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लघुकथा: बात समर्पण की

गुरु ने कहा इसमें कोई भी सूत्र वाली बात नहीं है बस भरोसा करना होता है। श्रद्धा चाहिए। श्रद्धा से सब कुछ संभव है। इसके लिए उसका स्मरण ही पर्याप्त है जिसके लिए तुम श्रद्धा रखते हो।

By Babita KashyapEdited By: Published: Wed, 08 Feb 2017 03:34 PM (IST)Updated: Wed, 08 Feb 2017 03:39 PM (IST)
लघुकथा: बात समर्पण की
लघुकथा: बात समर्पण की

एक पुराने समय की बात है एज शिष्य अपने गुरु के आश्रम में कई सालों से रह रहा था उसने वंहा रहकर बड़े शास्त्रों का अध्यन किया और ज्ञान को प्राप्त किया ।

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एक दिन वो क्या देखता है कि उसके गुरु पानी पर चल रहे है। यह देखकर उसे बड़ी हैरानी हुई तो उसने गुरु से पूछा की आपने ये कैसे किया। उनके पैरों में गिरकर बोला आप तो बड़े चमत्कारी है। अपने यह रहस्य अब तक मुझसे क्यों छिपाए रखा? कृपया मुझे भी यह सूत्र बताइये कि पानी पर किस तरह चला जाता है अन्यथा मैं आपके पैर नहीं छोडूंगा ।

गुरु ने कहा इसमें कोई भी सूत्र वाली बात नहीं है बस भरोसा करना होता है। श्रद्धा चाहिए। श्रद्धा से सब कुछ संभव है। इसके लिए उसका स्मरण ही पर्याप्त है जिसके लिए तुम श्रद्धा रखते हो।

वह शिष्य अपने गुरु का नाम जपने लगा और काफी बार नाम जपने के बाद उसने पानी पर चलने की सोची तो जैसे ही उसने पानी पर पैर रखा डुबकी खा गया । मुंह में पानी भर गया । बाहर आया और बाहर आकर बड़ा क्रोधित हुआ और जाकर अपने गुरु को बोला अपने तो मुझे धोखा दिया । मैंने कितनी ही बार आपका नाम जपा फिर भी डुबकी खा गया । हजार से भी अधिक बार आपका नाम जपा किनारे खड़े होकर भी पानी में उतरते समय भी और डुबकी खाते समय भी ।

गुरु ने कहा बस यही तो समस्या है तुम्हारे डूबने का एकमात्र कारण यही है सच्ची श्रद्धा होती तो एक बार नाम लेना ही पर्याप्त था सच्ची श्रद्धा को गिनती करके नहीं मापा जा सकता वो अपने ईष्ट के प्रति समर्पण मांगती है।

साभार: Guide2 India


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