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कहानी: पहले तुम

उत्तर अवस्था में और अधिक गहराने लगते हैं दांपत्य के ताने-बाने। जाने कौन कब साथ छोड़ जाए, यही आशंका दहलाती रहती है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Mon, 13 Feb 2017 02:54 PM (IST)Updated: Mon, 13 Feb 2017 03:08 PM (IST)
कहानी: पहले तुम
कहानी: पहले तुम

मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। हर समय शांत रहने वाले पति सलिल ने जाते-जाते क्रोधवश इतनी जोर से दरवाजा बंद किया था कि घर में सभी को उनके गुस्से की पराकाष्ठा का अंदाजा हो गया था। किसी से कभी नाराज नहीं होते और यदि होते तो बस चुप हो जाते, व्यक्त नहीं करते थे। सभी इस बात से चिंतित और परेशान थे कि ऐसा क्या हुआ जो इतना गुस्सा आ गया।

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अंधेरी बालकनी में मैं खड़ी-खड़ी बस रोए जा रही थी, मानो आंसुओं ने सैलाब का रूप ले लिया हो। हिचकियां थीं कि थम ही नहीं रही थीं। 'आज सलिल ये क्या कह कर चले गए!' अन्तर्मन से सवाल किए जा रही थी मन ही मन

बुदबुदाती जा रही थी। आखिर आज जो कुछ भी घटित हुआ है वह कोई नई बात तो नहीं थी। कितनी बार सलिल के सामने ही आधुनिकता का लबादा ओढ़े युवा बच्चों ने मेरा अपमान किया है। मैं शर्मिंदगी के दौर से गुजरी भी हूं, दुखी भी हुई हूं, पर पति ने ही बड़प्पन और क्षमा का पाठ पढ़ाया है। लगता है अब सलिल में भी सहनशक्ति की कमी आ रही है।

वैसे भी आजकल कुछ परेशान और उलझे हुए भी रहने लगे हैं। आज तो हद हो गई, गुस्से में क्या कह गए। मुझे बच्चों द्वारा किए अपमान से जितनी चोट पहुंची है उससे बहुत ज्यादा सलिल के वाक्य से जो उन्होंने मेरे लिए कह डाला है, 'कामिनी! बेहतर हो कि मुझसे पहले तुम विदा हो जाओ।' मैं तड़प उठी हूं। एक तो अपने द्वारा किया गया अपमान और दूसरा पति के मुंह से अपने लिए मरने की बात कहना, झकझोर गया है। मैं विवेकशून्य हो गई हूं। एक बार नहीं बार-बार यह वाक्य हथौड़े की तरह दिल प र लगातार चोट पहुंचा रहा है। इतनी गहरी चोट कि किसी को भी बताना मुश्किल हो रहा था।

दिन-रात मेरे स्वास्थ्य के लिए डाक्टरों के यहां चक्कर लगाने वाला व्यक्ति एकदम से मेरे मरने की चाहत करने लगे, विश्वास नहीं हो रहा था। मैं मन ही मन यह दोहरा रही थी। मेरे बीमार पडऩे पर रातभर पलक नहीं झपकाने वाले सलिल इतने कठोर कैसे हो गए? अपने मरने की बात मैं कभी करती तो झट से अपना हाथ मेरे होठों पर रख देते थे। कहते ऐसा कभी सोचना भी नहीं और अगर सोचा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। मैं अन्तर्मन तक एक अजीब से सुकून में डूब जाती। अपने भाग्य पर इतराती हुई न जाने कब उनकी बाहों में सो जाती।

हालांकि मैं हमेशा से यही चाहती हूं कि जब भी मेरी आंखें बंद हों, सलिल मेरे सामने हों। संभवत: हर पत्नी यही चाहती है कि वह अपने जीवन की आखिरी यात्रा लाल जोड़ा पहनकर ही करे। मुझे कभी मरने से डर नहीं लगता लेकिन इन्होंने क्यों कह डाला?

रात काफी हो गई थी। लगभग 10 बजे सलिल घर लौटे। वह इधर-उधर नजर दौड़ाए मैं कहीं नहीं दिखी तो सीधे बालकनी में आकर उन्होंने बत्ती जलाई, उन्हें पता था कि जब भी मैं आहत महसूस करती हूं बालकनी में आकर ही खड़ी होती हूं। सलिल ने मुझे झट से गले लगा लिया। मैं भी अभी तक जो बुत बनी खड़ी थी मानो प्रेम स्पर्श

से पिघल उठी।

कुछ देर बाद वह मुझे कमरे ले आए और शांत हो मेरा चेहरा निहारते रहे, शायद पछतावा हो रहा था उन्हें। वे बोले, 'मैंने जो आज तक तुमको नहीं कहा, वह मेरे मुंह से कैसे निकल गया! तुम तो स्वयं ही मुझसे हमेशा सुहागन मरने की इच्छा जाहिर करती रहती हो बल्कि मैं ही तुम्हारी मृत्यु की कल्पना से सिहर उठता हूं।' घर के कमरों की बत्तियां जल रही थीं पर किसी की हिम्मत नहीं थी, सलिल का सामना करने की। हम दोनों की आपस

