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बेटे को भी चाहिए आपका साथ

टीनएजर्स की पेरेंटिंग के संदर्भ में जब भी कोई बात कही जाती है तो लोग उसे सिर्फ लड़कियों से जोड़ कर देखते हैं। ज्यादातर अभिभावक लड़कों के प्रति लापरवाह होते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि इस उम्र में उन्हें भी विशेष देखभाल और प्यार भरे मार्गदर्शन की जरूरत होती है।

By Edited By: Published: Sat, 02 Aug 2014 11:36 AM (IST)Updated: Sat, 02 Aug 2014 11:36 AM (IST)
बेटे को भी चाहिए आपका साथ

बेटी बडी हो रही है, हमें उसका पूरा खयाल रखना चाहिए, इस उम्र में आने वाले शारीरिक और मानसिक बदलावों के बारे में उसे सही जानकारी देना जरूरी है। उसके दोस्तों पर नजर रखने के साथ हमें उसमें अच्छे संस्कार विकसित करने चाहिए..। टीनएजर लडकियों की परवरिश के मामले में पेरेंट्स के पास हिदायतों की लंबी सूची होती है, लेकिन जब लडकों की बारी आती है तो ज्यादातर लोगों के पास कोई स्पष्ट नजरिया नहीं होता। लडकों का क्या है, बस पढाई में अच्छे हों, इतना ही काफी है। घी का लड्डू टेढा भला ! ..पर ऐसा सोचना बिलकुल गलत है। इस उम्र में लडकों को भी प्यार भरी देखभाल और मार्गदर्शन की जरूरत होती है।

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समय से पहले बढते बच्चे

आजकल लडकियों की तरह लडकों का भी शारीरिक-मानसिक विकास बहुत तेजी से हो रहा है। पहले किशोरावस्था की शुरुआत उम्र के तेरहवें साल से होती थी, लेकिन आजकल अधिक कैलरीयुक्त खानपान, टीवी, इंटरनेट और फिल्मों के बढते एक्सपोजर की वजह से ग्यारह साल की उम्र से ही उनके शरीर में सेक्स हॉर्मोन टेस्टोस्टेरॉन का सिक्रीशन होने लगता है। इसी वजह से वे पहले की तुलना में ज्यादा तेजी से बडे हो रहे हैं। इसीलिए अब बेटे के दसवें जन्मदिन के बाद से ही पेरेंट्स को सचेत हो जाना चाहिए। इस उम्र में ज्यादातर बच्चे दोस्तों से अपने शारीरिक विकास की तुलना करके चिंतित हो जाते हैं। ऐसे में अभिभावकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने बच्चे को समझाएं कि हर बच्चे का व्यक्तित्व दूसरे से अलग होता है। कुछ का कद तेजी से बढता है, कुछ की आवाज बारहवें साल में ही बदलने लगती है तो कुछ लडकों में ये लक्षण देर से दिखाई देते हैं। ऐसी स्थिति में पेरेंट्स को भी धैर्य से काम लेना चाहिए। बच्चों के शारीरिक विकास के माइल स्टोन में एक-दो साल का अंतर होना स्वाभाविक है।

सहजता है जरूरी

लडकों में प्यूबर्टी की शुरुआत का पहला लक्षण उनके चेहरे के साथ अंडरआ‌र्म्स, चेस्ट और प्यूबिक एरिया में हेयर ग्रोथ के रूप में दिखाई देता है। इसके एक साल बाद उनकी आवाज में भारीपन आने लगता है। विकास के इस दौर में वे न तो बच्चों की तरह दिखते हैं और न ही उनमें युवाओं जैसी मेच्योरिटी नजर आती है। कुछ बच्चे बेहद संवेदनशील होते हैं और वे ऐसे बदलावों को सहजता से स्वीकार नहीं पाते। इसी वजह से रिश्तेदारों और माता-पिता के दोस्तों से मिलते हुए उन्हें झिझक महसूस होती है। वे शादी-विवाह या बर्थडे पार्टी जैसे सामाजिक आयोजनों में जाने से कतराते हैं। ऐसी जगहों पर उनके लिए हमउम्र दोस्त ढूंढ पाना बहुत मुश्किल होता है। अगर कभी आपका बच्चा ऐसे अवसरों पर जाने से मना कर दे तो उस पर साथ चलने के लिए दबाव न डालें। उसके साथ इत्मीनान से बैठकर बातें करें और उसे समझाएं कि यह स्वाभाविक बदलाव है, जिसका सामना सभी को करना पडता है।

बडी है पिता की जिम्मेदारी

जिस तरह किसी लडकी का व्यक्तित्व संवारने में उसकी मां का योगदान होता है। उसी तरह लडकों की अच्छी परवरिश में पिता की अहम भूमिका होती है। लडकों के लिए पिता उनके रोल मॉडल होते हैं। इसलिए वे उनकी बातों को गंभीरता से लेते हुए उन पर अमल करने की कोशिश करते हैं। टीनएज में लडके पिता के साथ ज्यादा सहज महसूस करते हैं। वे उनके साथ अपने दिल की ढेर सारी बातें शेयर करना चाहते हैं। इसलिए हर टीनएजर लडके के पिता की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने बेटे के साथ रोजाना बातचीत का समय जरूर निकालें। बेटे के साथ पिता का रिश्ता बेहद दोस्ताना होना चाहिए , ताकि वह उनके साथ अपनी समस्याओं पर बेझिझक बात कर सके। इस उम्र में लडकों में इरेक्शन की शुरुआत होती है और इसी वजह से कई बार उन्हें नाइटफॉल की समस्या हो जाती है। बच्चों के लिए यह बिलकुल नया अनुभव होता है। ऐसे में पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वह बेटे को समझाएं कि यह हॉर्मोन संबंधी बदलाव से जुडी स्वाभाविक प्रक्रिया है और इसमें घबराने की कोई बात नहीं है। हर पिता का यह फर्ज बनता है कि वह अपने बेटे को शेविंग किट का सही इस्तेमाल और पर्सनल हाइजीन का ध्यान रखना सिखाए।

