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क्या असीमित है कविता का संसार?

साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार और भारतीय ज्ञानपीठ के युवा लेखन पुरस्कार से सम्मानित 29 वर्षीय कवि अरुणाभ सौरभ से वैद्यनाथ झा की बातचीत के अंश...

By deepali groverEdited By: Published: Mon, 08 Dec 2014 11:14 AM (IST)Updated: Mon, 08 Dec 2014 11:29 AM (IST)
क्या असीमित है कविता का संसार?

साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार और भारतीय ज्ञानपीठ के युवा लेखन पुरस्कार से सम्मानित 29 वर्षीय कवि अरुणाभ सौरभ से वैद्यनाथ झा की बातचीत के अंश...

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क्या कवि अपनी कविता की आलोचना कर सकता है? साहित्य अकादमी ने युवा पुरस्कार और भारतीय ज्ञानपीठ ने नवलेखन पुरस्कार से सम्मानित कर आपकी रचनाओं को किस 'फैकल्टी' की मान्यता दी है?

अपनी रचनाओं की तटस्थ, निर्मम और वस्तुनिष्ठ आलोचना करना तो एक कवि की प्राथमिकता है। हां, एक चुनौती जरूर बन जाती है कि उसकी कविता क्यों और किसके लिए है? इन सवालों से जूझने के लिए उसे निर्मम होना ही पड़ेगा। मेरी समझ से आत्ममुग्धता कवि के लिए घातक होती है। पुरस्कार और सम्मान से कविता या कवि का मूल्यांकन असंभव है। कविताओं की फैकल्टी प्रवृत्ति, शिल्प, कथ्य या विचारधारा तक सीमित नहीं है। कविता को आप फैकल्टी में नहीं रख सकते। आपके प्रश्न में विरोधाभास है।


आपकी सभी कविताएं लंबी हैं। छंद के अनुशासन से मुक्त किन्तु कविता के लय से भरपूर। लंबी कविताएं क्यों? क्या यह शैली महाकाव्य का कोई समानांतर आकार तो नहीं ले रही?

मेरी सभी कविताएं लंबी नहीं हैं। बस एकाध ही लंबी कविता है, चार पांच पृष्ठों की। मेरी कविताओं को आप लंबी कविता नहीं मान सकते हैं क्योंकि बात जहां पूरी होती है, मेरी कविता वहीं खत्म हो जाती है। लंबी कविता महाकाव्य का ही अद्यतन विस्तार है, उसके समानांतर नए मापदण्ड से आगे बहुत कुछ है। हिंदी में लंबी

कविताओं की सुदीर्घ परंपरा रही है। इस पर विस्तार से फिर चर्चा की जाए।

लंबी कविता की रचना प्रक्रियाओं की पृष्ठभूमि क्या है?

लंबी कविता की रचना प्रक्रिया की सबसे आवश्यक शर्त बेहद तनाव की उपस्थिति है। ऐसी कविताओं के नायक/नायिका प्राय: शोषित, वंचित और सर्वहारा वर्ग से ताल्लुक रखते हैं, जो इस तनाव को बढ़ाने में सहायक होता है।

आप मैथिली और हिंदी दोनों भाषाओं में रचना करते हैं । क्या दोनों भाषाओं के साथ नैसर्गिक न्याय कर पाते हैं ?

हिंदी और मैथिली दोनों ही भाषाएं भारतीय भाषा की उस परंपरा से आती हैं, जिन्होंने वर्चस्वशाली सत्ता के विरुद्ध आमजन की भाषा में सार्थक चिंतन का मार्ग प्रशस्त किया है। भाषा संवाद का जरिया है, अत: ग्लोबल के विरोध में लोकल प्रतिरोध को मजबूत बनाने के लिए दोनों भाषाओं में रचना करता हूं। यह भी कह सकते हैं कि अलग-अलग ढंग से अलग-अलग लोगों के साथ संवाद बनाता हूं।

किसी कवि ने कहा 'आग में कहां है अब आग' ? क्या प्रतिरोध के स्वर और सर्वहारा के पक्ष में उठने वाले स्वर आजकल ठंडे पड़ते जा रहे हैं? अब सुदामा पाण्डे 'धूमिल', गोरख पांडे या मुक्तिबोध की कमी क्यों होती जा रही है?

