हेल्थवॉच
बढ़ती उम्र के साथ घटती याद्दाश्त बड़ी परेशानी का सबब बन जाती है। अगर आप इससे बचना चाहते हैं तो सूखे मेवों को अपनी फूड हैबिट का ज़रूरी हिस्सा बना लें। अमेरिका स्थित इलिनोइस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध में यह पाया गया है कि ड्राई फ्रूट्स
बढती उम्र के साथ घटती याद्दाश्त बडी परेशानी का सबब बन जाती है। अगर आप इससे बचना चाहते हैं तो सूखे मेवों को अपनी फूड हैबिट का जरूरी हिस्सा बना लें। अमेरिका स्थित इलिनोइस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध में यह पाया गया है कि ड्राई फ्रूट्स खाने से बुढापे में भी याद्दाश्त दुरुस्त रहती है। प्रमुख शोधकर्ता एरॉन बार्बी के अनुसार सूखे मेवों और फ्लैक्स सीड (अलसी के बीज) में ओमेगा-3 फैटी एसिड सहित कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो बढती उम्र में भी दिमाग की कार्य क्षमता को बेहतर बनाए रखते हैं। यह अध्ययन 65 से 75 वर्ष की आयु वर्ग वाले 40 ऐसे लोगों पर किया गया था, जिनमें अल्जाइमर्स की आशंका पैदा करने वाले जींस मौजूद थे। ऐसे लोगों को कई महीने तक ओमेगा-3 फैटी एसिड से युक्त चीजों जैसे-ड्राई फ्रूट्स, फ्लैक्स सीड्स और मछली का सेवन करने को कहा गया। बाद में वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इन चीजों का सेवन करने वाले लोगों की स्मरण शक्ति में काफी सुधार आया। यह अध्ययन अमेरिका की शोध पत्रिका 'फ्रंटियर्स इन एजिंग न्यूरो साइंस' में प्रकाशित हुआ था।
आसानी से भरेंगे गहरे जख्म
किसी भी दुर्घटना या ऑपरेशन के कारण बन जाने वाले स्थायी घावों के इलाज की दिशा में वैज्ञानिकों को बडी कामयाबी मिली है। चीन के शंघाई इंस्टीट्यूट फॉर बायोलॉजिकल साइंस की शोधकर्ता हु-पिंग ने मांसपेशियों का स्टेम सेल विकसित करने का दावा किया है, जिससे भविष्य में किसी भी स्थायी घाव को भरना संभव होगा। शोध में शामिल वैज्ञानिकों के अनुसार इस तकनीक से न केवल एथलीटों को लाभ होगा, बल्कि इससे गंभीर दुर्घटना या कैंसर की सर्जरी के बाद बनने वाले गहरे जख्मों को भी आसानी से भरना संभव होगा। इस तकनीक के जरिये टेस्ट ट्यूब में बनाए गए स्टेम सेल को व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है, जिससे नई मांसपेशियां बनने लगती हैं और जख्म जल्दी भर जाता है। यह पूरी तरह सुरक्षित है और इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता।
दर्द का एहसास दिलाने वाली जीन की पहचान
हम सब दर्द से दूर भागना चाहते हैं, पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिन्हें दर्द का एहसास ही नहीं होता। यह दर्द से भी ज्य़ादा गंभीर समस्या है। ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दर्द का एहसास कराने वाली जीन का पता लगाने का दावा किया है। सामान्य तौर पर देखा जाता है कि कई लोगों को जन्म से ही दर्द का अनुभव नहीं होता है। इसके कारणों का पता लगाने के लिए अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों का एक दल अध्ययन में जुटा था। टीम ने उस जीन की पहचान करने का दावा किया है, जिससे हमारा मस्तिष्क दर्द को लेकर संवेदनशील होता है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक या-चुन चेन ने बताया कि जिन लोगों में दर्द का एहसास नहीं होता, वे कन्जेनिटल इंसेंसिटिविटी टु पेन (सीआइपी) से ग्रसित होते हैं। शोधकर्ताओं ने सीआइपी से पीडित यूरोप और एशिया के 11 परिवारों का अध्ययन करने के बाद यह पाया कि मानव शरीर में मौजूद जीन पीआरडीएम12 व्यक्ति के मस्तिष्क तक दर्द का संदेश भेजता है और इसकी संरचना में गडबडी या अनुपस्थिति की वजह से ही लोगों को सीआइपी की समस्या होती है, इसके उपचार की दिशा में यह खोज बहुत मददगार साबित होगी।
संभव होगा स्किन कैंसर का इलाज