में जो प्यार-विश्वास की गहराई थी उससे वह बखूबी परिचित थे।

सलिल का ऐसा रौद्र रूप संभवत: पहले कभी नहीं देखा था उन लोगों ने। बड़े ही सरल, सुलझे हुए, रिश्तों की नजाकत को समझने वाले, हर बात को संजीदगी से लेने वाले, क्रोध तो छूकर भी नहीं गया था, शायद यही कारण था कि घर में कुछ भी कहने और करने की मर्यादा लुप्त हो चुकी थी। बड़ों का सम्मान करना, उनकी भावनाओं की कद्र करना यह सब मजाक बनकर रह गया था। शायद उनकी नेकदिली को बच्चों ने कायरता समझ लिया था। मैं और सलिल हमेशा यही सोचते कि जीवन का काफी हिस्सा कट गया है जो बाकी है इसी भाव से जिएं कि 'क्षमा बडऩ को चाहिए, छोटन को उत्पात।' छोटे तो गलती करते ही हैं किंतु पड़ों को क्षमा करना ही शोभा देता है।'

मैं उठकर किचन से अपने और सलिल के लिए खाना ले आई। हम लोग खाना खाते रहे पर उस समय भी मेरा मन यही सोचकर दु:खी होता रहा था कि ऐसा व्यक्ति जो मेरे प्रेम में आकंठ डूबा है उसने अगर कोई बात कही है तो अवश्य उसमें कोई राज होगा फिर मैंने बेकार ही में सलिल की बात को इतना दिल से लगा लिया, सच पूछो तो मैं

स्वयं ही, दिल से यही चाहती हूं कि पति के सामने ही अंतिम सांस लूं।

यही सब सोच रही थी कि सलिल की आवाज से चौंककर वर्तमान में लौट आई। सलिल कह रहे थे, 'कामिनी। आज तुम्हारे ऊपर नाराजगी का इजहार करके बहुत ही शर्मिंदा हूं। तुम जानती हो, व्यक्ति जब अपनी उम्र की ढलान पर होता उसमें असुरक्षा की भावना पैदा होने लगती है भावुकता भरने लगती है। अपने जीवन के बाद जीवनसंगिनी के स्वास्थ्य, मान-सम्मान, उसकी देखरेख, दैनिक आवश्यकताओं और परेशानियों की चिंता सताने लगती है। मौत किसी भी उम्र में आ सकती है पर वृद्धावस्था में तो हर पल मौत का खौफ भी सताने लगता है।'

वे दोबारा बोले, 'तुम जानती हो, इन्हीं बच्चों की नादानियां, कड़वे बोल हम दोनों हंसते-हंसते

सह जाते हैं, कभी दिल पर नहीं लेते, यही सोचते हैं कि चलो, नादान बच्चे हैं इनकी बातों को क्या हवा देना पर सच पूछो, कामिनी, अब जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है, तुम्हारी कोई तौहीन करे बर्दाश्त नहीं होता मुझसे। मैं भी वही हूं, तुम भी वही हो, बस सहनशक्ति कम हो गई है। अब तुम्हारे लिए बहुत चिंता होने लगी है। कामिनी, तुम बहुत भोली हो, साफदिल हो अपमान सहती हो पर उफ नहीं करती, हंसी में उड़ा देती हो। मेरे रहते तुम्हें एक मजबूत

सहारा है। मैं नहीं रहूंगा तो तुम्हारा क्या होगा? अभी मैं तुम्हारे उदास होने पर जानने की कोशिश करता हूं कि तुम्हें क्या तकलीफ है, तुम्हें सांत्वना देने का प्रयत्न करता हूं, मुझे अब किसी पर विश्वास नहीं रहा है।Ó यह कहते-कहते सलिल काफी भावुक हो रहे थे।

मैं महसूस कर रही थी, मुझे मरने की बात कहकर वो किस हद तक दु:खी हैं। मैं ये भी देख रही थी वो कुछ दिनों से काफी चिंतित भी रहने लगे हैं, मैंने कहा भी, 'तुम इधर कुछ उदास रहने लगे हो, यही सब सोचते रहते हो क्या?'

'हां कामिनी तुम सही पहचान रही हो, एक हफ्ते पहले मैं मि. शर्मा जो पड़ोस में रहते हैं उनके साथ उन्हीं के आग्रह पर एक वृद्धाश्रम चला गया था। वहां उनको अपने नजदीकी को कुछ सामान देना था। यह उसके लड़के ने भिजवाया था जिसने अपनी मां को आश्रम में डाल दिया था केवल इसलिए कि पति-पत्नी दोनों जॉब में हैं। मां की देख-रेख कौन करेगा?

सच पूछो तो जब मैंने उस स्त्री को देखा उसकी आंखों की बेबसी मुझे विचलित कर गई। मैं दिल की बात बता रहा हूं। मैं थोड़ी देर के लिए उसकी जगह तुम्हारी कल्पना करने लगा और सिहर गया। तभी से मेरे दिल ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि दोनों को मरना तो है ही। जीवन का ये कड़वा सच है। क्यों न मेरे सामने मुझसे पहले तुम इन

सारे झंझटों को झेलने से पहले ईश्वर की शरण में चली जाओ। मैं फिर चैन से मर सकूंगा। इसीलिए मैं ये सारी बातें तुम्हारे समक्ष स्पष्ट रूप से कह रहा हूं। किसी का प्रिय जब उससे दूर जाता है बहुत कष्ट होता है पर जीते जी उसकी कोई दुर्दशा करे, हिफाजत न करे ये उससे भी ज्यादा कष्टकारक होता है।'

सलिल की बात सुनकर मैं इतनी अभिभूत हो गई कि मौत उस घड़ी सामने आ जाती तो खुशी-खुशी गले लगा लेती।

(बनते-टूटते पारिवारिक संबंधों की मर्मस्पर्शी कहानियां लिखने वाली वरिष्ठ कथालेखिका)

132, बीमा विहार, लखनपुर कानपुर-20802

सुमन श्रीवास्तव

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