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लघुकथा: स्वाद की छलांग

एक कोने में बैठा नवविवाहित युगल समोसे देखकर खुश तो हुआ पर तभी पत्नी थोड़ा मुंह बिचकाती हुई बोली, ‘मैं तो समोसा नहीं खाने वाली!

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 20 Feb 2017 03:44 PM (IST)Updated: Tue, 21 Feb 2017 09:03 AM (IST)
लघुकथा: स्वाद की छलांग

ठेले पर कड़ाही में एक जैसे आकार के ढेरों समोसे तेल में खदक रहे थे। वही तीन कोने, उतना ही भरावन। धीरे-धीरे अपनी मनभावन खुशबू छोड़ते और रंगत पा चुके समोसे परोसे जाने के लिए एकदम तैयार थे। एक कोने में

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बैठा नवविवाहित युगल समोसे देखकर खुश तो हुआ पर तभी पत्नी थोड़ा मुंह बिचकाती हुई बोली, ‘मैं तो समोसा नहीं खाने वाली! एक तो इतना तेल, उस पर मैदे की मोटी परत, मोटी तो हो ही जाऊंगी ऊपर से चेहरे पर पिंपल भी निकल आएंगे। वैसे भी मैं शादी के बाद मेनटेन रहना चाहती हूं।’ तो वहीं दूसरे कोने में बैठा लाला पहले से ही कचौरियों पर हाथ साफ कर रहा था। उसने दो समोसों की फरमाइश कर दी और पेट पर हाथ फिराने लगा मानो समोसे ठूसने के सिवाय कोई काम भी न था।

दूर खड़ा एक मजदूर वहीं से समोसे ताक रहा था। उसके जी में तो आ रहा था कि खा ही ले। हर रोज उसे समोसों की भींनी खुशबू ललचाती थी मगर मन मार लेता। पर आज शायद पेट की आग ज्यादा तेज थी। एक तो कड़क ठंड उस पर समोसों की उड़ती सुगंध उसे यहां तक खींच लाई थी। हालांकि इसकी कीमत चुकाने के लिए उसे घर जाने के लिए 5 किमी रास्ता पैदल ही पार करना पड़ेगा। मन नहीं माना और ले लिया एक पत्ता समोसा और एक कोने में आग ताप रहे लोगों के पास जाकर बैठ गया।

पहले तो उसकी खुशबू और मनमोहक आकार से जी खुश किया फिर थोड़ा तोड़कर मुंह में डाल लिया। फिर स्वाद के समुंदर में खूब तैरकर बाहर निकला। तीखी उत्तेजना सुरसुराहट बनकर उसके मुंह में समा गई। सामने पानी का नल था फिर भी नहीं पिया। इतनी कीमत चुकाकर पानी पीकर यूं ही उस समोसे का स्वाद को कम नहीं करना चाहता था। उसे न तो वजन बढ़ने का डर था और न ही मुहांसों की धमक का।

आरती तिवारी

ई.डब्ल्यू.एस.-4876, आवास विकास-3 पनकी,

कल्याणपुर, कानपुर-17

लघुकथा: चॉकलेट

बैंक मैनेजर सिन्हा साहब के दोनों बच्चे बरामदे में बैठे पेंटिंग बना रहे थे कि कैशियर किशोरी बाबू

का आना हुआ।

‘कैसे हो बेटा?’

‘ठीक हैं अंकल।’, बड़ेवाले ने जवाब दिया।

‘पापा हैं घर पर?’

‘नहीं, यहीं कहीं गए हैं, अभी आ जाएंगे।’

‘ठीक है, जरा अखबार देना’ कहते हुए किशोरी जी अंदर अतिथि कक्ष में जाकर बैठ गए।

‘भैया, अंकल ने चॉकलेट नहीं दी?’

अखबार देकर खाली हाथ लौटे बड़े से छोटे ने पूछा।

बड़े ने जल्दी से उसे धीरे बोलने का इशारा किया ‘अरे पापा को आने दे न! देखता नहीं अंकल उनके सामने ही देते हैं चॉकलेट हमेशा।’

कुमार गौरव अजीतेंदु

द्वारा श्री नवेंदु भूषण कुमार

शाहपुर(ठाकुरबाड़ी मोड़ के पास), दाउदपुर

पो. दानापुरा(कैंट), पटना-801503


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