Move to Jagran APP

अखंड सौभाग्य का व्रत

सनातन संस्कृति में स्त्रियों के सुख-सौभाग्य से जुड़े जिन व्रतों का उल्लेख मिलता है, हरतालिका तीज उन्हीं में से एक है। ऐसी मान्यता है कि शिवजी को पाने के लिए सर्वप्रथम देवी पार्वती ने इस व्रत को किया था। उसके बाद से ही यह स्त्रियों को अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला व्रत बन गया।

By Edited By: Published: Sat, 02 Aug 2014 11:35 AM (IST)Updated: Sat, 02 Aug 2014 11:35 AM (IST)

हरतालिका तीज नाग पंचमी- 1 अगस्त

loksabha election banner

तुलसी जयंती- 3 अगस्त

पवित्रा एकादशी- 7 अगस्त

रक्षाबंधन - 10 अगस्त

जन्माष्टमी- 17 अगस्त

अजा एकादशी- 21 अगस्त

सोमवती अमावस्या- 25 अगस्त

हरतालिका तीज- 28 अगस्त

गणेश चतुर्थी- 29 अगस्त

सनातन संस्कृति में स्त्रियों के सुख-सौभाग्य से जुडे जिन व्रतों का उल्लेख मिलता है, हरतालिका तीज उन्हीं में से एक है। ऐसी मान्यता है कि शिवजी को पाने के लिए सर्वप्रथम देवी पार्वती ने इस व्रत को किया था। उसके बाद से ही यह स्त्रियों को अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला व्रत बन गया।

प्रचलित कथा

राजा दक्ष की विवाहिता पुत्री सती पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में जब अपने पति शिवजी का अपमान सहन न कर पाई तो यज्ञ की अग्नि में प्रवेश करके उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी। कालांतर में वही सती पर्वतराज हिमालय के घर कन्या के रूप में पुन: प्रकट हुई। उन्हें पिछले जन्म की सारी बातें याद थीं। इसीलिए वह हमेशा शिव जी के ध्यान में लीन रहती थीं। एक बार देवर्षि नारद पर्वतराज के महल में पधारे। राजा ने उनका स्वागत-सत्कार किया और आने का प्रयोजन पूछा तो देवर्षि बोले, राजन, भगवान विष्णु आपकी पुत्री पार्वती से विवाह करना चाहते हैं। यह सुनकर हिमालय अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी। इससे पार्वती को इतना गहरा दुख पहुंचा कि वह मूर्छित हो गई। शिव जी के प्रति उनका गहरा प्रेम देखते हुए उनकी सखियां उन्हें साथ लेकर चुपके से उस घने जंगल में चली गई, जहां शिव जी ने कामदेव को भस्म किया था। हिमालय का वह शिखर गंगावरतणनाम से प्रसिद्ध है। वहीं उत्तम श्रृंगीतीर्थ में पार्वती जी ने तपस्या प्रारंभ की। उनका दूसरा नाम गौरी भी है। इसलिए उनके तप के स्थान को गौरी शिखर कहा जाता है। कठोर तपस्या शुरू करने से पूर्व पार्वती जी ने उस पवित्र भूमि पर शिवलिंग की स्थापना की। कठिन तपर्चय के कारण गौरी का शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया था। उनके तप के बल से अंतत: शिव जी का आसन डोल गया। वह देवी पार्वती के सामने प्रकट हो गए और पत्नी के रूप में उनका वरण कर लिया।

सखियों ने किया हरण

विवाहिता स्त्रियों के सुख-सौभाग्य से जुडा यह व्रत पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में विशेष रूप से प्रचलित है। प्रत्येक वर्ष भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष तृतीया को सुहागन स्त्रियां सोलह श्रृंगार से सुसज्जित होकर पति की अच्छी सेहत और लंबी आयु के लिए हरतालिका तीज का निर्जला व्रत रखती हैं। अकसर लोगों को यह जिज्ञासा होती है कि इस व्रत का नाम हरतालिका क्यों है? दरअसल पार्वती जी की सखियां उनका हरण करके उन्हें वन में ले गई थीं, जहां उन्होंने शिव जी को पाने के लिए घोर तपस्या की थी। इसीलिए इसे हरतालिका तीज कहा जाता है।

पूजन की विधि

पूजन के लिए सबसे पहले केले के पत्ते से मंडप बनाएं और उसमें मिट्टी या रेत से शिव-पार्वती की पार्थिव प्रतिमा बनाएं। फिर गंगाजल, दूध, दही, शहद और घी से उनका आचमन करके फिर उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद ॐ नम: शिवाय: का जप करते हुए धूप-दीप, अक्षत और पुष्प अर्पित करें। भगवान शिव को श्वेत वस्त्र चढाएं और माता पार्वती को लाल वस्त्र, आभूषण और श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें। फलों और मिष्ठान का भोग लगाकर दोबारा आचमन करें और हरतालिका व्रत कथा पाठ करें। फिर कपूर से आरती उतारकर, पुष्पांजलि चढाएं और शिव-पार्वती की परिक्रमा करें। इस तरह पूजन संपन्न हो जाएगा। दूसरे दिन सूर्योदय के ठीक पहले स्नान करके दोबारा शिव-पार्वती को भोग लगाकर उनकी आरती करें। फिर उनकी पार्थिव प्रतिमा का विसर्जन करने के बाद प्रसाद ग्रहण करें और सात्विक भोजन से व्रत का पारण करें। हालांकि, देश के अलग-अलग प्रांतों के लोकाचार में विविधता होने की वजह से पूजन विधि में भी मामूली फर्क होना संभव है। इसके अलावा जो स्त्रियां खराब सेहत की वजह से निर्जला व्रत धारण करने में असमर्थ हों, वे फलाहार के साथ व्रत के नियमों का पालन कर सकती हैं। व्रत की विधि में भले ही विविधता हो, पर इसकी मूल भावना यही है कि शिव-पार्वती के आशीर्वाद से सभी स्त्रियों के दांपत्य जीवन में खुशहाली बनी रहे।

हमारे अमूल्य धरोहर

शिव पुराण की महिमा

शिव पुराण की महिमा अतुलनीय है। पुराणों की क्रम संख्या में शिवपुराण को चौथा स्थान प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि सर्वप्रथम भगवान शिव ने ही इसका प्रणयन किया था। यह समस्त प्राणियों को कल्याण और मोक्ष प्रदान करने वाला पुराण है। सात संहिताओं से युक्त यह पुराण वेद तुल्य है। इसमें श्रेष्ठ मंत्र समूहों का संकलन है, जो धर्म, अर्थ और काम- इस त्रिवर्ग की प्राप्ति के साधन का वर्णन करता है। इसमें भगवान शिव के कल्याणकारी स्वरूप का तात्विक विवेचन, रहस्य, महिमा और उपासना का विस्तृत वर्णन है। इसमें भगवान शिव के विविध रूपों अवतारों, ज्योतिर्लिगों, भक्तों और भक्ति का विशद वर्णन किया गया है। इसीलिए इसे समस्त पुराणों में श्रेष्ठ माना गया है।

संध्या टंडन


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.