प्रतिरोध दमन के प्रतिपक्ष में उठने वाले स्वर हैं और स्वर कभी ठंडे नहीं पडेंगेे। अगर ठंडे पड़ गए तो रीतिकाल जैसा कुछ निर्मित होगा। युवा रचनाशीलता भी आज की चुनौती है। आज का युवा कवि अगर मुक्तिबोध, धूमिल या गोरख पांडे नहीं हो पा रहा है तो यह समय का अंतराल है और फिर क्यों हो जाए? क्या ये कवि निराला, नागार्जुन, शमशेर, त्रिलोचन जैसा ही लिखें तो फिर नया क्या करेंगे? कविता हर दौर में तत्कालीन स्थितियों के साथ उसी भाषा में चिंतन का सर्वश्रेष्ठ रूप देती है और हर कवि अपनी परंपरा से ही सीखता है । अत: युवा कवि को अपने दौर की कविता लिखनी चाहिए।

युवा कवि आजकल अन्तद्र्वंद्व, छटपटाहट, आत्मसंघर्ष और विकल्पहीनता की स्थिति से गुजर रहा है और जनसरोकारों से दूरी हो रही है...

यह अन्तद्र्वंद्व, छटपटहट, आत्मसंघर्ष और विकल्पहीनता तो हमारी व्यवस्था और तंत्र ने निर्मित किए हैं। ये सब कुछ युवाओं की नियति के साथ बांध दिए गए पारिभाषिक शब्द हैं। जनसरोकार और लोकचेतना तो कविता के आवश्यक तत्व हैं। हमारे दौर के युवा कवियों ने कई जनान्दोलन नहीं देखा है। उनके सारे विचार और अवधारणाएं पढ़ने से समझकर निर्मित हुई हैं। हां, कुछ कवि हैं जो छात्र आन्दोलन की पृष्ठभूमि से आए हैं। मैं स्वयं लंबे समय तक छात्र-संगठन से जुड़ा रहा हूं। वामपंथी सांस्कृतिक आन्दोलनों में मेरी सक्रियता रही है। इसी से हमारी एक समझ विकसित हुई है, इसलिए यह प्रश्न बहुत सार्थक नहीं है।

वैश्वीकरण के दौर में वैश्विक कविता भारतीय भाषाओं पर भी प्रभाव डाल रही है। आपकी कविताओं में भी वैश्विक दृष्टि का प्रभाव है?

हर कवि के लिए विश्व दृष्टि रखना आवश्यक है पर कविता का अपना भूगोल भी उतना ही आवश्यक है। मेरी कविता पर विश्व दृष्टि का कितना प्रभाव है, यह बाद में सोचूूंगा। ग्लोबल हस्तक्षेप में अपने को बचाना मेरी प्राथमिकता है। मेरे भूगोल में मेरा गांव है जो विकास की मुख्य धारा से एकदम कटा तो है पर उसमें भी ग्लोबल छल, प्रपंच और छद्म स्थापित हो गया है।

आजकल हिंदी में क्या कुछ नया लिख रहे हैं या योजना बना रहे हैं ?

अपने काव्य संग्रह 'दिन बनने के क्रम में' आने के बाद कुछ कविताएं लिखी हैं। इधर कविताओं पर समझ बनाते हुए लेख और समीक्षाएं भी लिख रहा हूं। आलोचना की एक किताब जल्दी ही प्रकाशित होने वाली है। हां, बहुत दिनों से एक उपन्यास लिखने की योजना है लेकिन कह नहीं सकता कि कब तक यह साकार होगी!


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