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स्मार्ट पेरेंटिंग

अपनी 4 वर्षीया बेटी को मैं जब भी अपने साथ शॉपिंग के लिए लेकर जाती हूं तो वह एक साथ कई चीज़ें खरीदने की जि़द करने लगती है। अगर उसकी मांग पूरी नहीं होती तो वह बुरी तरह रोने-चिल्लाने लगती है। उसकी इस आदत की वजह से मुझे दूसरों के

By Edited By: Published: Wed, 28 Jan 2015 01:29 PM (IST)Updated: Wed, 28 Jan 2015 01:29 PM (IST)
स्मार्ट पेरेंटिंग

अपनी 4 वर्षीया बेटी को मैं जब भी अपने साथ शॉपिंग के लिए लेकर जाती हूं तो वह एक साथ कई चीजें खरीदने की जिद करने लगती है। अगर उसकी मांग पूरी नहीं होती तो वह बुरी तरह रोने-चिल्लाने लगती है। उसकी इस आदत की वजह से मुझे दूसरों के सामने बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है। उसे सुधारने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?

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रश्मि सिंघल, दिल्ली

बच्चों का जिद करना स्वाभाविक है। अगर उनकी मांगें पूरी न की जाएं तो अपनी बात मनवाने के लिए वे रोने-चिल्लाने जैसी हरकतें करते हैं। शॉपिंग पर जाने से पहले एक लिस्ट जरूर बनाएं। अगर उसे कुछ और लेना है तो उस वस्तु का नाम लिस्ट में दर्ज करवा दे। उसे बताएं कि हमें सिर्फ यही चीजें खरीदनी हैं। इसके अलावा उसे कुछ और नहीं दिलवाया जाएगा। उसकी ऐसी आदत को किसी भी हाल में बढावा न दें। अगर आप एक बार उसकी बात मान लेंगी तो वह ऐसी हरकतों को अपना हथियार बना लेगी। इसलिए अगर वह किसी चीज के लिए जिद करे तो आप अपनी नाराजगी दिखाएं और उसकी बात न मानें। आपके सतत प्रयास से दो-तीन महीनों में उसकी यह आदत अपने आप सुधर जाएगी।

मेरा 8 वर्षीय बेटा खेलकूद के दौरान मामूली सी हार को भी सहजता से स्वीकार नहीं पाता। हारने के बाद वह बुरी तरह बौखला जाता है। हम उसे समझाने की बहुत कोशिश करते हैं कि इन छोटी-छोटी बातों से कोई फर्क नहीं पडता, पर उस पर हमारी बातों का कोई असर नहीं होता। स्कूल के टेस्ट में कम नंबर आने पर वह कई दिनों तक उदास रहता है। उसे कैसे समझाऊं?

श्रावणी मित्तल, चंडीगढ

कहीं आपका बेटा इकलौता तो नहीं है? अकसर इकलौते बच्चे अपनी हार स्वीकार नहीं पाते। उसे समझाएं कि जीवन में हार-जीत और खुशी-गम का आना-जाना लगा रहता है। आप उसके साथ नियमित रूप से क्वॉलिटी टाइम बिताएं। उसे दूसरे बच्चों के साथ खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। उसके मन में यह विश्वास जगाएं कि जीत की तरह हार भी सहज है। चाहे वह जीते या हारे दोनों ही स्थितियों में आप उसे भरपूर प्यार देंगी। अगर एक-दो महीने तक आपकी इन कोशिशों के बावजूद उसकी ऐसी आदतों में कोई बदलाव न आए तो उसे चाइल्ड काउंसलर के पास ले जाएं।

मेरे 7 वर्षीय बेटी मेरे साथ विवाह जैसे सामाजिक समारोहों में जाना नहीं चाहती। अगर मैं उसे साथ ले जाने की कोशिश करती हूं तो वह कहती है कि भीड से मुझे घबराहट होती है। इस समस्या का क्या समाधान है?

