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सहजता से स्वीकारें यह बदलाव

ज्यादातर स्त्रियां मेनोपॉज़  को सहजता से स्वीकार नहीं पातीं। उन्हें अपनी बढ़ती उम्र और सेहत की चिंता सताने लगती है,कुछ बातों का ध्यान रखें तो मेनोपॉज़ के बाद स्वस्थ रहना आसान है।

By Edited By: Published: Fri, 19 Aug 2016 12:00 PM (IST)Updated: Fri, 19 Aug 2016 12:00 PM (IST)
सहजता से स्वीकारें यह बदलाव
हर स्त्री के जीवन में बदलाव का एक ऐसा दौर आता है जब उसे पीरियड्स की परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है। यह शरीर की सामान्य और स्वस्थ प्रक्रिया है पर इस स्वाभाविक परिवर्तन को स्त्रियां सहजता से स्वीकार नहीं पातीं। भारत में मेनोपॉज की औसत आयु तकरीबन 48 से 50 वर्ष के बीच है। अगर 45 वर्ष से कम उम्र में आपके पीरियड्स आने बंद हो जाएं या 52 वर्ष के बाद भी पीरियड्स आते रहें तो यह असामान्य स्थिति मानी जाती है। ऐसा होने पर आप बिना देर किए स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें। अध्ययनों से यह तथ्य सामने आया है कि जो स्त्रियां स्मोकिंग करती हैं या जो अधिक ऊंचाई वाले पर्वतीय स्थलों पर निवास करती हैं उनका मेनोपॉज अन्य स्त्रियों की तुलना में एक या दो वर्ष पहले ही हो जाता है। इसके अलावा अति व्यस्त तनावपूर्ण जीवनशैली, ओबेसिटी और खानपान में अनियमितता की वजह से आजकल महानगरों में रहने वाली युवतियों में अर्ली मेनोपॉज (40 साल से पहले) के लक्षण नजर आने लगे हैं। प्रमुख लक्षण मेनोपॉज के दौरान ज्य़ादातर स्त्रियों के शरीर के तापमान में अनिश्चितता बनी रहती है। कुछ स्त्रियों में तेज बुखार जैसे लक्षण भी नजर आते हैं, जिसे हॉट फ्लैशेज के नाम से जाना जाता है। गर्मियों के मौसम में भी अचानक ठंडक महसूस होना या सर्दियों में भी पसीना आना आदि इसके सामान्य लक्षण हैं। ऐसी समस्या से बचने के लिए स्त्रियों को अपने कमरे का तापमान हमेशा ठंडा रखना चाहिए, गर्म और मसालेदार चीजों के सेवन से बचने की कोशिश करनी चाहिए। चाय-कॉफी के बजाय अधिक मात्रा में ठंडा पानी पीना और सूती कपडे पहनना इस समस्या से राहत दिलाता है। दवाओं द्वारा भी इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है पर डॉक्टर की सलाह पर ही दवा लें। क्यों होता है ऐसा स्त्री के शरीर में स्थित ओवरी की कार्यक्षमता घटने से एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरॉन नामक स्त्री हॉर्मोन्स के सिक्रीशन में भी कमी आने लगती है। इसके कारण मेंस्ट्रुअल साइकल की अवधि कम हो जाती है या धीरे-धीरे ब्लीडिंग कम होने लगती है। कई स्त्रियों में मेंस्ट्रुअल साइकल की अवधि लंबी हो जाती है और कुछ में तो अचानक ही समाप्त हो जाती है। अगर किसी स्त्री को एक वर्ष तक पीरियड्स न हों तो इसे मेनोपॉज कहा जा सकता है। सेहत पर असर मेनोपॉज के दौरान स्त्रियों को यूरिनरी ट्रैक इन्फेक्शन, बार-बार यूरिन आना, खांसी के दौरान अपने आप यूरिन डिस्चार्ज हो जाना जैसी समस्याएं हो सकती हैं। वजाइना में शिथिलता होने के कारण बार-बार इन्फेक्शन हो सकता है। कई बार अधिक थकावट महसूस होती है और जोडों में दर्द भी हो सकता है। शरीर की हड्डियां भी धीरे-धीरे कमजोर होने लगती हैं। सामान्य अवस्था में एस्ट्रोजन हॉर्मोन के प्रभाव से स्त्री के शरीर में कोलेस्ट्रॉल और लिपिड प्रोफाइल की मात्रा संतुलित रहती है लेकिन मेनोपॉज के बाद स्त्रियों के शरीर में एस्ट्रोजन के अभाव से रक्त में कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड की मात्रा अधिक हो जाती है, जिसका दुष्प्रभाव धमनियों पर भी पडता है। हृदय की धमनियों के संकुचित होने से एंजाइना का दर्द हो सकता है और दिल का दौरा पडऩे की आशंका भी बढ जाती है। मेनोपॉज के बाद स्त्री के मस्तिष्क की धमनियां संकुचित होने लगती हैं, इससे उसे स्मरण-शक्ति में कमी, चिडचिडापन, क्रोध की अधिकता, अनिद्रा जैसी समस्याएं भी हो सकती है। कई बार स्त्रियां डिप्रेशन की भी शिकार हो जाती हैं। ऐसी समस्याओं से बचने के लिए आप अपनी किसी ऐसी सहेली से बात करें जो इस अवस्था से गुजर चुकी हो और जरूरत पडऩे पर चिकित्सक से परामर्श भी ले सकती हैं। रहें स्वस्थ और खुश उम्र के इस पडाव पर आने के बाद अपने खानपान में रोजाना के भोजन में हरी सब्जियों, स्प्राउट्स, ताजे फलों और जूस को प्रमुखता से शामिल करें। प्रतिदिन एक ग्लास फैट रहित दूध का सेवन करना न भूलें। इस उम्र में हड्डियां कमजोर पडऩे लगती हैं और उन्हें मजबूती देने के लिए दूध से पर्याप्त कैल्शियम मिलता है। अपने भोजन में सोयाबीन से बनी चीजों को जरूर शामिल करें क्योंकि इसमें पाया जाने वाला आइसोफ्लेवॉन्स नामक बॉटेनिकल एस्ट्रोजन आपके शरीर के साथ-साथ मस्तिष्क के लिए भी काफी फायदेमंद साबित होता है। रोजाना बीस मिनट ब्रिस्क वॉक जरूर करें। डॉक्टर की सलाह के बाद आप स्विमिंग, स्किपिंग और साइक्लिंग जैसे व्यायाम भी सहजता से कर सकती है। अपना नियमित चेकअप कराना न भूलें। साल में एक बार ब्रेस्ट का पेप्स स्मीयर-मैमोग्राफी और यूट्रस का पेल्विक अल्ट्रासाउंड कराएं। हृदय की स्थिति के लिए लिपिड प्रोफाइल और ई.सी.जी., हड्डियों के घनत्व की स्थिति जानने के लिए बोन डेन्सिटी परीक्षण कराएं। इस उम्र में शुगर टेस्ट भी जरूरी है। यह न भूलें कि मेनोपॉज युवावस्था का अंत नहीं है बल्कि यह प्रौढावस्था का प्रारंभ है। इस उम्र में आप अधिक परिपक्व होती हैं। इसलिए खुश और ऐक्टिव रहें, सकारात्मक रहें और उम्र को सहजता से स्वीकारें, ताकि स्वस्थ रह सकें। विनीता इनपुट्स : डॉ. दीपिका तिवारी, स्त्री रोग विशेषज्ञ, फोर्टिस हॉस्पिटल, गुडग़ांव

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