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नवगीत: आए बहेलिए

आए झुंडों में बहेलिए, कहां परिंदों का कुल जाए? किस कोटर में छिपे कपोती, जाकर कहां चकोर विलापे?

By Babita KashyapEdited By: Published: Tue, 17 Jan 2017 12:19 PM (IST)Updated: Tue, 17 Jan 2017 12:23 PM (IST)
नवगीत: आए बहेलिए
नवगीत: आए बहेलिए

आए झुंडों में बहेलिए,

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कहां परिंदों का कुल जाए?

किस कोटर में छिपे कपोती,

जाकर कहां चकोर विलापे?

क्या विदेह हो जाए सुगना,

कहां सिमटकर चकवी कांपे?

बया सिहरकर किस प्रपात में

पलक झपकते ही घुल जाए?

तीतर की झिलमिल आंखों को

दिखे निशानेबाज हर कहीं।

सहमी-सहमी हर बटेर है,

कहां बत्तखें शोख अब रहीं!

ज्यों ही तने, गुलेल तुरत ही

मैना का डैना खुल जाए।

मासूमों की बेफिक्री के

दिन अब गिने-चुने लगते हैं।

रात हुई, सो गईं मुंडेरें,

पर घर के तोते जगते हैं

कुछ ऐसे हों बोल पिकी के,

सारी वीरानी धुल जाए।

सुनो टिटिहरी! दूर नहीं हैं

आसमान गिरने के दिन अब।

जग क्या समझेगा पंखों में

चोंच छिपाकर सोने का ढब?

किस कनेर पर श्यामा चहके,

किधर चुलबली बुलबुल जाए?

(नवगीत के सुप्रतिष्ठित हस्ताक्षर)

205, ऑर्चिड ब्लॉक, पार्क व्यू अपार्टमेंट्स, नवीन गल्ला मण्डी के पास, सीतापुर रोड, लखनऊ-226024

सत्येंद्र कुमार रघुवंशी


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