लघुकथा: गुलाब के फूल
एका एक तेनालीराम जोर से चिल्लाए- “मेरे बेटे के पास अपनी बात कहने के लिए जुबान है। वह स्वयं ही महाराज को बता देगा कि वह बगीचे में क्या करने आया है।
तेनालीराम की पत्नी को गुलाब के बड़े-बड़े फूलों को जूड़े में लगाने का बेहद शौक था। उसकी पसंद के फूल केवल राज उधान में ही थे। अत: वह बेटे को वहांं भेजकर चोरी से एक फूल रोज तुड़वा लेती थी। तेनालीराम से जलने वालों को जब यह पता चला तो उन्होंने तेनालीराम को महाराज की नजरों मे गिराने का निर्णय लिया। उन्होंने उसके फूल चोरी करने का समय पता कर लिया और जब एक दिन सभा चल रही थी, तब तेनालीराम की मौजूदगी में महाराज से शिकायत कर दी और कहा कि महाराज! चोर इस समय आपके बगीचे में है, यदि इजाजत हो तो पकड़वा कर हाजिर करें। महाराज ने कहा, ''ठीक है, वह चोर जो कोई भी है उसे हमारे सामने हाजिर करो।”
सभी दरबारी कुछ सैनिकों के साथ बगीचे के द्वार पर आ गए और सिपाहियों को बगीचा घेर लेने का आदेश दिया। वे लोग तेनालीराम को भी अपने साथ ले आए थे और उन्हें पूरी बात बता भी चुके थे कि वह चोर और कोई नहीं बल्कि आपका बेटा है। कुछ दरबारी इस बात पर बड़ा रस ले रहे थे कि जब तेनालीराम का बेटा चोर हैसियत से दरबार में हाजिर होगा तो तेनालीराम कि क्या बात बनेगी।
एक दरबारी ने चुटकी ली- “क्यों तेनालीराम! अब क्या कहते हो?” एका एक तेनालीराम जोर से चिल्लाए- “मेरे बेटे के पास अपनी बात कहने के लिए जुबान है। वह स्वयं ही महाराज को बता देगा कि वह बगीचे में क्या करने आया है। वैसे मेरा ख्याल तो यह है कि अपनी मां की दवा के लिए पौधों की जड़ें लेने आया होगा न कि गुलाब के फूल चोरी करने।”
तेनालीराम के बेटे ने बगीचे के अंदर से ये शब्द सुन लिया। दरअसल उसे सुनाने के लिए ही तेनालीराम ने इतनी जोर से बोला था। वह फौरन समझ गया कि उसके पिता क्या कहना चाहते हैं, अत: उसने झोली में एकत्रित किए फूल फेंक दिये और कुछ पौधों कि जड़ें उठाकर अपनी झोली में रखकर बाहर आ गया।
जैसे ही वह बाहर आया, वैसे ही दरबारियों के इशारे पर सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया और ले जाकर दरबार में पेश किया। “महाराज! यह है आपके बगीचे का चोर। तेनालीराम का पुत्र। यह देखिए, अभी भी इसकी झोली में गुलाब के फूल हैं।”
“गुलाब के फूल? कैसे गुलाब के फूल।” तेनालीराम के बेटे ने अपनी झोली में से सारी जड़ें महाराज के सामने फर्श पर डाल दी और बोला- “मैं तो अपनी मां की दवा के लिए पौधों की जड़ें लेने आया था।” यह देखकर महाराज ने दरबारियों को खूब फटकार लगाई। सभी दरबारी शर्म से सिर झुकाए खड़े सोचते रहे कि गुलाब के फूल जड़ कैसे बन गए?