हेल्थ केयर
अकसर लोगों को यह गलतफहमी होती है कि मेवों में ज्यादा कैलरी पाई जाती है। इसलिए इनका सेवन सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। अमेरिका स्थित येल ग्रिफिन रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार अखरोट का सेवन करने से डायबिटीज और दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा नहीं होता और शरीर में ग्लूकोज का स्तर नियंत्रित रहता है। साथ ही रक्त-प्रवाह सही ढंग से होता है।
डायबिटीज से बचाता है अखरोट
अकसर लोगों को यह गलतफहमी होती है कि मेवों में ज्यादा कैलरी पाई जाती है। इसलिए इनका सेवन सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। अमेरिका स्थित येल ग्रिफिन रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार अखरोट का सेवन करने से डायबिटीज और दिल से जुडी बीमारियों का खतरा नहीं होता और शरीर में ग्लूकोज का स्तर नियंत्रित रहता है। साथ ही रक्त-प्रवाह सही ढंग से होता है। खासतौर से अधिक वजन वालों को इसका ज्यादा फायदा मिलता है। पुख्ता निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए शोधकर्ताओं ने 30 से 75 वर्ष के वयस्कों पर अध्ययन किया। इन सभी प्रतिभागियों का बीएमआइ (बॉडी मास इंडेक्स) 25 से ऊपर था। पुरुष प्रतिभागियों के कमर की माप 40 और स्त्रियों की 35 इंच से ऊपर थी। यह मोटापे की निशानी है। अध्ययन में शामिल प्रतिभागियों को दो समूहों में बांटा गया। शोधकर्ताओं ने उनके खानपान पर नजर रखी। पहले समूह के आहार में अखरोट को शामिल किया गया। दूसरे समूह को बिना अखरोट वाला खाना दिया गया। आठ हफ्ते तक चले अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने पाया कि रोजाना 50 ग्राम अखरोट का सेवन करने वालों को दिल से जुडी बीमारियों के गिरफ्त में आने का खतरा कम था। उनके शरीर में डायबिटीज की आशंका भी कम पाई गई।
ब्लडप्रेशर को नियंत्रित रखती है धूप
धूप से कुछ देर का संपर्क न सिर्फ विटमिन डी का स्तर बढाने के लिए अच्छा है, बल्कि यह ब्लडप्रेशर घटाने में भी कारगर है। ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ साउथैम्पटन के शोधकर्ताओं ने पाया है कि सूर्य की किरणें त्वचा और खून में मौजूद नाइट्रिक ऑक्साइड के स्तर को बदल देता है। रक्त प्रवाह के लिए जरूरी इस छोटे कण का स्तर बदलने से ब्लडप्रेशर कम हो जाता है। त्वचा से बडी मात्रा में मिलने वाला नाइट्रिक ऑक्साइड, ब्लडप्रेशर नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब यह तत्व धूप के संपर्क में आता है तो इसकी कुछ मात्रा त्वचा से उतरकर रक्त प्रवाह में शामिल हो जाती है। इससे रक्त धमनियों का तनाव कम होने के साथ ब्लडप्रेशर घट जाता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि लंबे समय तक धूपमें रहने पर स्किन कैंसर का खतरा हो सकता है। अत: अच्छी सेहत के लिए सुबह की हलकी धूप ही पर्याप्त होती है।
आंखों की सर्जरी हुई बेहद आसान
कमजोर दृष्टि से पीडित लोगों के लिए एक अच्छी खबर यह है कि अब ब्रिटेन के चिकित्सकों ने सर्जरी की एक नई तकनीक का आविष्कार किया है, जिसे सिंफनी का नाम दिया है। इस सर्जरी के 24 घंटे बाद ही मरीज को अच्छी तरह दिखाई देने लगता है। 53 वर्षीय मरीज के सफल ऑपरेशन के बाद लंदन आई हॉस्पिटल के प्रमुख सर्जन डॉ. बॉबी कुरैशी इस निष्कर्ष पर पहुंचे। डॉ. कुरैशी के अनुसार इस तकनीक के जरिये मरीज की आंखों में नए ढंग का प्लास्टिक लेंस प्रत्यारोपित किया जाता है। यह ऑपरेशन बेहद आसान है। इसके जरिये आंखों में मात्र तीन मिलीमीटर का चीरा लगाना पडता है और कुछ ही मिनटों में सर्जरी पूरी हो जाती है। इसके बाद व्यक्ति को ताउम्र लेंस बदलने की जरूरत नहीं पडती।
