त्योहार पर मिला सबक
हार के आने से कई दिन पहले से ही उसका आनंद लेना और मजे करना मुझे बहुत प्रिय था। खासतौर से दिवाली आने से 15 से 20 दिन पहले से ही मैं पटाखे खरीदने की जिद करने लगता था।
दोस्तो , यह बात करीब सात-आठ साल पुरानी है। तब मैं छोटा था और काफी मनमौजी स्वभाव का था। मेरा ज्यादातर समय खेलने और मौज-मस्ती करने में बीतता था। दोस्तों के साथ खेलना, घूमना मुझे अधिक प्रिय था। मम्मी-पापा के टोकने या कोई बात कहने पर मैं उसे कभी तवज्जो नहीं देता था। कोई भी त्योहार हो, होली या दिवाली मैं उसमें खूब बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेता था। त्योहार के आने से कई दिन पहले से ही उसका आनंद लेना और मजे करना मुझे बहुत प्रिय था। खासतौर से दिवाली आने से 15 से 20 दिन पहले से ही मैं पटाखे खरीदने की जिद करने लगता था। मम्मी के मना करने पर भी मैं अपनी जिद पूरी करवा कर ही मानता था। दिवाली से पहले से ही खूब पटाखे चलाता और दूसरे बच्चों के साथ खूब मजे करता। लेकिन एक साल दिवाली के दिन मुझसे ऐसी गलती हुई, जिसे मैं आज तक नहीं भूल पाया हूं। हुआ यूं कि दिवाली के दिन मैं सुबह से ही पटाखे और फुलझडिय़ां चलाने लगा था।
मम्मी के लाख मना करने पर भी मैं नहीं माना। मम्मी ने कहा, 'हम सब मिलकर रात में पटाखे चलाएंगे। अभी पटाखे मत चलाओ।' लेकिन मैं नहीं माना। तभी एक पटाखा छिटक कर घर के अंदर गया और पर्दे के ऊपर जाकर गिरा। पर्दे में आग लग गई, उसमें बड़ा छेद हो गया। मैं डर के मारे इस आग को जल्दी-जल्दी बुझाने लगा और इस प्रयास में मेरा हाथ भी हल्का-सा जल गया। आग तो बुझ गई, लेकिन मैं बहुत डर गया था। मम्मी के देखने से पहले मैं आग बुझा चुका था। डर के मारे और दर्द से बेहाल होकर मैं किसी को बिना कुछ बताए घर के ऊपर बने कमरे में जाकर चादर ओढ़ कर सो गया। लेकिन मेरी मम्मी को यह आभास हो गया कि मैंने जरूर कोई शैतानी की होगी, तभी दिन में ही चादर ओढ़कर सो रहा हूं। वे मेरे पास आईं और मैंने डरते-डरते उन्हें सब कुछ बताया।
मेरी मम्मी ने मुझे सब कुछ प्यार से समझाया और सही एवं गलत क्या है, इसके बारे में सलाह दी। उस दिन के बाद से अब मैं कोई शैतानी नहीं करता हूं। दोस्तो, इस घटना के माध्यम से मैं आप सबको यह बताना चाहता हूं कि हमें सारे त्योहार उत्साह से मनाना चाहिए, लेकिन जरूरत से ज्यादा खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। साथ ही, अपने बड़ों की आज्ञा का पालन करना चाहिए।
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