प्रणय दिवस पर: रूठना-हंसना बहाना था
तुम्हारे इश्क के दरिया में हमको डूब जाना था।।
By Babita KashyapEdited By: Published: Fri, 17 Feb 2017 11:35 AM (IST)Updated: Fri, 17 Feb 2017 11:39 AM (IST)
मुलाकातें-अदावत, रूठना-हंसना बहाना था।
तुम्हारे इश्क के दरिया में हमको डूब जाना था।।
तड़प में प्यार की लाजिम थी लगनी प्यास जोरों की।
वही आदम-वही हव्वा, वही किस्सा पुराना था।।
वफाएं तोलकर तुमने मुहब्बत में तिजारत की।
बस इतना कहना काफी था कि हमको आजमाना था।।
मेरे कांधे पे रखके सर रोया रात भर दुश्मन।
अभी इक ये जमाना है, कभी इक वो जमाना था।।
(पेशे से पत्रकार-स्वभाव से समीक्षक)
संप्रति दैनिक जागरण, कानपुर में कार्यरत।
-मनीष त्रिपाठी
धरोहर
लहर को हक दो वह कभी संग पुरवा के
कभी संग पछुआ के
इस तट पर भी आए
उस तट पर भी जाए
और किसी रेती पर सिर रखकर सो जाए।
नई लहर के लिए।
-धर्मवीर भारती
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