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बहुत कुछ कहता है यह दर्द

अगर पीठ, कमर या पैरों में लगातार तेज दर्द रहता हो तो इसे अनदेखा न करें क्योंकि यह सायटिका जैसी गंभीर समस्या भी हो सकती है।

By Edited By: Published: Thu, 29 Jan 2015 02:32 PM (IST)Updated: Thu, 29 Jan 2015 02:32 PM (IST)
बहुत कुछ कहता है यह दर्द

अगर पीठ, कमर या पैरों में लगातार तेज दर्द रहता हो तो इसे अनदेखा न करें क्योंकि यह सायटिका जैसी गंभीर समस्या भी हो सकती है।

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कसर स्त्रियां अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होती हैं। वे पीठ, कमर या पैरों के दर्द को थकान की वजह से होने वाली मामूली तकलीफ समझकर अकसर उसे नजरअंदाज कर देती हैं, पर ऐसा करना ठीक नहीं। यह सायटिका जैसी गंभीर बीमारी का लक्षण हो सकता है।

क्या है सायटिका

यह समस्या मानव शरीर की सबसे लंबी नस सियाटिक से जुडी है। इसे इशियाडिक नर्व भी कहा जाता है। सायटिका पीठ में दर्द की एक ऐसी स्थिति को कहते हैं, जो सियाटिक नर्व के दब जाने से पैदा होती है। यह नर्व पीठ के निचले हिस्से से शुरू हो कर पैरों के अंगूठे तक पहुंचती है। यह नस हमारी मांसपेशियों को शक्ति देने का काम करती है और इसी की वजह से हमें संवेदना महसूस होती है। अगर किसी वजह से यह नर्व दब जाती है तो यह आसपास की दूसरी नसों को भी दबाने लगती है। इसी वजह से व्यक्ति को कमर, पीठ, हिप्स और पैरों में लगातार दर्द की समस्या होती है, जिसे सायटिका कहा जाता है। इसके अलावा अगर स्पाइनल कॉर्ड का निचला हिस्सा संकरा हो तो भी ऐसी समस्या हो सकती है। अगर रीढ की हड्डियों के जोडों के बीच मौजूद कुशन का जेलनुमा पदार्थ सूखने लगे तो हड्डियां एक-दूसरे पर ज्य़ादा दबाव डालने लगती हैं। इस वजह से भी ऐसी समस्या हो सकती है।

कैसे करें पहचान

-कमर, पीठ या पैरों में तेज दर्द

-दर्द के साथ जलन और चुभन

-कमजोरी महसूस होना

-पैरों का सुन्न पड जाना, कदम उठाते वक्त पैरों या एडिय़ों में दर्द

-खडे होने या बैठने पर दर्द का बढ जाना

-पीठ के निचले हिस्से से शुरू होकर दर्द का पैरों के अंगूठे तक पहुंच जाना

क्या है वजह

-भारी वजन उठाने या किसी वजह से झटका लगने पर रीढ की हड्डी का कोई ख्ाास हिस्सा अपनी जगह से खिसक जाता है, जिसे स्लिप डिस्क कहा है। यह सायटिका का सबसे बडा कारण है।

-हमेशा हाई हील पहनने वाली स्त्रियों को यह समस्या हो सकती है।

-ओवरवेट लोगों को भी यह समस्या हो जाती है।

-डिलिवरी के बाद कुछ स्त्रियों को यह समस्या हो जाती है क्योंकि प्रेग्नेंसी के दौरान सियाटिक नर्व पेल्विक एरिया पर दबाव डालता है।

-नियमित रूप से एक्सरसाइज न करना, गलत ढंग से किया गया व्यायाम और सोने के लिए बहुत ज्य़ादा मुलायम गद्दे का इस्तेमाल भी इसका कारण हो सकता है।

बचाव के तरीके

-संतुलित खानपान और नियमित एक्सरसाइज से अपना वजन नियंत्रित रखें

-कोई भी भारी सामान उठाते समय ध्यान रखें कि कमर पर ज्य़ादा जोर न पडे

- बैठते समय हमेशा अपनी पीठ सीधी रखें

-उठते-बैठते समय ध्यान रखें कि आपकी कमर को झटका न लगे

-प्रेग्नेंसी के दौरान और डिलिवरी के बाद डॉक्टर के सभी निर्देशों का अच्छी तरह पालन करें

