बुद्धि का सही उपयोग ही हमारी कार्य-कुशलता को बढ़ाता है
काम में सफलता पाने के लिए सिर्फ मेहनत ही पर्याप्त नहीं होती है, बुद्धि का सही उपयोग ही हमारी कार्य-कुशलता को बढ़ाता है।
एक जंगल में कुछ बुजुर्ग लकड़हारे पेड़ों से लकड़ी काटा करते थे। उनमें एक नौजवान लकड़हारा भी शामिल हो गया। वह युवक बहुत मेहनती था। बिना रुके लगातार काम कर रहा था। बाकी लकड़हारे कुछ देर काम करने के बाद थोड़ी देर बैठकर आपस में बात करते थे।
यह देखकर युवक को लगता था कि वे समय की बर्बादी कर रहे हैं। जैसे-जैसे दिन बीतता गया, युवक ने देखा कि बाकी लकड़हारे उससे अधिक लकड़ी काट रहे थे, जबकि वे बीच-बीच में काम रोक भी देते थे। यह देखकर युवक ने और अधिक तेजी से काम करना शुरू कर दिया। वह पसीने से लथपथ हो गया, लेकिन बुजुर्गों की तुलना में
कम ही लकड़ी काट पाया। एक दिन बुजुर्ग लकड़हारों ने युवक को काम के बीच चाय पीने के लिए बुलाया। युवक ने कहा, जितनी देर में मैं चाय पियूंगा, उतनी देर में लकड़ी काट लूंगा। इस पर बूढ़े लकड़हारे ने लड़के से कहा, ‘तुम अपनी कुल्हाड़ी में धार तेज किए बिना ही लकड़ी काट रहे हो। तुम्हारी सारी मेहनत बेकार जा रही है। तुम
थक जाओगे, पर लकड़ी कम काट पाओगे।’
युवक ने ध्यान से देखा कि गपशप करने के साथ वे लकड़हारे अपनी कुल्हाड़ियों पर धार भी रख रहे थे। यही कारण था कि कुल्हाड़ियां कम मेहनत में ज्यादा लकड़ियां काट रही थीं।
कथा-मर्म : काम में सफलता पाने के लिए सिर्फ मेहनत ही पर्याप्त नहीं होती है, बुद्धि का सही उपयोग ही हमारी
कार्य-कुशलता को बढ़ाता है।