बिलकुल आसान नहीं होता। बोर्ड एग्जैम्स व ग्रेजुएशन के एग्जैम्स के बाद बारी आती है विभिन्न कोर्सेज के एंट्रेंस एग्जैम्स की। इसके लिए स्टूडेंट्स जीतोड मेहनत कर अपनी सफलता का परचम लहराते हैं। आजकल यंगस्टर्स लीक से हटकर स्ट्रीम चुनने से घबराते नहीं हैं। इसमें उन्हें अपनी तैयारियों के साथ ही घरवालों को मनाने में भी मेहनत करनी पडती है। पत्रकारिता के नामी इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने वाली विनीता मंडल बताती हैं, 'यहां का एंट्रेंस टेस्ट बहुत कठिन होता है। रिटन टेस्ट क्लियर होने के बाद मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था पर फिर इंटरव्यू की टेंशन सताने लगी थी। मैं दिन-रात पढती रहती थी। सीनियर्स के मार्गदर्शन और अपनी कठिन मेहनत के दम पर आज मैं वहां अपने लिए सीट रिजर्व कर चुकी हूं। पहले दिन वहां कदम रखना किसी सपने के पूरे होने जैसा था। एक पल को तो विश्वास ही नहीं हुआ था कि मैं वाकई में वहां हूं, जिस जगह को जन्नत मानती हूं। उसी दिन मैंने निश्चय कर लिया कि यहां से निकलने तक मैं अपनी उम्दा पहचान बना लूंगी। जिन लोगों को मैं पहले समझाती रह जाती थी कि इस फील्ड में क्यों जाना चाहती हूं, आज वे मुझ पर गर्व महसूस करते हैं।' आगाज प्रोफेशनल लाइफ का एडमिशन के बाद के कुछ दिन तो साथियों को जानने-समझने व अपना परिचय देने में ही निकल जाते हैं। कभी टीचर्स, कभी सीनियर्स तो कभी साथ वाले, हर कोई फ्रेशर्स के बारे में जानने को उत्सुक रहता है। बार-बार उन्हें अपने और अपनी रुचियों के बारे में बताने से कभी-कभी झुंझलाहट भी होने लगती है। साथ में यह भी समझाना पडता है कि इस कोर्स में दिलचस्पी क्यों है। अंतर्मुखी लोगों को तो इस इंट्रो सेशन में खासी समस्या आती है पर उसके बाद उनके दोस्तों की भी कोई कमी नहीं रहती है। यंग प्रोफेशनल तरुण शुक्ला अपनी यादें ताजा करते हुए बताते हैं, 'कॉलेज जाने से पहले मेरे मन में उत्साह और डर, दोनों ही था। ओरिएंटेशन प्रोग्राम में स्टूडेंट्स की भीड देख मैं डर गया था। मुझे घबराहट हो रही थी कि इतने लोगों के सामने मैं कैसे और क्या बोलूं। न ही यह समझ आ रहा था कि इन नए लोगों की तरफ दोस्ती का हाथ कैसे बढाऊं पर सब कुछ अपने आप होता चला गया। मेरे कई दोस्त बने और ऐसे सेशंस की वजह से ही हमारी दोस्ती इतनी प्रगाढ हो सकी और हम सब एक-दूसरे को समझ सके। मैंने सीनियर्स से रैगिंग के तमाम किस्से सुन रखे थे, इसलिए थोडा डरा हुआ था पर मेरे साथ वैसा कुछ हुआ नहीं। कॉलेज लाइफ ने ही मुझे प्रोफेशनल बना दिया। वहां से जो सीखा, आज मेरे बहुत काम आता है।' उम्मीदों का नया सफर कॉलेज लाइफ का मतलब सिर्फ आजादी, फैशन और दोस्ती नहीं होना चाहिए। इस समय का भरपूर इस्तेमाल अपने करियर को सही दिशा देने में करना चाहिए। क्लासेज बंक कर सारा दिन दोस्तों के साथ घूमने-फिरने के बजाय अपने नोट्स बनाने में ध्यान लगाना चाहिए। इससे एग्जैम टाइम में यहां-वहां भटकना नहीं पडेगा। पोस्ट ग्रेजुएट अपूर्वा कहती हैं, 'फस्र्ट सेमेस्टर में मैं बहुत मस्ती करती थी। नई-नई आजादी का पूरा फायदा उठाती थी। यहां तक कि क्लासेज भी बहुत कम अटेंड करती थी। इसका नुकसान मुझे एग्जैम टाइम में उठाना पडा। अटेंडेंस तो कम थी ही, नोट्स भी पूरे नहीं थे। फिर मुझे अपनी गलती समझ आई और सेकंड सेमेस्टर के फस्र्ट डे से ही पूरी लगन से पढाई में जुट गई थी। सही मायने में कॉलेज में वही मेरा फ्रेशर डे था।' कोशिश कर कॉलेज में सबसे अच्छे रिश्ते बनाकर चलना चाहिए क्योंकि यहां बनाए गए कॉन्टैक्ट्स प्रोफेशनल लाइफ में भी बहुत काम आते हैं। ऐसे लोगों की संगति में रहें जिनसे आप कुछ सीख सकें और आपका हर तरह से विकास हो सके। कॉलेज में अपने पहले दिन को बहुत खास बनाना चाहिए क्योंकि सालों बाद भी वह दिन आपकी यादों से कभी नहीं मिटता। पहले दिन से ही मन में वहां आने का मकसद साफ होना चाहिए। इससे आप भटकेंगे नहीं। रैगिंग या कोई और परेशानी होने पर हमेशा अथॉरिटीज को सूचित किया जाना चाहिए ताकि समस्या न बढे। दीपाली पोरवाल

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