श्यामली का परलोक गमन
नौकरानी सिर्फ सफाई करती है, खाना बनाती है और बस। इस काम की कीमत 'खाना-कपड़ा और पंद्रह हजार रुपए। जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं, उन्हें आया चाहिए, सारे दिन घर में रहने वाली।
श्यामली मर गई।'
'कौन श्यामली?'
'वही.... ठिगनी सी मोटी बुढिय़ा! वही जो
रोज बिना नागा 'एमरॉल्ड ' के विशाल फाटक पर आ खड़ी होती है।'
'यह 'एमरॉल्ड' क्या है?'
'यह पिछले दो-तीन दशकों से चला नया व्यवसाय है। डैवलर्स एंड बिल्डर्स। ये किसानों से जमीन खरीदते हैं और वहां एक उपनगर बना देते है। बहुमंजिला इमारतें, आधुनिकतम सुविधाओं सहित द्ब्रलैट्स। एक-एक द्ब्रलैट डेढ़ करोड़ में बिकता है और क्यों न बिके? यहां सब कुछ तो है। बाजार, जिम, क्लब, पार्क, ब्यूटी पार्लर और
निर्बाध बिजली, पानी। अपना जैनरेटर, अपना बोरवेल।
हर द्ब्रलैट के साथ सर्वेंट क्वार्टर भी हैं।
फिर भी श्यामली आती है। क्वार्टर में रहने वाली
नौकरानी सिर्फ सफाई करती है, खाना बनाती है और बस। इस काम की कीमत 'खाना-कपड़ा और पंद्रह हजार रुपए। जिनके छोटे-छोटे बच्चे हैं, उन्हें आया चाहिए, सारे दिन घर में रहने वाली। तो....बाहर से कई आया, महरी और दूसरे काम करने वाली आती हैं। गार्ड सबका आईकार्ड देखता है, फिर अंदर जाने देता है। पर श्यामली से कोई कुछ नहीं पूछता है। जब से एमरॉल्ड बसा है, श्यामली यहां आ रही है। झाड़ू-पोंछा, बर्तन,
खाना बनाने के अलावा श्यामली मालिश भी करती है।
इतने से भी काम नहीं चलता बुढिय़ा का। सो वह साडिय़ों में फॉल लगाती है और कपड़ों की मरम्मत कर देती है।
यही....मशीन से उधड़ी सिलाई ठीक कर देना, बटन, हुक ओर कॉज।
तुली सेन गुस्से से सुलग रही हैं। 'ये तमाम आया
लोग नीचे खड़ी क्या मीटिंग कर रही हैं। उन्हें साढ़े नौ तक दद्ब्रतर पहुंच जाना चाहिए और अभी तक आया नहीं आई है। चार्मिस को किसके पास छोड़ें?Ó आया आए तो वो जाए। उन्होंने सेलफोन पर आया का नंबर लगाया।
आजकल हरेक के पास सेलफोन हैं। 'थैंक गॉड! कितनी बड़ी सुविधा है!Ó
'हैलो।Ó आया ने फोन उठाया।
'राधा, क्या कर रही हो? जल्दी आओ, मुझे दद्ब्रतर जाना है।Ó -'आती हूं मेमसाब....वो बात यह है कि श्यामली मर गई।Ó 'मर गई श्यामली तो मैं क्या करूं?Ó
मेमसाहब ने सोचा, तुम तो काम पर आओ। जाहिरा तौर पर हमदर्दी जताई, 'ओह, बड़ा बुरा हुआ! बड़े दुख की बात है। इतने सालों से काम कर रही थी। आई एम सॉरी, राधा। पर प्लीज, अब तुम आ जाओ, मुझे पहले ही बहुत देर हो चुकी है।Ó
और बाकी आया लोग के भी फोन बजने लगे। बड़े बेमन से, धीरे-धीरे सब अपने-अपने काम पर चल दीं।
'आज सुबह साढ़े छह बजे मर गई। तीन दिन से अस्पताल में थी।Ó राधा ने आते ही बताया।
मेम साहब अपना पर्स, रूमाल और सैंडल सहेज रही थीं। रस्मी तौर पर पूछा, 'हुआ क्या था उसे?Ó
- 'उसकी रीढ़ की हड्डी में दर्द रहता था। डाक्टर ने बोला, हड्डी घिस गई है, बीच में जगह हो गई है। इलाज करवा रही थी। उसे थायरॉइड भी था। अचानक ब्लडप्रेशर बहुत बढ़ गया, बेहोश होकर गिर पड़ी। पिछले मंगल को अस्पताल में भर्ती किया था।Ó
