शॉपिंग तो बनती है..
आंकड़ों की मानें तो पिछले दस सालों में भारतीय युवाओं का शॉपिंग पर किया जाने वाला खर्च करीब 65 प्रतिशत बढ़ा है। युवा भी खुद को शॉपाहोलिक और शॉपिंग फ्रीक जैसे विशेषणों से नवाजे जाने पर फूले नहीं समा रहे हैं। किसी के लिए यह स्ट्रेस बस्टर है तो किसी के लिए खुद को गुड लुकिंग व अपडेट रखने का जरिया। उनके शॉपिंग मूड को परखा सखी ने।
ऑनलाइन अच्छा विकल्प
(उमेश पोपली, 20 साल)
ऑनलाइन शॉपिंग का प्रचलन बढने से कई बदलाव आए हैं। अब हमें एक ही वेबसाइट पर कई ब्रैंड्स के प्रोडक्ट्स मिल जाते हैं। अगर हमें कोई चीज एक से दो हजार रुपए की रेंज में चाहिए तो संबंधित साइट पर हम इस लिमिट वाले लिंक पर क्लिक करके विभिन्न ब्रैंड्स में इसके विकल्प देख सकते हैं। मैं ऑनलाइन सेल ऑफर्स पर नजर रखता हूं। डिस्काउंट सीजन के दौरान खरीदारी कर फायदा उठाता हूं।
कम खरीदो, अच्छा खरीदो (कांची अरोडा, 19 साल)
हम फैशन टीवी जेनरेशन से हैं। ग्लैमर की दुनिया की तमाम हलचलों और लेटेस्ट ट्रेंड्स की खबर रखते हैं। शॉपिंग करने से पहले विभिन्न मार्केट्स में चीजों की क्वॉलिटी और दाम पता करते हैं। इनकी तुलना करने के बाद ही हम तय करते हैं कि कौन सी चीज किस मार्केट से और किसी शॉप से लेनी है। क्वॉलिटी शॉपिंग के फंडे हमें अच्छी तरह पता हैं। हमारा मानना है कि कम खरीदो, अच्छा खरीदो।
स्ट्रीट शॉपिंग में है यकीन
(कनिका चावला, 20 साल)
मैं तो स्ट्रीट शॉपिंग में यकीन करती हूं। बार्गेनिंग करने में मेरा कोई जवाब नहीं है। इसी खूबी के चलते मेरी सारी फ्रेंड्स मुझे लेकर मार्केट जाती हैं। स्ट्रीट मार्केट शॉप्स की कई दुकानों में आपको ब्रैंडेड स्टफ मिल जाता है। वह भी कई गुना कम दाम पर। तो फिर ब्रैंडेड आउटलेट्स में पैसे बर्बाद करने का क्या फायदा?
ऑनलाइन शॉपिंग सबसे बेहतर
(भवनीत, 21 साल)
मैं शॉपिंग के मामले में काफी मूडी हूं। अगर मुझे कुछ पसंद आ जाए तो हर कीमत पर उसे खरीदता ही हूं। मुझे ऑनलाइन शॉपिंग बहुत पसंद है, विशेष रूप से फुटवेयर्स, बेल्ट और सनग्लासेज आदि खरीदने के लिए। मैंने कई बार ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट्स के जरिये शूज और ज्यूलरी खरीदी है, लेकिन परिधानों की शॉपिंग ऑनलाइन करना ठीक नहीं रहता। क्योंकि अकसर उनकी फिटिंग सही न होने की समस्या आती है। इससे बेहतर है कि किसी ब्रैंडेड आउटलेट जा कर सही नाप वाले कपडे भली भांति ट्रायल करके ले लिए जाएं।
शॉपाहोलिक हूं मैं
(इंदरदीप गुजराल, 19 साल)
मेरे दोस्त मुझे शॉपाहोलिक कहते हैं। मैं अगर गलती से भी बाजार के पास से गुजर जाऊं तो दो-तीन टॉप, हैंडबैग या एक्सेसरीज खरीद ही लेती हूं। वैसे मैं काफी फैशन कॉन्शियस भी हूं। हमेशा परिधानों के साथ मैचिंग एक्सेसरीज कैरी करती हूं। मुझे लगता है कि फैशन इंडस्ट्री के ग्लैमर की वजह से इस क्षेत्र में इतना बूम आया है। वैसे मेरे जैसे फैशन लवर्स को इससे फायदा भी हुआ है। मेरी वॉर्डरोब में पिछले कुछ सालों में काफी वेरायटी आई है।
ब्रैंडेड यानी फायदे का सौदा
(अक्षय, 19 साल)
मुझे ब्रैंडेड परिधान खरीदना फायदे का सौदा लगता है। ये आरामदायक होते हैं, इनकी फिटिंग बेहतर होती है और ये टिकाऊ भी होते हैं। वहीं स्ट्रीट मार्केट से खरीदे गए कपडे सस्ते तो होते हैं लेकिन दो महीने भी नहीं चलते। कई युवा स्ट्रीट शॉपिंग पसंद करते हैं। लेकिन मुझे ब्रैंडेड आउटलेट्स में शॉपिंग करना ही पसंद है। मेरे लगभग सारे दोस्त भी मेरी तरह ब्रैंडेड कपडे पहनना ही पसंद करते हैं।
स्ट्रेस बस्टर है शॉपिंग
(प्रीति, 20 साल)
शॉपिंग करने से मूड फ्रेश हो जाता है। इससे तनाव भी दूर होता है। मैं जब भी परेशान होती हूं, शॉपिंग बैग उठाकर खरीदारी करने निकल पडती हूं। कई बार तो ऐसा भी होता है कि दूसरों को शॉपिंग कराने जाती हूं और खुद खरीदारी करके लौटती हूं। ऐसी चीजें भी खरीद लेती हूं जिनकी मुझे जरूरत ही नहीं होती।
बढा है खरीदारी की ओर युवाओं का रुझान एक शोध के अनुसार 75 प्रतिशत भारतीय युवा परिधान, कॉस्मेटिक्स और मोबाइल फोन खरीदने के लिए हर माह करीब छह हजार रुपये खर्च करते हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर और चंडीगढ में किए गए इस शोध में यह बात सामने आई कि उनका ब्रैंडेड उत्पादों की तरफ रुझान काफी बढा है। पिछले दस सालों में इन पर होने वाला खर्च करीब 65 प्रतिशत बढा है।