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संपूर्ण जगत के पालनकर्ता भगवान जगन्नाथ

सर्वेश्वर श्रीकृष्ण का एक अवतार जगन्नाथ जी के रूप में भी संपूर्ण जगत में प्रसिद्ध है। इस संसार के रथ को चलाने वाले भगवान जगन्नाथ जी का पावन धाम उड़ीसा स्थित जगन्नाथपुरी में है, जिसे चार धामों में से एक माना गया है।

By Edited By: Published: Sat, 20 Jun 2015 02:54 PM (IST)Updated: Sat, 20 Jun 2015 02:54 PM (IST)

पूर्णिमा व्रत 2 जुलाई

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कमला एकादशी 12 जुलाई

अमावस्या 15 जुलाई

रथयात्रा 17 जुलाई

वरद विनायक चतुर्थी 19 जुलाई

देवशयनी एकादशी 27 जुलाई

गुरु पूर्णिमा 31 जुलाई

सर्वेश्वर श्रीकृष्ण का एक अवतार जगन्नाथ जी के रूप में भी संपूर्ण जगत में प्रसिद्ध है। इस संसार के रथ को चलाने वाले भगवान जगन्नाथ जी का पावन धाम उडीसा स्थित जगन्नाथपुरी में है, जिसे चार धामों में से एक माना गया है।

प्रचलित कथा

एक बार सुभद्रा जी अपने दोनों भाइयों श्रीकृष्ण और बलराम के साथ भ्रमण के लिए जा रही थीं। देवर्षि नारदजी ने जब इन तीनों का यह स्वरूप देखा तो हाथ जोडकर यह प्रार्थना की, 'हे! सर्वेश्वर आप तीनों इसी रूप में विराजमान हों। नारद जी की प्रार्थना को स्वीकार करते हुए श्रीकृष्ण ने कहा कि कलियुग में हम तीनों भाई-बहन इसी तरह काष्ठ के विग्रह के रूप में स्थित होंगे। इसी घटना की स्मृति में प्रत्येक वर्ष आषाढ मास की शुक्ल पक्ष द्वितीया के दिन रथयात्रा महोत्सव मनाया जाता है।

इस संबंध में प्रचलित कथा इस प्रकार है-उत्कल प्रदेश के राजा इंद्रद्युम्न श्रीकृष्ण जी के परम भक्त थे। एक बार उन्होंने लकडी के बडे टुकडे से भगवान की प्रतिमा बनवाने का निश्चय किया, देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा जी बढई के रूप में राजा के समक्ष उपस्थित हो गए। मूर्तियां बनाने से पहले उन्होंने राजा के सामने शर्त रखी कि जब तक मूर्ति बनाने का कार्य चलेगा, कोई भी व्यक्ति कक्ष के अंदर नहीं आएगा। कार्य पूर्ण हो जाने पर मैं स्वयं कक्ष से बाहर आऊंगा, राजा ने शर्त स्वीकार कर ली। विश्वकर्मा जी ने गुंडीचा मंदिर के कक्ष में कार्य प्रारंभ किया, काफी समय बीत जाने पर जब भगवान विश्वकर्मा कक्ष से बाहर नहीं निकले तो राजा को किसी अनहोनी की शंका हुई और उन्होंने कक्ष का द्वार खोल दिया। शर्त के अनुसार भगवान विश्वकर्मा अधूरी प्रतिमाओं को छोडकर चले गए तो आकाशवाणी के माध्यम से भगवान ने यह घोषणा की, 'हे राजन! दुखी मत हों, हम पृथ्वी पर इसी रूप में पूजे जाएंगे और हम अपूर्ण होकर भी पूर्ण हैं। इस तरह अधूरी प्रतिमा पूज्य हो गईं।

महोत्सव की अवधि

आषाढ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को संपूर्ण भारतवर्ष में रथयात्रा उत्सव के रूप में मनाया जाता है, जिसका विशेष समारोह जगन्नाथ पुरी में आयोजित होता है। पुरी का रथयात्रा उत्सव विश्व प्रसिद्ध है। रथयात्रा की अवधि आषाढ शुक्ल द्वितीया से दशमी तक है। जिस वर्ष के आषाढ मास में अधिकमास होता है, उस वर्ष रथयात्रा के साथ एक विशेष महोत्सव और भी होता है, जिसे नवकलेवर कहते हैं। चूंकि, इस साल आषाढ में अधिक मास पड रहा है। अत: इस वर्ष यह उत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा।

रथयात्रा का भव्य उत्सव

प्रतिवर्ष आषाढ मास के शुक्ल पक्ष द्वितीया को घंटे-घडिय़ाल और नगाडों की ध्वनि के बीच रथयात्रा शुरू होती है। हजारों भक्त रथ खींचते है। अपनी बहन सुभद्रा के साथ भगवान श्रीकृष्ण और बलराम तीन अलग-अलग रथों पर विराजमान होकर गुंंडीचा मंदिर पहुंचते हैं, वहां नौ दिन विश्राम के बाद यात्रा वापस आती है। इस वापसी को बहुडाजात्रा कहते है। रथयात्रा महोत्सव कुल दस दिनों तक मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जगन्नाथ जी के दर्शन से मनुष्य को जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।

आत्मिक शांति देता है गरुड पुराण

गरुड पुराण महान पवित्र और पुण्यदायक ग्रंथ है। जिस तरह देवों में जर्नादन श्रेष्ठ हैं और आयुधों में सुदर्शन चक्र श्रेष्ठ है, वैसे ही पुराणों में गरुड पुराण श्रीहरि के तत्व निरुपण की दृष्टि से मुख्य है। प्राचीनकाल में पृथ्वी पर पक्षीराज गरुड ने श्रीहरि विष्णुजी की कृपादृष्टि पाने के लिए कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने गरुडऱाज को अपना वाहन बनने का वरदान दिया। विषों के विनाश की शक्ति दी और कहा कि आप (गरुडऱाज) ही मेरे (विष्णुजी) माहात्म्य को कहने वाली पुराण संहिता का निर्माण करेंगे। आपके द्वारा कही जाने वाली यह संहिता भविष्य में गरुड पुराण के नाम से विख्यात होगी, जैसा स्वरूप मेरा (श्रीहरि) कहा गया है, वैसा ही आपके अंदर भी प्रकट होगा।

मूलरूप से इस पुराण को गरुड जी ने कश्यप ऋषि को सुनाया था। इस महापुराण में श्लोकों की 19,000 संख्या है। इसके 2 खंड हैं (1) पूर्व खंड (2) उत्तरखंड। पूर्वभाग में (पूर्वखंड) आचार कांड है, जिसमें 234 अध्याय हैं। उत्तरखंड में धर्मकांड है, जिसमें 45 अध्याय हैं। इस महापुराण को पढऩे एवं सुनने से मनुष्य के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों की सिद्धि हो जाती है। जिस व्यक्ति के घर में मृत्यु का शोक होता है, वहां योग्य पुरोहित के द्वारा गरुड पुराण का पाठ सुनने से जीवात्मा एवं शोकाकुल परिवार को आत्मिक शांति मिलती है।

संध्या टंडन


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