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सजगता है जरूरी

आजकल ओबेसिटी बड़ी समस्या बनती जा रही है। कई बार स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि डाइटिंग और एक्सरसाइज जैसे उपाय भी वजन कम करने में नाकाम होते हैं। ऐसे में लोगों को बैरियाट्रिक सर्जरी का सहारा लेना पड़ता है। यह सर्जरी वजन कम करने में कैसे मददगार होती

By Edited By: Published: Tue, 30 Jun 2015 03:49 PM (IST)Updated: Tue, 30 Jun 2015 03:49 PM (IST)
सजगता है जरूरी

आजकल ओबेसिटी बडी समस्या बनती जा रही है। कई बार स्थिति इतनी गंभीर हो जाती है कि डाइटिंग और एक्सरसाइज जैसे उपाय भी वजन कम करने में नाकाम होते हैं। ऐसे में लोगों को बैरियाट्रिक सर्जरी का सहारा लेना पडता है। यह सर्जरी वजन कम करने में कैसे मददगार होती है, इसे किन स्थितियों में अपनाया जाता है और इसके बाद हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। आइए जानते हैं सखी के साथ।

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जीवनशैली की अति व्यस्तता, अत्याधुनिक घरेलू उपकरणों की मौजूदगी, खानपान में घी-तेल, मक्खन, मैदा और चीनी का अधिक इस्तेमाल आदि कई ऐसी वजहें हैं, जो ओबेसिटी यानी अत्यधिक मोटापे को जन्म दे रही हैं। ओबेसिटी अपने साथ डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, आथ्र्राइटिस जैसी कई गंभीर बीमारियां लेकर आती है। कई बार जागरूकता के अभाव में लोगों का वजन इतना बढ जाता है कि उसे एक्सरसाइज और डाइटिंग के जरिये नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में मोटापे से छुटकारा पाने के लिए बैरियाट्रिक सर्जरी का इस्तेमाल अंतिम विकल्प के रूप में किया जाता है।

कैसे होती है सर्जरी

दरअसल इस सर्जरी के माध्यम से पाचन तंत्र की कार्यप्रणाली में बदलाव लाकर व्यक्ति की भूख को नियंत्रित किया जाता है, जिससे धीरे-धीरे उसका वजन कम होने लगता है। आमतौर पर इस सर्जरी के दो तरीके प्रचलित हैं- रिस्ट्रिक्टिव और स्लीव गैस्ट्रोनॉमी। पहले तरीके में आमाशय को काट कर छोटा कर दिया जाता है क्योंकि यहीं से ग्रेलिन नामक हॉर्मोन का स्राव होता है, जो व्यक्ति में भूख की इच्छा पैदा करता है। इस सर्जरी से इस हॉर्मोन का सिक्रीशन कम हो जाता है, जिससे व्यक्ति को ज्यादा भूख नहीं लगती और धीरे-धीरे उसका वजन कम हो जाता है। दूसरे तरीके में आमाशय को काट कर उसके अंतिम सिरे को सीधे छोटी आंत से जोड दिया जाता है। इससे शरीर में जीएलपी-1 नामक फायदेमंद हॉर्मोन का सिक्रीशन बढ जाता है। यह हॉर्मोन मेटाबॉलिज्म को दुरुस्त में करने मददगार होता है। इससे शरीर में मौजूद कैलरी आसानी से ऊर्जा में बदल जाती है और वजन बढऩे की प्रक्रिया रुक जाती है। इसके बाद 70 प्रतिशत तक अतिरिक्त वजन कम हो जाता है। डायबिटीज के मरीजों के लिए यह तरीका फायदेमंद साबित होता है।

कब होती है जरूरत

जब किसी व्यक्ति का वजन बीएमआइ मानक द्वारा निर्धारित वजन की सीमा से 35 किलोग्राम या उससे भी ज्य़ादा हो, एक्सरसाइज और खानपान की आदतों में सुधार लाने के बाद भी अगर वजन में ख्ाास कमी न आए तो ऐसी स्थिति में डॉक्टर द्वारा बैरियाट्रिक सर्जरी की सलाह दी जाती है। कुछ स्त्रियों में ओबेसिटी की वजह से इनफर्टिलिटी की समस्या होती है। ऐसी स्थिति में भी यह सर्जरी कारगर सिद्ध होती है। सर्जरी से पहले व्यक्ति के फेफडे, हार्ट, किडनी, लिवर, शुगर लेवल और हीमोग्लोबिन की जांच की जाती है। रिपोर्ट से पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही डॉक्टर सर्जरी का निर्णय लेते हैं। यह सर्जरी लैप्रोस्कोपी की मदद से की जाती है। इसमें लगभग तीन लाख रुपये का ख्ार्च आता है। सर्जरी के बाद सिर्फ दो दिनों तक अस्पताल में रहने की जरूरत पडती है। किसी भी ऑपरेशन की तरह इसमें भी 0.2 प्रतिशत तक जोख्िाम होता है। जिसे दूर करने के लिए व्यक्ति को पहले से ही वजन कम करने की सलाह दी जाती है। आमतौर पर 18 से 70 साल के किसी भी सामान्य स्वस्थ व्यक्ति की सर्जरी सफलतापूर्वक की जा सकती है।

सर्जरी के बाद रखें ध्यान

-सर्जरी के बाद शुरुआती छह महीने तक प्रतिमाह, उसके बाद तीन महीने के अंतराल पर और एक साल बीत जाने के बाद साल में एक बार बैरियाट्रिक सर्जन के पास रुटीन चेकअप के लिए जाना चाहिए।

-अस्पताल से घर लौटने के बाद संयमित खानपान और एक्सरसाइज बहुत जरूरी है।

-सर्जरी के बाद एल्कोहॉल,जंक फूड और सिगरेट छोडऩे की सलाह दी जाती है, ताकि व्यक्ति को दोबारा ऐसी समस्या न हो।

-डॉक्टर की सलाह के बिना कोई भी दवा या विटमिन सप्लीमेंट न लें।

-सर्जरी के बाद यदि पेट में दर्द, उलटी, पैरों में सूजन, सांस लेने में तकलीफ, चक्कर आना जैसी समस्याएं हों तो तुरंत इसकी सूचना अपने सर्जन को दें।

-इनफर्टिलिटी की समस्या की वजह से अगर किसी स्त्री की सर्जरी हुई हो तो एक साल बाद वह कंसीव कर सकती है।

-जब कभी आप किसी डॉक्टर से मिलने जाएं तो उसे यह बताना न भूलें कि आपकी बैरियाट्रिक सर्जरी हो चुकी है।

-अंत में सबसे जरूरी, डॉक्टर के सभी निर्देशों का पालन करें।

सखी फीचर्स

(बी. एल. कपूर सुपर स्पेशलिटीज हॉस्पिटल दिल्ली के लैप्रेस्कोपिक एंड जीएल-ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. दीप गोयल से बातचीत पर आधारित)


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