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सुनने से बन जाएगा बिगड़ा काम

क्या आप एक अच्छे वक्ता हैं?अगर हां तो आपको एक अच्छा श्रोता बनने की भी आवश्यकता है।प्रोफेशनल दुनिया में बोलने के साथ-साथ सुनने की कला भी सीखनी जरूरी है,तभी आप लक्ष्य तक पहुंच पाएंगे

By Edited By: Published: Fri, 24 Jun 2016 06:36 PM (IST)Updated: Fri, 24 Jun 2016 06:36 PM (IST)
सुनने से बन जाएगा बिगड़ा काम
हमेशा बोलते रहना, दूसरे की बात बिना सुने-समझे प्रतिक्रिया जताना, विषय की जानकारी न होने के बावजूद यह जाहिर करना कि उसके बारे में बहुत पता है....अगर यह आदत आपके भीतर भी है तो संभल जाएं। इन आदतों के कारण प्रोफेशनल वल्र्ड में पिछड सकते हैं। हो सकता है, आप अच्छे वक्ता हों, यह भी हो सकता है कि कुछ विषयों में आपकी नॉलेज बाकियों की तुलना में ज्य़ादा हो, लेकिन अच्छा वक्ता होने के साथ-साथ अच्छा श्रोता भी बनना चाहिए। सुनने की कला सीख लें तो मंंजिले आसान हो सकती हैं। सुनने और मनन करने से विषय को गहराई से समझने में तो मदद मिलती ही है, उसे दूसरे के नजरिये से भी देख पाते हैं। किसी भी विषय को समग्रता में जानना आगे बढऩे की जरूरी शर्त है। फिर वही बोरिंग लेक्चर इंटरनेशनल लिस्निंग एसोसिएशन के एक अध्ययन के अनुसार, हम जो भी सुनते हैं, उसका 50 प्रतिशत ही हमें याद रहता है। अगर सुने गए को हम नोट न करें तो यह मेमोरी में बस 20 प्रतिशत तक ही शेष रह जाता है। अकसर किसी मीटिंग, सेमिनार या वर्क शॉप में अपनी पसंद का विषय न होने पर लोग कहने लगते हैं, 'क्या पकाऊ लेक्चर है यार...कई बार मीटिंग्स को बहाने बना कर टाल देते हैं। ऐसा करना करियर के लिहाज से ठीक नहीं है। मीटिंग्स, सेमिनार, कॉन्फ्रेंस में बढ-चढकर हिस्सा नहीं लेंगे तो आपको अपने काम से संबंधित नई जानकारियां पता नहीं चल सकेंगी और आप पिछड जाएंगे। सुनने की कला कुछ लोग जब बात करते हैं तो सामने वाले को इतना मौका तक नहीं देते कि वह भी अपनी राय रख सके। सामने वाला आपकी बातों को ठीक से समझ रहा है कि नहीं, यह जाने बिना वे बोलते रहते हैं। कोई भी संवाद एकतरफा नहीं होता। सुनते समय कई बार हम वक्ता की भावनाओं, ज्ञान, अनुभव, शारीरिक हाव-भाव के आधार पर परिस्थिति व वस्तुस्थिति का आकलन कर लेते हैं। इसे एक्टिव लिस्निंग कहा जाता है। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि अच्छा श्रोता ही अच्छे लीडर में तब्दील हो सकता है। बनें अच्छे श्रोता स्टेप 1- ध्यान से सुनें कम्युनिकेशन स्किल्स के अंतर्गत सामने वाले की बात को ध्यान से सुनना बेहद जरूरी है। वक्ता जब संवाद कर रहा हो तो इस बीच ध्यान भटकाने वाली चीजें न करें। इसकी जगह वक्ता को प्रोत्साहित करने के लिए हां में सिर हिलाएं, उपयुक्त बात पर मुस्कुराएं या अपनी बॉडी लैंग्वेज से जाहिर करें कि आप उनकी बात समझ रहे हैं। संवाद के बीच में भूलकर भी बालों को संवारने, बात खत्म हुए बिना बीच में बोलने, पैर हिलाने, पेन से खेलने...