-कुशल प्रशिक्षक की सलाह और निगरानी के बिना कोई भी एक्सरसाइज न करें

क्या है उपचार

जब कोई व्यक्ति सायटिका के लक्षणों के साथ डॉक्टर के पास जाता है तो वह उसकी मेडिकल हिस्ट्री जानने के बाद पीठ, कमर और पैरों की हड्डियों और मांसपेशियों की स्थिति, लचीलापन, संवेदना और उनकी ताकत की जांच करते हैं। इसके अलावा विस्तृत जांच के लिए मरीज का एक्स-रे, एमआरआइ, सीटी स्कैन और जरूरत महसूस होने पर व्यक्ति के नर्व की स्थिति की भी जांच की जाती है। सायटिका के मरीज को नॉन-स्टीरॉयड एंटी इन्फ्लेमेट्री दवाएं दी जाती हैं, ताकि मरीज को दर्द और जलन से आराम मिल सके। दवाओं के साथ अगर िफजियोथेरेपी का सहारा लिया जाए तो मरीज को जल्द आराम मिल जाता है। अगर दवाओं और िफजियोथेरेपी से मरीज को फायदा न हो रहा हो या उसकी पीडा असहनीय हो तो उपचार के अंतिम विकल्प के रूप में सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है। सर्जरी के बाद मरीज को अपनी सेहत का विशेष ध्यान रखना चाहिए। डॉक्टर की सलाह पर पूरी तरह अमल करते हुए नियमित एक्सरसाइज और मॉर्निंग वॉक के साथ अगर संतुलित खानपान अपनाया जाए तो सर्जरी के बाद भी व्यक्ति स्वस्थ और सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है।

जिंदगी को मिली नई रोशनी

मुंबई की 40 वर्षीय होममेकर श्यामला प्रवीण कई वर्षों से सायटिका से परेशान थीं, पर सही उपचार और दृढ इच्छाशक्ति के बल पर वह शीघ्र स्वस्थ हो गईं। यह कैसे संभव हुआ, आइए जानते हैं उन्हीं की जुबानी।

लगभग 15 साल पहले का बात है। मेरी दूसरी बेटी का जन्म सिजेरियन ऑपरेशन से हुआ था। उसके बाद से मेरी पीठ, कमर और पैरों में दर्द रहने लगा। मैं शुरू से ही बहुत ऐक्टिव रही हूं। मुझे खाली बैठना जरा भी पसंद नहीं है। इसलिए डिलिवरी के एक सप्ताह बाद ही मैं घर की सभी कामकाज ख्ाुद करने लगी थी। मेरी सहनशक्ति बहुत मजबूत है। इसीलिए दस वर्षों तक मैं यह दर्द झेलती रही। मैंने इसे कभी भी अपनी दिनचर्या में रुकावट बनने नहीं दिया।

स्वस्थ थी जीवनशैली

कॉलेज के दिनों में मैं अच्छी क्लासिकल डांसर थी, पर शादी के बाद बढती जिम्मेदारियों की वजह से डांस का साथ छूट गया। मैं अपनी सेहत और फिगर को लेकर बहुत जागरूक थी। इसलिए नियमित रूप से जिम जाना मेरी दिनचर्या का जरूरी हिस्सा था। अपनी स्वस्थ जीवनशैली पर मुझे बहुत ज्य़ादा भरोसा था। इसीलिए मैंने इस दर्द को गंभीरता से नहीं लिया। हां, एहतियात के तौर पर इस समस्या के बारे में मैंने अपने फेमिली डॉक्टर से सलाह जरूर ली थी। तब उन्होंने मुझसे कहा कि आप इतनी ऐक्टिव रहती हैं कि आपकी यह समस्या जल्द ही ठीक हो जाएगी।

ख्ौर, बीच में थोडे समय के लिए मुझे दर्द से थोडी राहत जरूर मिल गई, लेकिन 2002 में मेरी तकलीफ बहुत ज्य़ादा बढ गई। जब मैं एक ऑर्थोपेडिक सर्जन के पास गई तो उन्होंने मुझे िफजियोथेरेपी का सुझाव दिया, जिससे मुझे थोडा आराम मिला। जब भी दर्द बढता तो मैं डॉक्टर द्वारा दी गई बैक बेल्ट बांधकर पेन किलर्स खा लेती तो इससे मेरी तकलीफ दूर हो जाती थी।