हर्षा जैन, कोटा

आपकी बेटी को सोशल फोबिया हो सकता है। उसके मन से यह डर निकालने के लिए शुरुआत में उसे घर के सहज और सुरक्षित माहौल में सोशलाइज करने की कोशिश करें। उसके हमउम्र दोस्तों को घर बुलाएं। वीकएंड में उनके लिए पार्टी का आयोजन करें। जब वह सहज हो जाए तो उसे उन्हीं बच्चों के साथ खेलने के लिए पार्क में भेजें। उसे उसकी पसंद की किसी हॉबी क्लास में भी भेजना शुरू करें। वहां उसे नए लोगों से मिलने-जुलने का अवसर मिलेगा। इससे धीरे-धीरे उसका डर दूर हो जाएगा और वह शादी-विवाह जैसी ज्य़ादा भीड वाली जगहों पर जाने से नहीं कतराएगी।

मेरा 13 वर्षीय बेटा पढाई में तो ठीक है, लेकिन स्कूल की ओर से दिए जाने वाले प्रोजेक्ट वर्क में वह जरा भी दिलचस्पी नहीं लेता। उसका प्रोजेक्ट वर्क मुझे खुद तैयार करना पडता है। मैं उसे हर कार्य में परफेक्ट बनाना चाहती हूं, पर वह मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेता। इस समस्या का क्या समाधान है?

अंजलि सिंह, भोपाल

आपका परफेक्शनिस्ट होना बच्चे के लिए ठीक नहीं है। कोई भी इंसान हर काम में परफेक्ट नहीं होता। इसलिए आप उसकी अन्य योग्यताओं को उभारने की कोशिश करें। हो सकता है कि उसे परफेक्ट बनाने की कोशिश में आप उसे बार-बार रोकती-टोकती हों और उसके हर काम में गलतियां निकालती हों। ध्यान रहे कि वह अभी टीनएज में है। लगातार ऐसा करने पर वह आपसे दूर हो जाएगा और आपके साथ उसका भावनात्मक बंधन कमजोर पड सकता है। इसलिए उसकी खूबियों की तारीफ करना न भूलें। साथ ही आप खुद उसका प्रोजेक्ट वर्क पूरा करके उसकी आदत न बिगाडें। उसे स्पष्ट शब्दों में समझा दें कि जब तक वह आपके साथ खुद बैठकर कोशिश नहीं करेगा, आप उसका प्रोजेक्ट वर्क पूरा नहीं करवाएंगी। उसके साथ रिलैक्स होकर बातचीत का समय जरूर निकालें।

मेरी 11 वर्षीया बेटी दिनोदिन अनुशासनहीन होती जा रही है। किसी छोटे से काम के लिए भी उसे कई बार टोकना पडता है। जब हम उससे घर का कोई काम कहते हैं तो वह चिढकर जवाब देती है। उसकी यह आदत कैसे सुधरेगी?

श्रुति सिंह, लखनऊ

किसी भी काम के लिए अपनी बेटी को बार-बार टोकना छोड दें। इससे चिढकर वह आपकी बातों को नजरअंदाज करने लगेगी। अनुशासित करने के लिए उसे प्यार से समझाएं कि घर के कुछ कार्यों को लेकर आप उससे कुछ अपेक्षाएं रखती हैं। जब वह अपने छोटे-छोटे कार्यों से आपकी उम्मीदें पूरी करती है तो आपको बेहद खुशी होती है। आप उसके साथ बातचीत करके उसकी सहमति के आधार पर घरेलू कार्यों के लिए दो-तीन नियम बनाएं और उनका सही ढंग से पालन करने को कहें। जब वह अनुशासन के नियमों का अच्छी तरह पालन करे तो उसे शाबाशी देना न भूलें।

बचाव अनुशासनहीनता से

-बच्चे को अनुशासित बनाने के लिए उसे छोटी उम्र से ही सही और गलत व्यवहार के बीच फर्क समझाएं।

-उसके हर अच्छे कार्य और व्यवहार की प्रशंसा करें। इससे प्रोत्साहित होकर वह अपनी गलतियां सुधारने के लिए प्रेरित होगा।

-बच्चे हमेशा माता-पिता का ही अनुसरण करते हैं। इसलिए आपकी दिनचर्या और व्यवहार में भी अनुशासन होना चाहिए।

डॉ. रीमा सहगल चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट


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