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बदलाव मेरी जिंदगी है: हरसिमरत कौर

बदलाव को अपनी जिंदगी मानने वाली केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल के पास और भी अनुभव हैं। उन्होंने हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। उनसे स्मिता की खास बातचीत के प्रमुख अंश.. अलग-अलग क्षेत्रों के अनुभवों से लबरेज और उत्साह से भरपूर

By Edited By: Published: Mon, 01 Sep 2014 01:46 PM (IST)Updated: Mon, 01 Sep 2014 01:46 PM (IST)
बदलाव मेरी जिंदगी है: हरसिमरत कौर

बदलाव को अपनी जिंदगी मानने वाली केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल के पास और भी अनुभव हैं। उन्होंने हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है। उनसे स्मिता की खास बातचीत के प्रमुख अंश..

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अलग-अलग क्षेत्रों के अनुभवों से लबरेज और उत्साह से भरपूर हैं केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल। वह दिल्ली में पली-बढ़ीं, लेकिन पंजाब में एक आदर्श बहू बनकर घर और परिवार को भी बखूबी संभाला। कन्या भ्रूण हत्याओं की संख्या में वृद्धि और आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल होने के लिए जब पंजाब में बेतहाशा पेड़ काटे जाने लगे तो वह बेहद विचलित हो गई और उन्होंने एक एनजीओ नन्हीं छांव की स्थापना की। इसके माध्यम से उन्होंने लोगों को जागरूक किया। सामाजिक समस्याओं के निदान के लिए उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया। हालांकि राजनीति उन्हें विरासत में मिली है। उनके दादा और पिता राजनीतिज्ञ रह चुके हैं। उनके ससुर प्रकाश सिंह बादल पंजाब के मुख्यमंत्री हैं और पति सुखवीर सिंह बादल उप मुख्यमंत्री हैं। उनके भाई विक्रमजीत सिंह मजीठिया भी पंजाब सरकार में मंत्री हैं। 2009 में पहली बार वह भटिंडा लोकसभा सीट से निर्वाचित हुई। 2014 में भी भटिंडा लोकसभा क्षेत्र से ही वह भारी मतों से निर्वाचित हुई। हरसिमरत ने टेक्सटाइल डिजाइनिंग में डिप्लोमा हासिल किया है। ड्रेस डिजाइनिंग के साथ-साथ वह जूइॅल्रि, इंटीरियर डिजाइनिंग में भी दखल रखती हैं।

केंद्रीय मंत्री के रूप में काम करने का अनुभव कैसा है?

अब तक का अनुभव बढि़या है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय को तरक्की की राह पर ले जाने के लिए मैंने कई तरह की योजनाएं बनाई हैं, जिन्हें लोगों की भलाई के लिए हकीकत में लाने की कोशिश कर रही हूं।

अपने मातहत काम करने वालों को निर्देश देना कैसा लगता है?

मैं अपने मातहत काम करने वालों को अपनी टीम का हिस्सा समझती हूं। टीम के बिना इंसान आगे नहीं बढ़ सकता है। टीम में हर एक मेंबर अगर सही इरादों के साथ काम करे तो बड़ा फर्क पड़ सकता है। सबको साथ लेकर आप वह परिणाम प्राप्त कर सकते हैं, जो आपने सोचा हुआ है।

आप एक राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखती हैं। यह कितना सहायक रहा?

मायके की तरफ से मेरी कई पीढि़यां राजनीति में हैं, लेकिन पिताजी ने हम लोगों को पॉलिटिक्स में आने से रोका। वह मानते थे कि पॉलिटिक्स में आने के बाद परिवार के लिए समय निकालना मुश्किल होता है। जहां तक ससुराल की बात है तो मुझसे पहले किसी महिला ने चुनाव नहीं लड़ा था। वे सिर्फ अपने पतियों का सहयोग करती आई थीं। कुदरत ने मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया। इसके कुछ फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी हैं। राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखने के कारण लोगों की आपसे अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। आपके वोटर्स आपको सिर्फ एमपी नहीं, बल्कि सरपंच, मुखिया सब कुछ समझते हैं।

परिवार और काम को किस तरह बैलेंस करती हैं?

