क्या परवरिश चुनौतीपूर्ण हो गई है?
हम सब अपने बच्चों को कामयाब बनाना चाहते हैं, लेकिन बदलते समय के साथ अभिभावकों के लिए पेरेंटिंग चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। आइए जानते हैं इस विषय पर क्या सोचती हैं दोनों पीढिय़ां।
हम सब अपने बच्चों को कामयाब बनाना चाहते हैं, लेकिन बदलते समय के साथ अभिभावकों के लिए पेरेंटिंग चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। आइए जानते हैं इस विषय पर क्या सोचती हैं दोनों पीढिय़ां।
बढी हैं मुश्किलें कुलदीप मक्कड, लुधियाना
पहले पेरेंट्स को बच्चों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत नहीं होती थी क्योंकि तब जीवनशैली सहज और तनावमुक्त थी। माता-पिता के पास बच्चों के लिए पर्याप्त समय होता था। तब करियर के इतने विकल्प मौजूद नहीं थे, लिहाजा उन्हें बच्चों की परवरिश के लिए अतिरिक्त प्रयास की जरूरत नहीं पडती थी। आज स्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। आजकल माता-पिता दोनों जॉब करते हैं। ऐसी स्थिति में उनके पास हमेशा समय की कमी रहती है। दूसरी ओर टीवी, मोबाइल और इंटरनेट जैसी चीजें बच्चों की जीवनशैली का अहम हिस्सा बन चुकी हैं और वे उनका दुरुपयोग करने से बाज नहीं आते। समाज का माहौल इतना बिगड चुका है कि टीनएज में पहुंचते ही कुछ बच्चे सिगरेट, एल्कोहॉल और ड्रग्स जैसी नुकसानदेह चीजों का सेवन शुरू कर देते हैं। इसके अलावा आज उनके पास करियर के ढेर सारे विकल्प मौजूद हैं। यह बहुत अच्छी बात है, पर इसकी वजह से कई बार वे असमंजस में पड जाते हैं। उनके लिए सही और गलत के बीच फर्क कर पाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में पेरेंट्स की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने बच्चे का सही मार्गदर्शन करें।
जागरूक हैं अभिभावक रुचि चौरसिया, इटारसी
यह सच है कि अब बच्चों की परवरिश बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई है, पर इसके साथ एक सकारात्मक बदलाव यह भी नजर आ रहा है कि आज के अभिभावक अपने बच्चों की परवरिश के प्रति जागरूक हो गए हैं। मैं स्कूल टीचर हूं और बच्चों के साथ काम करते हुए मुझे भी यह महसूस होता है कि आज के जमाने में बच्चों के अनुभवों का दायरा तेजी से विस्तृत हो रहा है। इसलिए पेरेंट्स के लिए यह बेहद जरूरी है कि वे अपने बच्चों के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताते हुए उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें। उनके दोस्तों और गतिविधियों पर पूरी नजर रखें, ताकि उनमें गलत आदतें विकसित न हों।
विशेषज्ञ की राय
इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज के इस बदलते दौर में बच्चों की परवरिश बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई है। कडी प्रतिस्पर्धा के इस युग में शुरुआत से ही बच्चों की परवरिश इस ढंग से करनी पडती है कि बडे होने के बाद वे अपने लिए मनचाहा करियर चुन सकें। यह तभी संभव है जब अभिभावक अपने बच्चे के साथ क्वॉलिटी टाइम बिताएं, उसकी क्षमताओं और रुचियों को पहचानते हुए उसका सही मार्गदर्शन करें। मैं कुलदीप मक्कड की इस बात से सहमत हूं कि आजकल ज्यादातर स्त्रियां भी जॉब करती है। इसलिए उनके पास अपने बच्चों के लिए पर्याप्त समय नहीं होता, पर इसका दूसरा पहलू यह भी है कि जब कोई मां जॉब के लिए घर से बाहर जाती है तो उसे समाज में आ रहे सभी नए बदलावों के बारे में सही जानकारी होती है। इसलिए वह अपने बच्चे की परवरिश ज्य़ादा अच्छे ढंग से कर पाती है। युवा पाठिका रुचि चौरसिया का यह कहना भी सही है कि समय के साथ अभिभावकों में भी जागरूकता आ रही है और वे अपने बच्चे को सही रास्ता दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि समय के साथ परवरिश के तौर-तरीकों में बदलाव आना स्वाभाविक है और हमें इस बदलाव को सहजता से स्वीकारते हुए वक्त की जरूरत के मुताबिक अपने बच्चों की परवरिश करनी चाहिए।
पूनम कामदार, बाल मनोवैज्ञानिक