12 मिनट में संभव होगा ब्रेन स्ट्रोक का इलाज
ब्रेन स्ट्रोक जैसी खतरनाक बीमारी से जान बचाने के लिए ब्रिटेन स्थित कैंब्रिज विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक तकनीक इंट्रा आर्टिअल थ्राम्बेक्टॉमी (धमनी के जरिये रक्त का थक्का निकालने की तकनीक) विकसित की है। इसमें वैक्यूम क्लीनर जैसा यंत्र मस्तिष्क में जमा थक्के को निक ाल देता है। इस तकनीक के जरिये सिर्फ12 मिनट में थक्का शरीर से बाहर होता है और वह भी बिना किसी बडी सर्जरी के। रक्त में जमे थक्के की वजह से ही ब्रेन में मौजूद न्यूरॉन्स तेजी से नष्ट होने लगते हैं और गंभीर स्थिति होने पर ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है। अब तक नसों के जरिये ब्रेन तक दवा पहुंचा कर इसका इलाज किया जाता रहा है, जिसका असर होने में वक्त लगता है और जरा सी भी देर मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। ऐसे में इलाज की यह तकनीक बेहद कारगर साबित होगी।
इंसुलिन के इंजेक्शन से छुटकारा
डायबिटीज के मरीजों को अब इंसुलिन के इंजेक्शन का दर्द नहीं झेलना पडेगा। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम पैनक्रियाज (अग्नाशय) बनाने का दावा किया है, जो खून में शुगर का स्तर बढते ही शरीर में इंसुलिन की आपूर्ति कर देगा। आईपॉड के आकार का कृत्रिम पैनक्रियाज एक छोटे मॉनिटर, अत्याधुनिक सेंसर और पंप से जुडा है। यह पंप एक छोटी सर्जरी के जरिये शरीर में फिट कर दिया जाता है, जबकि मॉनिटर वाला हिस्सा मरीज अपनी जेब में रख सकता है। इस यंत्र में लगे सेंसर खून में ग्लूकोज का स्तर आंकते हैं। जैसे ही यह सुरक्षित स्तर से ऊपर पहुंच जाता है, सेंसर पंप के जरिए शरीर में इंसुलिन की खुराक पहुंचा देते हैं। पैनक्रियाज की बीटा कोशिकाओं द्वारा उत्पादित इंसुलिन हॉर्मोन न सिर्फ कार्बोहाइड्रेट और फैट को ऊर्जा में तब्दील करता है, बल्कि ग्लूकोज सोखने में मांसपेशियों की मदद भी करता है। ब्रिटेन में 24 डायबिटीज पीडित मरीजों पर इसका परीक्षण किया गया। इसमें शामिल लोगों को समान रूप से फायदा हुआ और डॉक्टरों ने उन्हें इसका इस्तेमाल करने की सलाह दी।
कैंसर फैलाने वाली मूल कोशिकाओं की पहचान
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने कैंसर फैलाने वाली मूल कोशिकाओं का पता लगा लिया है और उन्हें मदर सेल का नाम दिया गया है। उनका दावा है कि अब दवाओं के जरिये सीधे इन कोशिकाओं को नष्ट करके इस बीमारी का इलाज किया जा सकेगा। इनके खात्मे के बाद दोबारा इस बीमारी के पनपने का खतरा भी नहीं होगा। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक यह मदर सेल ही कैंसर की जड है, जो गलत ढंग से विभाजित होकर ट्यूमर बनाती है। इन कोशिकाओं की वजह से ही रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी जैसे इलाज कारगर साबित नहीं हो पाते, लेकिन यह खोज वैज्ञानिकों के लिए नई उम्मीदें लेकर आई है। उनके अनुसार इस खोज के बाद कैंसर फैलाने वाली इन मूल कोशिकाओं को नष्ट करके इस बीमारी को जड से दूर किया जा सकता है।