तब तक मेमसाहब बाहर जा चुकी थीं। लिद्ब्रट से उतरकर, कार में बैठकर कुछ सोचने का मौका मिला। हां....उन्हें पता था कि श्यामली को स्लिप डिस्क की प्रॉब्लम थी। वह हद्ब्रते में तीन दिन उनकी मालिश करने आती थी। बुढिय़ा में अब ताकत नहीं रही थी पर हाथों में हुनर था।
सोमवार को जब आई थी तो उसका चेहरा सूजा-सूजा लग रहा था। फिर? फिर वो अपनी समस्याओं में डूब गई। श्यामली उनके दिमाग से उतर गई। अरे! मेमसाहब को याद आया....उन्होंने तो श्यामली को
चार साडिय़ां फॉल लगाने के लिए दी थीं।
-'ओद्ब्रफोह....अब क्या होगा?Ó
उन्होंने तुरंत सेलफोन पर श्यामली का नंबर लगाया। घंटी बजती रही। श्यामली की बेटी कनिका को फोन उठाना चाहिए था पर घंटी बजकर बंद हो गई, किसी ने फोन नहीं उठाया।
कमाल है! कार में बैठते ही मिसेज हालदार को भी याद आया। इतवार को अनिर्बान का मैच है। कमीज श्यामली को दी थी। अब? अब क्या होगा?
उन्होंने भी सेलफोन उठाया। अचानक जंगल की आग तरह खबर 'एमरॉल्डÓ में फैल गई। सब मैमसाब लोग बिलख उठीं। हाय...हाय... चार ब्लाउज हैं उसके पास!
रिया की स्कर्ट है। श्यामली को साडिय़ां दी थीं। फॉल, नेट वगैरह लगाने के लिए। ऐसी-वैसी
सिल्क नहीं! बनारसी, बालूचरी और मुर्शिदाबादी सिल्क! सुमन भारद्वाज की बेटी का ब्याह है अगले महीने। ढेर सारी बनारसी साडिय़ां दी थीं श्यामली को।
तुली सेन ने फिर फोन लगाया। लड़की फोन
ही नहीं उठा रही थी। घनघोर व्यस्त होने पर
भी वो हर आधा घंटे पर फोन करती रही। कोई फोन नहीं उठाता? अचानक उन्हें रूपन पाल- ड्राइवर रूपनपाल का ध्यान आया! तुरंत रूपन को फोन लगाया। वो भी जवाब नहीं दे रहा। तब चपरासी को भेजा। रूपन फोन कान से लगाए-लगाए हाजिर हुआ। मेम साहिब के सामने आते ही,
'फिर बात करता हूंÓ कहा और सैल्यूट झाड़ा।
-'तुम श्यामली को जानते हो?Ó
- 'हां....आज सुबह मर गई... वही न!Ó
-'उसका घर जानते हो?Ó
-'नहीं, घर तो नहीं जानता!Ó
-'उसके पास मेरी कीमती साडिय़ां पड़ी हैं! फोन करती हूं तो कोई जवाब नहीं देता!Ó
-'कौन जवाब देगा? आज सुबह मरी है। नीमतल्ला कालीघाट ले जाने में एक बज गया होगा। दो-चार रिश्तेदार तो चाहिए न! श्यामली का आदमी पिछले साल मर गया था, बेटा, देवर, जेठ, कोई है नहीं? कौन संभालेगा? रामकृष्ण मिशन का ही सहारा है। एक बेटी है, स्कूल में पढ़ती है। अब अनाथ हो गई। कोई घर लौटा ही
नहीं होगा, तो फोन कौन उठाएगा?Ó
-'तुम 'एमरॉल्डÓ के सिक्योरिटी गार्ड को फोन करो।
श्यामली के घर का पता लगाओ।Ó
-'ठीक हैÓ कहकर रूपन पाल चला गया। यही
खलबली कई दिलों में थी। किसी के कपड़े,
किसी की साडिय़ां और मिसेज मजूमदार से
तो वो एक हजार रुपया उधार ले गई थी।
आई,सी.यू. के बाहर बैठे-बैठे नलिनी बनर्जी को
'एमरॉल्डÓ के सारे समाचार मिल रहे थे। उनकी भी तीन साडिय़ां थीं। पर क्या करें? बड़ी मां को अकेली नहीं छोड़ सकते। सब बहुएं बारी-बारी से आकर सास की देखभाल करती हैं और बड़ी मां! बाप रे बाप! कितनी कड़वी जबान! बड़ी मां माने बड़ी मां। ठाकुर बाड़ी में किसी की मजाल है जो बड़ी मां की बात काटे। अब जाके बूढ़ी खाट से लगी है, नहीं तो सेवा में एक न एक बहू को तैनात रहना पड़ता था। नौकरानी को हाथ नहीं लगाने देती बड़ी मां। जो करना है बहुएं ही करेंगी। मालिश, स्नान, बाल बनाना वगैरह। पिछले साल आंगन में फिसलकर गिर पड़ीं थीं और कूल्हे की हड्डी टूट गई। बाप रे बाप!