राजनीति में आने के बाद परिवार बिल्कुल नेगलेक्ट हो जाता है। जब से मैं पॉलिटिकली एक्टिव हुई हूं, इसके दुष्परिणाम निश्चित तौर पर मेरे बच्चों ने भुगते हैं। पहले मेरे पति और ससुर राजनीति में थे। मैं ही एक कॉस्टैंट फिगर थी, जो परिवार और बच्चों को संभालती थी। पहली बार लोकसभा का चुनाव जीता तो लगा कि लोगों ने मुझ पर भरोसा किया है तो मुझे भी उनके विश्वास पर खरा उतरना होगा। इसके लिए मुझे परिवार और बच्चों की प्राथमिकताओं को पीछे रखना पड़ा। एक मां के लिए यह फैसला लेना जितना मुश्किल था, उससे कई गुना मुश्किल बच्चों के लिए था। चाहे पैरेंट टीचर मीटिंग हो या हॉलिडे होमवर्क या फिर डॉक्टर की अप्वॉइंटमेंट, ऐसे में घर में न पिता हैं और न मां। छोटे बच्चों के लिए ये बहुत मुश्किल हालात होते हैं। मैंने सोचा था कि पांच साल बाद यह काम छोड़ दूंगी, लेकिन कुदरत ने मेरे लिए उससे भी बड़ी जिम्मेदारी तय करके रखी थी। भगवान की कृपा है कि बच्चे समझदार हैं। माहौल ने उन्हें बहुत जल्दी परिपक्व बना दिया।

परिवार से कितना सहयोग मिलता है?

पूरा सहयोग। बच्चों ने भी सपोर्ट किया। बड़ी बेटी ने छोटी बेटी को संभाला। वह उसका होमवर्क करा देती थी। छोटी बेटी बेटे का होमवर्क कराती थी। सब मिलजुलकर एक-दूसरे की देखभाल कर लेते थे। यह देखकर मुझे बहुत सुकून मिलता था।

इंटरनेट पर आपके बारे में बहुत कम जानकारियां उपलब्ध हैं। क्या आप अपने बारे में लोगों को अधिक बताना नहीं चाहतीं?

मैं एक घरेलू महिला हूं। बस मेरी लाइफ में औरों के मुकाबले कई गुना अधिक रेस्ट्रिक्शंस हैं। यही फर्क है। मैं काम करने में विश्वास रखती हूं, बताने में नहीं।

अपने बारे में बताएं। शिक्षा-दीक्षा कहां और किस तरह हुई?

मेरी पढ़ाई-लिखाई दिल्ली में हुई। जन्म भी यहीं हुआ है। मैंने साउथ दिल्ली पॉलिटेक्निक से टेक्सटाइल डिजाइनिंग में तीन साल का कोर्स किया। इसके बाद मैंने एक बाइंग एजेंसी में काम किया। मुझे यहां जो एक्सपीरिएंस मिला, उसकी सहायता से मैंने पिता के बिजनेस को हैंडल किया। पति के काम में हाथ बंटाया। पॉलिटिक्स में भी यह तजुर्बा काम आया।

क्या आम महिलाओं को भी राजनीति में आना चाहिए? वे किस तरह इस क्षेत्र में आ सकती हैं?

महिलाओं की समस्याएं मेरे दिल के सबसे नजदीक हैं। एक महिला होने के नाते जब मैं गांवों में जाती हूं तो वहां की महिलाओं को आगे बुलाकर पूछती हूं कि तुम्हारी समस्या क्या है? पीने का पानी, शौचालय, गंदे पानी का निकास, ये सारी समस्याएं उन्हें सबसे अधिक प्रभावित करती हैं। एक औरत ही औरत की बात को समझ सकती है। इसलिए औरतों का पॉलिटिक्स में आना बेहद जरूरी है। दूसरी बात कि पॉलिटिकल पार्टियां भी अच्छे वर्कर की तलाश में रहती हैं, ताकि उन्हें जिम्मेदारी देकर आगे बढ़ाया जा सके। पहले आप एक बढि़या वर्कर बनें। स्वाभाविक है कि आपसे प्रभावित होकर कोई न कोई पार्टी आपको अपने साथ टैग करेगी। यह सच है कि अगर आप पॉलिटिकल फैमिली से हैं तो टिकट आसानी से मिल जाता है। समय जरूर लगता है, लेकिन बढि़या वर्कर बनकर आगे बढ़ा जा सकता है।

पुरुषों के बीच महिलाओं को अपनी जगह बनाना मुश्किल है या आसान?

