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कहानी: आधा सेब

कुपोषण के शिकार बच्चे को डस्टबिन से सेब निकालकर खाते देखकर उस युवती को समझ आई भोजन की कीमत

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 10 Apr 2017 01:03 PM (IST)Updated: Mon, 10 Apr 2017 01:12 PM (IST)
कहानी: आधा सेब
कहानी: आधा सेब

टीचिंग की प्राइवेट जॉब में होते हुए भी सरकारी नौकरी की लालसा में मैं पोस्ट ग्रेजुएट टीचर की परीक्षा देने गई थी। पेपर बहुत अच्छा हुआ था। पेपर अच्छा होने की खुशी में परीक्षा सेंटर से प्रीत विहार मेट्रो स्टेशन की दूरी मुझे पता ही नहीं चली। स्टेशन में बहुत भीड़ थी। जो भी ट्रेन आ रही थी, सवारियों से खचाखच

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भरी थी। भीड़ देखकर सोचा कि दस मिनट रुक जाती हूं। थोड़ी देर में भीड़ कम हो जाएगी। लड़के-लड़कियों के समूह, सबकी अपनी-अपनी बातें और बात करने का तरीका... मैं शांत बैठकर

इन नजारों का आनंद लेने लगी। मुझे भी कॉलेज वाले दिन याद आ रहे थे, जब हम फ्रंड्स का ग्रुप होता था। सबके सब स्वच्छंद परिंदे हुआ करते थे।

धीरे-धीरे भीड़ कम हुई, वक्त भी निकल गया। मैंने मेट्रो पकड़ी और गंतव्य की ओर चल पड़ी। सुबह की निकली थी तो भूख भी लग रही थी। मैंने पर्स से एक बड़ा सेब निकाला और खाना शुरू किया। मैं धीरे-धीरे सेब खा रही थी और मन में पेपर के प्रश्नों व उत्तरों का गुणा-भाग भी लगा रही थी। देखते-देखते वक्त कैसे निकल गया, पता ही नहीं चला। मैं हाथ में वही आधा खाया सेब लिए मेट्रो स्टेशन से बाहर आई। अब सेब खाने का मन नहीं कर रहा था। मैंने वह आधा सेब स्टेशन के बाहर डस्टबिन में डाल दिया। अब मैं बस का इंतजार कर रही थी। तभी मैंने देखा कि एक ग्यारह-बारह साल का लड़का, खुला बदन, जगह-जगह से फटी हुई हाफ पैंट पहने उस डस्टबिन के पास आया। वह बच्चा कुपोषण का शिकार लग रहा था। उसने वह आधा खाया सेब डस्टबिन से निकाला और सड़क किनारे लगे प्याऊ पर जाकर धोया। इसके बाद पालथी मारकर सेब खाने लगा।

वह लड़का इतनी तेजी से खा रहा था कि मानो कोई उससे सेब छीनने आ रहा हो। कुछ ही मिनटों में उसने सेब खा लिया। उसकी पथराई आंखों में चमक सी आ गई थी। इसके बाद वह वहीं सड़क किनारे दोनों हाथों का तकिया बनाकर लेट गया।

उसके लेटने का अंदाज ऐसा था कि जैसे उसने कोई बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली हो।

मैं यह सब बहुत गौर से देख रही थी और मन बेचैन हो रहा था। मेरी आंखें भर आईं। मुझे बहुत ग्लानि हुई कि मैं घर में बचे हुए खाने को किस बेरुखी से कूड़े के हवाले कर देती हूं और एक

यह भूखा लड़का है जो डस्टबिन में निवाला तलाश रहा है। मैंने तो कभी सोचा ही नहीं कि बचा हुआ खाना किसी के लिए जीवन की इतनी बड़ी सौगात हो सकती है। हम लोगों के घर की सूखी रोटी में शायद कुछ लोगों को दुनिया के सबसे मीठे पकवान से भी ज्यादा मिठास मिले।

उस दिन मैंने जीवन के एक कड़वे सच का सामना किया था।

मैंने संकल्प लिया कि कभी खाने की चीजें बर्बाद नहीं करूंगी। अगर खाना बचेगा तो उसे फेंकने की जगह किसी भूखे को खिला दूंगी। अब न तो मैं कभी खाने का अपमान करती हूं और न ही

अपने परिचितों को ऐसा करने देती हूं। भोजन बर्बाद न किया जाए, इस बारे में लोगों को जागरूक भी करती हूं।

आराधना कुमारी, मंगोलपुरी खुर्द (दिल्ली)

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