स्वाभाविक है आकर्षण

इस उम्र में विपरीत सेक्स के प्रति सहज आकर्षण स्वाभाविक है। कई लडके इसे पहली नजर का प्यार समझने की भूल कर बैठते हैं। ऐसे में आप उसे समझाएं कि इस उम्र में लडकों को सारी लडकियां अच्छी लगती हैं, लेकिन प्रेम की भावना को गहराई से समझने के लिए अभी उसकी उम्र बहुत छोटी है। इस उम्र में लडकियों के साथ ज्यादा बातचीत करने की इच्छा स्वाभाविक है। अगर आपका बेटा ऐसा करता है तो इसके लिए बेवजह रोक-टोक न करें। उसे लडकियों का सम्मान करना सिखाएं। उसे बताएं कि स्कूल-कॉलेज जैसे सार्वजनिक स्थलों पर लडकियों के साथ किस तरह सभ्य और शालीन व्यवहार करना चाहिए। उसे बताएं कि लडकियां भी उसी की तरह इंसान हैं और व्यक्ति के रूप में उसे उनका सम्मान करना चाहिए।

बच्चों में आने वाले शारीरिक बदलाव को तो हम सहजता से पहचान लेते हैं, पर उनके मन के भीतर चल रही हलचलों को पहचानना भी बहुत जरूरी है क्योंकि बचपन और युवावस्था के बीच का यह दौर बडा ही नाजुक होता है।

हॉर्मोस का असंतुलन

इस दौरान लडकों के शरीर में टेस्टोस्टेरॉन और एस्ट्रोजन नामक दो सेक्स हॉर्मोस का सिक्रीशन तेजी से हो रहा होता है। टेस्टोस्टेरॉन की वजह से ही उनके भीतर साहस, आक्रामकता और नेतृत्व जैसे मैस्क्युलिन गुणों का विकास होता है। इसी तरह एस्ट्रोजन के प्रभाव की वजह से उसमें करुणा, सहनशीलता, सहयोग और सामंजस्य जैसे फेमनिन गुणों का विकास होता है। दरअसल इस उम्र में दोनों तरह के हॉर्मोस उसके मस्तिष्क को अलग-अलग ढंग से कार्य करने का निर्देश दे रहे होते हैं। इसी वजह से कई बार उनके भीतर हॉर्मोन संबंधी असंतुलन पैदा हो जाता है। फिर उनमें मूड स्विंग, गुस्सा और चिडचिडापन जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। ऐसे में अगर बडों का मार्गदर्शन न मिले तो बच्चे विद्रोही बन जाते हैं। उनके साथ सख्ती बरतने के बजाय प्यार से पेश आएं। बच्चों की नकारात्मक भावनाओं को सही ढंग से चैनलाइज करने के लिए उन्हें उनकी रुचि से जुडी गतिविधियों जैसे-स्पो‌र्ट्स, डांस, आर्ट और म्यूजिक में सक्रिय रहने के लिए प्रेरित करें। इससे वे अपनी भावनाओं को खुल कर अभिव्यक्त कर पाएंगे और उनके व्यक्तित्व का विकास सहज ढंग से होगा।

कुछ जरूरी बातें

-टीनएजर लडकों की डाइट में प्रोटीन और कैल्शियम युक्त चीजों को प्रमुखता से शामिल करें। इसके लिए मिल्क प्रोडक्ट्स के अलावा दालों, सोयाबीन, हरी सब्जियों के साथ अंडा, मछली और चिकेन का सेवन भी फायदेमंद होता है।

-लडकों के लिए भी फिजिकल अपियरेंस बहुत मायने रखता है। सही हेयर स्टाइल और आउटफिट्स चुनने में उनकी मदद करें।

-कुछ लडके पीयर प्रेशर में आकर ड्रग्स, सिगरेट और एल्कोहॉल जैसी चीजों का सेवन करने लगते है। उन्हें इन चीजों से होने वाले नुकसान के बारे में बताएं।

-इस उम्र में लडकों को ड्राइविंग बहुत ज्यादा आकर्षित करती है, लेकिन 18 की उम्र से पहले उसे इसकी इजाजत न दें।

-उत्सुकतावश ज्यादातर टीनएजर्स पोर्न वेबसाइट्स की ओर आकर्षित होते हैं। ऐसे में पिता की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह बेटे को समझाएं कि इस उम्र में ऐसी चीजों के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है, लेकिन दिमाग की अच्छी सेहत के लिए ऐसी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना जरूरी है।

-उसे शिष्टाचार और सभ्य सामाजिक व्यवहार के के तौर-तरीके सिखाएं। गुस्से में चिल्लाना, चीजें उठा कर फेंकना, बातचीत में अपशब्दों का प्रयोग, लडकियों के बारे में घटिया कमेंट्स करना, जैसी आदतों के लिए उसे सख्ती से मना करें और दोबारा ऐसा न करने की चेतावनी दें।

-अपने बेटे को समझाएं कि यह उसके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दौर है। अभी किए गए सार्थक प्रयासों पर ही उसके सफल भविष्य की बुनियाद टिकी है। इसलिए मौज-मस्ती के साथ उसे पढाई पर भी पूरा ध्यान देना चाहिए।

विनीता

(पारस हॉस्पिटल गुडगांव की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. ज्योति कपूर से बातचीत पर आधारित)


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