हेल्थ वॉच
ब्रेन स्ट्रोक की वजह से प्रति वर्ष हजारों लोग चलने-फिरने में असमर्थ हो जाते हैं। ऐसी समस्या से ग्रस्त लोगों के लिए एक अच्छी खबर अयह है कि अब स्टेम सेल (नवजात शिशु के गर्भनाल से निकाली गई कोशिकाएं, जिन्हें लैब में संरक्षित किया जाता है)
स्टेम सेल से होगा ब्रेन स्ट्रोक का उपचार
ब्रेन स्ट्रोक की वजह से प्रति वर्ष हजारों लोग चलने-फिरने में असमर्थ हो जाते हैं। ऐसी समस्या से ग्रस्त लोगों के लिए एक अच्छी खबर अयह है कि अब स्टेम सेल (नवजात शिशु के गर्भनाल से निकाली गई कोशिकाएं, जिन्हें लैब में संरक्षित किया जाता है) के जरिये उनका उपचार संभव होगा। लंदन स्थित इंपीरियल कॉलेज के वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रेन में स्टेम सेल प्रत्यारोपित करने से स्ट्रोक के शिकार लोगों की सेहत में तेजी से सुधार होने की संभावना है। उन्होंने शुरुआती प्रयोग में स्ट्रोक के शिकार हुए पांच लोगों के बोन मैरो में खास तरह के स्टेम सेल्स प्रत्यारोपित किए, जिन्हें दिमाग में सीधे जाने वाली नस के जरिये क्षतिग्रस्त हिस्से में पहुंचाया गया। इन पांच में से चार लोगों को गंभीर स्ट्रोक पडा था, जिससे वे बोलने में अक्षम हो गए थे और उनके शरीर का एक हिस्सा संवेदना शून्य हो गया था। इस उपचार के बाद चार में से तीन मरीज खुद अपनी देखभाल में सक्षम हो गए। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खोज से भविष्य में स्ट्रोक के मरीजों की जिंदगी आसान हो जाएगी।
सुन रहा हूं मैं
महाभारत की कथा अनुसार अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदने की कला जन्म से पहले ही सीख ली थी। यह कथा महज कल्पना भर नहीं थी, बल्कि अब वैज्ञानिकों ने भी यह मान लिया है कि गर्भस्थ शिशु सुनने में समर्थ होता है। यूनिवर्सिटी ऑफ हेलसिंकी में किए गए शोध में कहा गया है कि गर्भस्थ शिशु न केवल आवाजों को सुन सकता है, बल्कि उसका दिमाग शब्दों को याद भी रख सकता है। शोध में शामिल वैज्ञानिकों के अनुसार बच्चों की सीखने की प्रक्रिया जन्म से पहले ही शुरू हो जाती है। नवजात शिशु यह अच्छी तरह जानता है कि उसकी मां और घर के बाकी सदस्यों के बीच किस तरह बातचीत होती है। अमेरिका स्थित नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस के जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार गर्भावस्था के उन्तीसवें सप्ताह से जन्म होने तक कुछ बच्चों को बार-बार टाटा-टाटा शब्द सुनाया गया। जन्म के कुछ समय बाद जब वैज्ञानिकों ने इन बच्चों को फिर से वही शब्द सुनाया तो उनके दिमाग ने उस पर त्वरित प्रतिक्रिया दी। वे अन्य बच्चों की तुलना में यह शब्द ज्यादा सही तरीके से उच्चारित भी कर पा रहे थे।
हड्डियों को मजबूती देता है आलूबुखारा
अगर आपको आलूबुखारा (प्लम) पसंद है तो इसका जमकर सेवन करें। यह हड्डियों को मजबूती देने के अलावा ऑस्टियो पोरोसिस से बचाव में भी मददगार होता है। अमेरिका स्थित सैन डिएगो स्टेट यूनिवर्सिटी और फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोध में यह पाया गया है कि आलूबुखारा बोन डेंसिटी बढाने में मददगार होता है। इससे हड्डियों को मजबूती मिलती है और मामूली चोट की वजह से होने वाले फ्रैक्चर का खतरा टल जाता है।
चिकन गुनिया से बचाव के लिए वैक्सीन तैयार
मच्छरों से फैलने वाली बीमारी चिकनगुनिया वर्षो से लोगों की परेशानी का सबब बनी हुई है, पर राहत की बात यह है कि अब वैज्ञानिकों ने इसे दूर करने के लिए नई वैक्सीन का ईजाद कर लिया है। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शियस डिजीज में इस वैक्सीन का परीक्षण किया था। शोधकर्ताओं ने जानवरों पर भी इसका परीक्षण किया था। उन्होंने पाया कि यह चिकनगुनिया के प्रभाव को कम करती है। परंपरागत वैक्सीन मृत या कमजोर वायरस से बनाई जाती है, जबकि प्रयोगात्मक वैक्सीन वायरस जैसे तत्व वायरस लाइक पार्टिकल्स (वीएलपी) से तैयार की गई है, जो इस बीमारी से लडने में ज्यादा कारगर है।
विटमिन डी की कमी से हो सकता है डिमेंशिया
बुजुर्गो में विटमिन डी की कमी से डिमेंशिया और अल्जाइमर विकसित होने का खतरा दोगुना हो सकता है। यह बात एक अध्ययन में पाई गई। ब्रिटेन स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर के डॉ. डेविड लेवेलिन के नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय दल ने पाया कि इस अध्ययन में शामिल जिन लोगों में विटमिन डी की कमी थी, उनमें डिमेंशिया और अल्जाइमर की बीमारी पनपने की आशंका दोगुने से भी ज्यादा थी। शोधकर्ताओं ने उन बुजुर्गो का अध्ययन किया था, जिन्होंने पहले कार्डियोवेस्कुलर हेल्थ स्टडी में भाग लिया। ऐसे ही नतीजे अल्जाइमर के बारे में भी पाए गए। इस समस्या से बचने के लिए शोधकर्ताओं ने लोगों को सुबह की धूप का सेवन करने और अपने भोजन में मिल्क प्रोडक्ट्स, केला, सेब और नारियल जैसे फलों को शामिल करने की सलाह दी।
स्कैनिंग से भी एक कदम आगे
अब तक शरीर के भीतरी हिस्से को स्पष्ट रूप से देखने के लिए स्कैनिंग को सर्वाधिक आधुनिक तकनीक माना जाता रहा है, लेकिन अब कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जिसमें शरीर के सभी टिश्यूज और कोशिकाओं की हर गतिविधि को शीशे की तरह स्पष्ट रूप से देखना संभव होगा। अब तक चूहे और गिलहरी पर इसका प्रयोग किया जा चुका है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इसका प्रयोग मानव शरीर में विषाणुओं के प्रसार और कैंसर का पता लगाने में कारगर साबित होगा। कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में अब तक किए गए शोध के आधार पर एक ऐसी नई तकनीक विकसित की है, जिसमें रक्त-प्रवाह के जरिये शरीर में एक ऐसा तरल पदार्थ डाला जाता है, जो वहां मौजूद वसा को घोलते हुए उसे पारदर्शी बनाता जाता है। अब इस तकनीक के जरिये शरीर के उन अंगों की पहचान और उनके काम की विस्तृत जानकारी जुटाई जा सकती है, जिसके बारे में अब तक जानना मुश्किल था।