त्वचा के कैंसर से जूझ रहे लोगों के लिए एक राहत भरी ख्ाबर यह है कि हाल ही में हर्पीज विषाणु की मदद से जेनेटिक इंजीनियरिंग द्वारा त्वचा कैंसर के इलाज में सफलता मिली है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस खोज के बाद स्किन कैंसर के अंतिम चरण में पहुंच गए लोगों का जीवन बचाना संभव होगा। इस विषाणु को ब्रिटेन स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च और दि रॉयल मार्डेसन हॉस्पिटल ने संयुक्त शोध में तैयार किया है। शोधकर्ता केविन हैरिंगटन ने बताया कि विश्व के 64 कैंसर संस्थानों में इनका क्लिनिकल ट्रायल हो चुका है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगले साल तक यह नई दवा बाजार में होगी।
शोर भी बढाता है मोटापा
चौंकिए मत! यह सच है। अगर आप बहुत ज्य़ादा शोर भरे माहौल में या चलती ट्रैफिक वाली सडक के किनारे रहते हैं तो ओबेसिटी और टाइप-2 डायबिटीज के प्रति सचेत हो जाएं। स्वीडन स्थित कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के आधार पर यह चेतावनी दी है। उनका कहना है कि रेलवे लाइन, व्यस्त सडक और एयरपोर्ट के आसपास रहने वाले लोग शोर से अकसर तनावग्रस्त रहते हैं। वातावरण के शोर की वजह से उनके शरीर मे स्ट्रेस हॉर्मोन कॉर्टिसोल का स्तर इतना अधिक बढ जाता है कि शरीर को किसी आकस्मिक ख्ातरे का डर सताने लगता है। तनाव की स्थिति में कोशिकाओं को ऊर्जा की आपूर्ति जारी रहे और व्यक्ति को सुस्ती महसूस न हो इसलिए स्वाभाविक रूप से हमारे शरीर में अधिक मात्रा में फैट जमा होने लगता है, जो मोटापे की वजह बन जाता है। इसलिए वैज्ञानिकों ने यह चेतावनी दी है कि ऐसे वातावरण में रहने वाले लोगों को नियमित मॉर्निंग वॉक और एक्सरसाइज के साथ संतुलित खानपान अपनाना चाहिए।
हॉर्मोन से होगा संतानहीनता का इलाज
नि:संतान दंपतियों के लिए एक अच्छी ख्ाबर यह है कि अब हॉर्मोन रिप्लेस्मेंट थेरेपी से उनका उपचार संभव होगा। नॉटिंघम यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में मौजूद किसपेप्टिन नामक एक नए हॉर्मोन की खोज की है, जो नपुंसकता और संतानहीनता के इलाज में कारगर हो सकता है।
प्रमुख शोधकर्ता डॉ. साइमन के अनुसार यह हॉर्मोन पुुरुषों में सेक्स हॉर्मोन टेस्टॉस्टेरॉन और स्त्रियों में प्रजनन क्षमता बढाने वाले हॉर्मोन एस्ट्रोजेन के सिक्रीशन को बढावा देता है। यही हॉर्मोन शुक्राणुओं और अंडाणुओं को तैयार करने में अहम भूमिका निभाता है। मानव शरीर में पाया जाने वाला जीन किस-1 जितना अधिक सक्रिय होता है, किसपेप्टिन हॉर्मोन का सिक्रीशन उतनी ही तेजी से होता है। इस हॉर्मोन का इंजेक्शन वैसे नि:संतान दंपतियों के लिए वरदान साबित होगा, जो स्पर्म या एग्स की कमी की वजह से माता-पिता नहीं बन पाते।
दांतों के लिए नुकसानदेह हैं कृत्रिम जूस
हाल ही में ब्रिटिश वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार बाजार में बिकने वाले डिब्बाबंद जूस में मौजूद अम्लीय तत्वों की अधिक मात्रा दांतों के ऐनेमल यानी कुदरती सुरक्षा कवच को बहुत ज्य़ादा नुकसान पहुंचाती है। जिससे दांतों में दर्द, झनझनाहट और ठंडा-गर्म के प्रति अतिरिक्त संवेदनशीलता की समस्या पैदा हो जाती है। प्रमुख शोधकर्ता डॉ.मार्क ह्यूजेस का कहना है कि बाजार में बिकने वाले डिब्बाबंद जूस और कोल्ड ड्रिंक्स में मौजूद अम्लीय तत्व दांतों के एनेमल को नष्ट करके उन्हें कमजोर और संवेदनशील बना देते हैं। इसलिए वैज्ञानिकों का कहना है कि इन चीजों के बजाय ताजा फलों के जूस का सेवन सेहत की दृष्टि से ज्य़ादा सुरक्षित और फायदेमंद है।
ग्लूकोमा का सफाया सिर्फ एक इंजेक्शन से
आजकल विश्व की आबादी का एक बडा हिस्सा ग्लूकोमा की समस्या से जूझ रहा है। इसकी वजह से लोगों की दृष्टि धुंधली पडऩे लगती है और आंखों में बहुत तेज दर्द भी होता है। इस बीमारी से पीडित लोगों के लिए एक अच्छी ख्ाबर यह है कि अब केवल एक इंजेक्शन से ही उनका उपचार संभव होगा। अमेरिका स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने यह नई तकनीक विकसित की है, जिसमें एक सीरिंज से प्रभावित आंख में एक मुलायम ट्यूब डाला जाएगा, ट्यूब आंख में मौजूद अतिरिक्त पानी को बाहर निकालेगा। वैज्ञानिकों के अनुसार इससे आंखों पर पडऩे वाला दबाव कम हो जाता है और व्यक्ति को सर्जरी की जरूरत नहीं पडती।