वह मुश्किल दौर

सब कुछ सामान्य चल रहा था। मैं अपने घर को अच्छी तरह मैनेज कर रही थी, लेकिन दोबारा 2010 में जिम में वेट लिफ्टिंग के दौरान मेरी रीढ की हड्डी में ऐंठन आ गई। वह दर्द मेरे लिए असहनीय था। मुझे डबल स्लिप्ड डिस्क हो गया था। एक डिस्क खिसक कर बायीं ओर और दूसरा दाहिनी तरफ चला गया। अपनी जगह से हटने के बाद वह आसपास की नसों को दबा रहा था। दो वर्षों के भीतर मैं छह बडे ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञों से मिली। सभी ने तुरंत सर्जरी कराने के लिए कहा, पर मैं इससे बचना चाहती थी । दर्द इतना बढ गया था कि मैं हिलने में भी असमर्थ थी। दस सप्ताह तक मुझे कंप्लीट बेड रेस्ट पर रहना पडा। उसके बाद मेरी िफजियोथेरेपी शुरू हुई। उस दौरान डॉक्टर ने मुझे झुकने से मना कर दिया था। इसके बाद लगभग 3 वर्षों तक मैं डॉक्टर के सभी निर्देशों पर अमल करती रही, लेकिन इससे मुझे अपनी हालत में कोई विशेष सुधार नजर नहीं आ रहा था। वह मेेरे लिए बेहद मुश्किल दौर था। उस दौरान परिवार के सभी सदस्यों ने न केवल मेरी देखभाल की, बल्कि मेरा मनोबल भी बढाया।

समय के साथ सुधार

मुंबई के हिंदुजा हॉस्पिटल में मेरा ट्रीटमेंट चल रहा था। इसी बीच मैंने दूसरे स्पेशलिस्ट से भी सलाह ली तो उन्होंने मुझे रीढ विशेषज्ञ डॉ. गरिमा अनंदानी से सलाह लेने को कहा। वहां जाने के बाद सबसे पहले उन्होंने मेरा डीएसए (डिजिटल स्पाइन एनालिसिस) टेस्ट किया। जिससे मालूम हुआ कि मेरी बैक एक्सटेंसर्स (पीठ को सहारा देने वाली मुख्य मांसपेशियों का समूह ) 72 प्रतिशत कमजोर थीं। इसके बाद वहां मेरी िफजियोथेरेपी शुरू की गई। वहां मुझसे कई तरह की एक्सरसाइज करवाई जाती थी, जिसमें कंप्यूटराइज्ड डिवाइस का भी इस्तेमाल होता था। वहां तीन महीने तक मेरा ट्रीटमेंट चला। इससे धीरे-धीरे मेरी पीठ की मांसपेशियों को ताकत मिलने लगी।

अब हूं बेहद सचेत

उपचार के डेढ साल बाद अब मैं पूर्णत: स्वस्थ हूं। मुझे बडी मुश्किल से दोबारा जीने का मौका मिला है और मैं इसे किसी भी हाल में खोना नहीं चाहती। इसीलिए अपनी सेहत का पूरा ध्यान रखती हूं। नियमित रूप से एक्सरसाइज करती हूं। संतुलित खानपान से अपना वजन नियंत्रित रखती हूं। अपने भोजन में मिल्क प्रोडक्ट्स को प्रमुखता से शामिल करती हूं। डॉक्टर ने मुझे भारी वजन उठाने, झुकने और ट्रेन की लंबी यात्रा से बचने की सलाह दी है। अब मैं हमेशा सीधा बैठती हूं क्योंकि गलत पोस्चर से दर्द बढ जाता है। डॉक्टर ने मुझे सख्त मैट्रेस पर सोने की सलाह दी है। मैं उनकी हर सलाह पर पूरी तरह अमल करती हूं। स्त्रियों को ऐसी समस्या होने का ख्ातरा ज्य़ादा रहता है। इसलिए नियमित एक्सरसाइज के साथ उन्हें संतुलित खानपान अपनाना चाहिए।

(की स्पाइन क्लिनिक मुंबई की रीढ विशेषज्ञ डॉ. गरिमा अनंदानी से बातचीत पर आधारित)

प्रस्तुति : विनीता


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