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प्रेम ..एक निधि

प्रेम को पाने और करने की इच्छा हेर व्यक्ति की होती है लेकिन प्रेम को जीना सीखना होता है ये एक बहुत मीठा सा अनुभव है। प्रेम है क्या बहुत से लोग ये भी नहीं समझते है क्योकि लोग इस भावना को केवल ऊपर से देखते है ह्रदय से देखने के लिए अपने अंतर्मन को देखना और समझना होता है। मनुष्य जीवन एक अनमोल निधि है जो व्यर्थ नहीं जानी चाहिए इस निधि का

By Edited By: Published: Fri, 14 Mar 2014 01:57 PM (IST)Updated: Fri, 14 Mar 2014 01:57 PM (IST)

(आकांक्षी श्रीवास्तव)प्रेम को पाने और करने की इच्छा हर व्यक्ति की होती है लेकिन प्रेम को जीना सीखना होता है। ये एक बहुत मीठा सा अनुभव है। प्रेम है क्या.. बहुत से लोग ये भी नहीं समझते हैं क्योंकि लोग इस भावना को केवल ऊपर से देखते हैं, दिल से देखने के लिए अपने अंतर्मन को समझना होता है।

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मनुष्य जीवन एक अनमोल निधि है जो व्यर्थ नहीं जानी चाहिए इस निधि का उत्तम उपयोग होना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम तो हमको यही समझना चाहिए की कैसे अपने मन की थाह तक पहुंचे और वह छुपे हुए प्रेम के अनमोल प्रवाह को बाहर लाये और अपने प्रिय, मित्रों और समाज केसब लोगों तक पहुंचाएं क्योंकि यही एक ऐसा धन है जो बांटने से कम नहीं होता है अपितु बढ़ता ही है। जीवन में हम जो कुछ भी सबको देते है वही किसी न किसी रूप में वापस मिलता है। इसलिए यदि हम चाहते हैं हर एक अच्छी चीज हमको मिले तो पहले देना भी सीखना पड़ेगा।

प्रकृति का एक नियम है की यदि आप सबको और अपने को भी प्रसन्न देखना चाहते हैं, तो जब कोई आपको मिले तो अपनी पूरी संवेदना के साथ एक प्रेम का सन्देश मन ही मन उन्हें भेज दें फिर आप देखेंगे की आपके सामने वाले व्यक्ति को आपकी मन की तरंगे कहीं न कहीं छुएंगी और आप से एक अंतरंग भाव से मिलेगा और अपने हृदय में एक अद्भुत शांति का अनुभव करेगा।

ये कैसे हुआ? केवल एक भाव से ...प्रेम।

प्रेम अभय है। अप्रेम भय है और जिसे इस भय से बाहर आना हो वो समस्त के प्रति प्रेम से भर जाए। चेतना के इसी रूप से प्रेम निकलता है। प्रेम से बड़ी कोई शक्ति नहीं है क्योकि जो प्रेम को उपलब्ध होता है उसमे भय नहीं होता है।

प्रेम शब्दों से नहीं बताया जा सकता है, ये कोई एक विचार नहीं है, ये हमारे अन्दर का एक भाव है। प्रेम को विचारों से मत जोड़ो। इसे बस जीओ और लोगों से जुड़कर लोगों में बांटो क्योंकि हम कोई भी काम बिना प्रेम के नहीं कर सकते है। जैसे कुम्हार कोई बर्तन बनाता है तो उसे भी अपनी कृति से अथाह प्रेम होता है।

मनुष्य की श्रेष्ठता स्वयं उसके अपने हाथों में है। प्रकृति ने अगर संभावनाएं दी है तो उसका निर्माण करने के लिए केवल मनुष्य को ही विवेक दिया है। प्रभु ने इतना दिया है तो हम लोगों को इसका सदुपयोग करना चाहिए। ये स्वतंत्रता अपने आप में बहुत महिमा पूर्ण है। हम जिसको चाहे अपने प्रेम का पात्र बना ले या किसी के प्रेम के पात्र बन जाएं।

जीवन एक कला है और मनुष्य जीवन का कलाकार है और कला का उपकरण भी मनुष्य ही है। अब अपने को जैसा जो चाहे बना ले और अपने को प्रतिपल बदल भी सकता है। जीवन में जब ये लगे की ये जीवन कैसा अपूर्ण लगा रहा है तो जान लेना चाहिए की कहीं जीवन की धारा अपने नैसर्गिक रूप से अलग हो गयी है और प्रेम का अभाव हो रहा है या प्रेम जीवन में अभी अपना वो स्थान नहीं ले पाया है जो होना चाहिए तो बस उसी पल अपने जीवन को एक नया आयाम दें।

एक शब्द हमको बहुत सी कठिनायों से , मुक्त कर देता है और वो है ........प्रेम

किसी ने कहा है की प्रेम सबसे शक्तिशाली होता है लेकिन ये बात कम लोग समझते हैं। बहुत से लोग बहुत ऊंचे ओहदे को पाना, बहुत सा धन जमा कर लेना, बहुत लोगों से मिलना इसी को जीवन की उपलब्धि मान लेते हैं जबकि वो लोग प्रेम से निर्धन होते हैं। क्या प्रेम के बिना जीवन सफल और संभव हो सकता है? ये विचार का विषय है और स्मरण रहे की साथ हमारे कुछ भी नहीं जाता है। क्या सही है जीवन में प्रेम के साथ सबको अपनाना या बिना किसी को अपना बनाये इस संसार से चले जाना ?

इस प्रश्न के साथ मैं आप लोगों को यहीं छोड़ती हूं अब आप यह निश्चय करें की जीवन में क्या महत्वपूर्ण है!


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