छह महीने तक मैला कराते-उठाते बहुओं का दम फूल गया। पर क्या करें? सोने के पहाड़ पर बैठी हैं बड़ी मां।
उन्हें नाराज करना गाड़ी-बाड़ी और करोड़ों की जायदाद से हाथ धोना है।
गहरी सांस ली नलिनी ने। बूला को फोन लगाया। उसने भरोसा दिलाया। अपनी साडिय़ों के साथ उसकी भी मंगवा लेंगी। उस छोटी सी कोठरी में मेज पर रखा सेलफोन यूं ही बजे जा रहा था। अब तो शाम हो चली थी। अब भी घाट पर बैठी मां को रो रही है क्या? घर क्यों नहीं आती या घर
में है, जान-बूझकर फोन नहीं उठा रही। ढीठ! निल्र्लज कहीं की। मां के मरते ही बिल्कुल आजाद हो गई, रात भी बाहर गुजारने का इरादा है क्या? अब क्या होगा? कपड़े, साडिय़ां, रुपया?
-रूपनपाल हाजिर हुआ।
-'घर का पता मिल गया है, मैडम!Ó
तुली ने घड़ी देखी, 'ठीक है, चलो....श्यामली के
घर चलो।Ó दूसरे दिन राधा और फिर राधा से सुनकर बाकी आया लोग ने यह सूचना मेमसाब लोग को दी। कल सेन मेमसाहब श्यामली के घर गईं। खुद अपनी कार में बैठकर। लड़की को समझाया। गांव से आए काका बाबू को समझाया। उन्हें पांच हजार रुपया भी दिया। इससे उसका कर्ज पटाने के लिए। वो कनिका को साथ रखेगी, आगे पढ़ाएंगी और बड़ी होने पर उसकी शादी भी कर देंगी।
काका बाबू ने चैन की सांस ली। अपनी ही बेटी का दहेज जुटाना मुश्किल है। यह दूर के रिश्ते की भांजी कहां से
गले पड़ गई? उफ! मानना पड़ेगा! हॉवर्ड में पढऩे वालों का दिमाग चलता है। यह बात उन्हें क्यों नहीं सूझी। ऐसी
कामकाजी लड़की! वह भी अनाथ! आगे पीछे कोई पूछने वाला नहीं! मुद्ब्रत में चौबीस घंटे की नौकरानी! आजकल
ऐसी चीज मिलती है कहीं?
ग्यारह बजे मिसेज मजूमदार बिल्डिंग नं. ई-111 में पहुंचीं। उन्हें मालूम था तुली दद्ब्रतर में होगी। ऐसी मजबूत
मेहनतकश लड़की तुम अकेले ही हथिया लो, यह हम नहीं होने देंगे। लिद्ब्रट से चढ़कर ऊपर पहुंची। मन-ही-मन,
बार-बार दुहराती हुई कनिका को क्या कहकर फुसलाएगी।
तुली के द्ब्रलैट के बाहर सशस्त्र सिक्योरिटी गार्ड बैठा था।
न किसी को अंदर जाने देगा, न बाहर! अंदर अकेली लड़की है, उसकी इज्जत का सवाल है।
(परिचय: लेखिका वरिष्ठ कथाकार हैं। अनेक कथा संग्रह और उपन्यास प्रकाशित)
'रुद्रप्रियम', 1-ग-9, विज्ञान नगर, कोटा (राज.)
लता शर्मा