बहुत मुश्किल है। जब मैं अपनी महिला वर्करों से पूछती हूं कि आपने इतनी मेहनत की, लेकिन परिणाम आपके पक्ष में क्यों नहीं आया? वे सीधा जवाब देती हैं कि आदमी कभी भी औरतों को आगे बढ़ते हुए नहीं देख सकते। वे उनकी राह में अड़ंगा लगाते हैं। हालांकि महिलाओं को मायूस नहीं होना चाहिए, क्योंकि हम हिंदुस्तानी महिलाएं संघर्षो से मुकाबला कर आगे बढ़ना बखूबी जानती हैं। राजनीति में आरक्षण से उन्हें फायदा मिलेगा। मेरा मानना है कि राजनीति में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण जरूरी है।

आप कई तरह के काम कर चुकी हैं। व्यक्तिगत संतुष्टि किस काम से मिली?

अपने एनजीओ के लिए काम करने से संतुष्टि मिलती है। यह लोगों के माइंडसेट को बदलने में कारगर साबित हुई। गांव-गांव जाकर मुझे काम करना पड़ा। औरतों के खिलाफ अपराध रोकने के लिए पहल करनी पड़ी। इससे लोग जागरूक हुए। इसका परिणाम यह हुआ कि कन्या भ्रूण हत्या में अब पंजाब में कम हुई है। राजनीति की वजह से मैं बड़ी संख्या में लोगों का भला कर पाई। मैं काफी सारी चैरिटीज को भी सपोर्ट करती हूं।

आपकी रुचि के काम कौन से हैं? इनके लिए वक्त निकाल पाती हैं?

अब रुचि के सारे काम मैंने छोड़ दिए। कभी-कभार बच्चों के साथ वीकएंड पर खाने के लिए बाहर चली जाती हूं। मूवीज देख लेती हूं। यह फैमिली आउटिंग के समान है। शॉर्ट हॉलिडेज लेने का पति को बहुत शौक है, क्योंकि हमारे पास परिवार के साथ समय बिताने का एकमात्र यही जरिया है। वह हिंदी सिनेमा के शौकीन हैं। मुझे अंग्रेजी मूवी पसंद हैं, लेकिन अर्सा बीत गया इंग्लिश मूवी देखे हुए।

क्या फर्क है आपकी दिल्ली और पंजाब की जीवनशैली में?

बहुत फर्क है। दिल्ली में मैं जींस पहनती थी, पंजाब में सिर कवर करना पड़ता है। यहां मैं अपनी मर्जी से सारा काम करती थी, गाड़ी चलाती थी। वहां जो बोलना है, उससे पहले दस बार सोचो। मुझे अलग-अलग तरह के कपड़े पहनने का बहुत शौक है, लेकिन शादी के बाद पंजाब में सूट ही पहना। अपनी मर्जी का कोई काम नहीं किया। बच्चे कहते हैं कि सिर ढककर हमारे स्कूल नहीं आना, फ्रेंड्स हमारा मजाक उड़ाएंगे। पॉलिटिक्स में आई तो एक बुजुर्ग ने कहा कि बड़ों के प्रति सम्मान के खातिर सिर ढकते हैं। अब आप पूरे पंजाब की बहू हैं। मैंने उनकी बात गांठ बांध ली। मैंने फैसला लिया कि सिर ढककर ही रहना है।

एक वाक्य में खुद की किस तरह व्याख्या करना चाहेंगी?

बदलाव मेरी जिंदगी है। मेरी लाइफ हर कुछ साल में बदलती रहती है। मेरे पति पॉलिटिक्स में नहीं आना चाहते थे, लेकिन शादी के दो साल बाद पॉलिटिक्स में आ गए। उनके दस साल बाद मैं भी आ गई। हालांकि भगवान की मर्जी से ही हर बदलाव होते हैं। रोज मैं एक निश्चित वक्त पूजा-पाठ को देती हूं।

अगर बच्चे राजनीति में आना चाहें तो?

बच्चे राजनीति में नहीं आना चाहते। बड़ी बेटी राजनीतिशास्त्र पढ़ रही है, लेकिन वह राजनीति में नहीं आना चाहती है। बस अध्ययन का फायदा आम लोगों को दिलाना चाहती है।


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