जैसे कार्यों से बचें। स्टेप 2- बॉडी लैंग्वेज सुधारें कम्युनिकेशन का बडा हिस्सा है बॉडी लैंग्वेज। इसके माध्यम से पता चलता है कि किस स्थिति के लिए कैसे और क्या बात करनी चाहिए। जैसे कोई दुखद समाचार हो तो उस समय मुस्कुराने से स्थिति बिगड सकती है, इसलिए ऐसे मौकों पर गंभीर रहें। स्टेप 3- भटकाव न हो कभी-कभी हम सुनने के बजाय उतावले होकर संवाद के बीच में कूद पडते हैं। इस बात से जाहिर होता है कि आप सामने वाले की बात नहीं सुन रहे थे बल्कि अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। जब तक सही मौका न हो या आपसे बोलने को न कहा जाए, तब तक आप अपनी प्रतिक्रिया न व्यक्त करें। स्टेप 4- रोको, टोको मत हो सकता है कि आप सामने वाले की बात से असहमत हों। ऐसी स्थिति में उस समय चुप रहना ही बेहतरीन विकल्प है। अपनी असहमति जताने के लिए उपयुक्त मौके या उसकी बात खत्म होने का इंतजार करें। स्टेप 5- खुला रखें दिमाग जब आप दिमाग खुला रखेंगे, तभी सामने वाले की बातों को समझ पाएंगे। जब आपका ध्यान सामने वाले व्यक्ति की बातों पर होगा तो आप कभी उतावले होकर बीच में नहीं बोलेंगे बल्कि मन ही मन बातों पर मनन करेंगे और उसे समझने की कोशिश करेंगे। स्टेप 6- फीडबैक है जरूरी आप अच्छे श्रोता तभी कहलाएंगे, जब आप उचित संवाद पर अपना फीडबैक देंगे। इससे वक्ता को यह लगेगा कि आपने उसकी बातों को ध्यानपूर्वक सुना है। उचित फीडबैक देना एक अच्छे श्रोता की पहचान है। यह प्रतिक्रिया वक्ता की बात खत्म होने के बाद ही जतानी चाहिए। स्टेप 7- नोट्स बनाएं बातचीत के बीच-बीच में कुछ पॉइंट्स भी नोट करते जाएं, ताकि जहां बात न समझ आ रही हो या जहां मन में कुछ सवाल पैदा हो रहे हों, उन्हें बाद में अपने वक्तव्य में रख सकें। इससे वक्ता की कही गई सभी महत्वपूर्ण बातें याद रहेंगी और चुनिंदा बिंदुओं पर अपनी बात रखेंगे तो वक्ता पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पडेगा। स्टेप 8- माहौल में ढलें सेमिनार हो या कोई वर्कशॉप, ऐसी जगहों पर खुद को माहौल के हिसाब से ढालने की कोशिश करें। ऐसा माहौल बनाएं कि वक्ता अपनी बातें अच्छी तरह प्रेजेंट कर पाए। बोलने वाले के लिए सिर्फ आपकी मौजूदगी ही जरूरी नहीं है, बातें शांतिपूर्ण माहौल में हों, यह भी जरूरी है। इसलिए अनुशासित रहें और अपनी बारी आने पर क्या बोलेंगे, इसकी भी तैयारी करके जाएं। स्टेप 9- रिजल्ट तुरंत जरूरी नहीं कई बार हम सामने वाले की बातों से तुरंत निष्कर्ष निकाल लेते हैं लेकिन बातों का हमेशा वही मतलब नहीं होता, जो हम समझ रहे हैं। कई बार वक्ता की बात पूरी होते-होते बदल जाती है। पूरी बात सुनना इसलिए भी जरूरी है कि तुरंत नतीजा निकाल कर शर्मिंदा न हों। स्टेप 10- गौर फरमाएं प्रेजेंटेशन या मीटिंग में अच्छे श्रोता बनने के कई मौके आते हैं। खुद को ज्य़ादा जानकार मानकर अपनी बातों पर अडे न रहें। हो सकता है कि आपके कलीग्स आपसे बेहतर आइडिया दें। उनकी सराहना करें। साथ ही बोलने वाले के साथ आई कॉन्टैक्ट बनाए रखें। ऐसा न करें सुनते वक्त बालों में हाथ फेरना पेन या किसी अन्य चीज से खेलना जम्हाई या उबासी लेना अन्य लोगों की तरफ देखना बीच में बोल पडऩा विषय पर कुछ और फीडबैक देना हाथ व पैर हिलाना जबर्दस्ती हंसना गीतांजलि (नीरू आनंद, निदेशक ऐक्रिटी मैनेजमेंट (करियर कंसल्टेंट कंपनी) से बातचीत पर आधारित)

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