जीवन की बड़ी भूल
अधिकारी बनने का सपना देखने वाली युवती को जब नहीं मिला नौकरी का मौका तो उसे हुआ अहसास कि अवसर नहीं करता किसी का इंतजार...
मेरा जन्म बिहार के बहुत ही पिछड़े क्षेत्र के एक छोटे से गांव में हुआ था। गांव का माहौल तो ठीक नहीं था, बिजली और पानी जैसी समस्याएं भी थीं। हमारे साथ अच्छा यह था कि पापा सरकारी ऑफिस में अधिकारी थे। बिजली न होने के चलते हम बच्चे लालटेन के सहारे पढ़ाई करते थे। मैं पढ़ाई में बहुत अच्छी थी और हमेशा सोचा करती थी कि पढ़-लिखकर पापा की तरह ही अधिकारी बनूंगी।
मैंने हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद तो मेरा दिमाग सातवें आसमान में चढ़ गया। जब भी कोई सामान्य नौकरी की बात करता तो मैं मुंह बिदकाकर कहती कि इस तरह की नौकरी एकदम बेकार होती है। नौकरी करनी है तो ऑफिसर बनकर करो।
वक्त बीतता गया। मैंने स्नातक और परास्नातक की पढ़ाई भी अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण की। मेरे रिलेशन में कई लोग ऐसे थे, जो टीचर थे। उन लोगों ने स्नातक पूरा करने के बाद ही टीचिंग ज्वॉइन कर ली थी। घर में पापा-मम्मी भी हमसे कहते कि अब पढ़ाई पूरी हो गई है। शिक्षिका बन जाओगी तो पैसे के साथ सम्मान भी मिलेगा। लड़कियों के लिए टीचिंग से अच्छी जॉब और कोई नहीं होती है लेकिन टीचर के बारे में तो मैंने धारणा बना रखी थी कि जो लोग थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं या जिनको अपनी काबिलियत पर भरोसा नहीं होता है, वे ही टीचर की नौकरी करते हैं।
मैं तरह-तरह के बहाने बनाकर पापा की बात को टाल जाती थी। उच्च पदों की नौकरी के लिए साल में एक-दो एग्जाम देने के मौके मिलते थे और पदों की संख्या भी कम होती थी। मेरे साथ की कई सहेलियों ने पढ़ाई पूरी करने के बाद प्रयास किया और टीचर बन भी गईं लेकिन अतिआत्मविश्वास के चलते मैं उन लोगों को नजरअंदाज करती रही। अभी मैं ऑफिसर बनने का सपना देख ही रही थी कि मेरी शादी कर दी गई। भरी-पूरी संपन्न ससुराल थी
लेकिन अभाव था तो शिक्षा के महत्व को समझने का। ससुराल में कोई नहीं चाहता था कि मैं पढ़ाई करूं या नौकरी की तैयारी करूं क्योंकि ससुराल वालों का मानना था कि जब घर में सारी भौतिक सुविधाएं हैं तो मुझे नौकरी करने की क्या जरूरत।
समय के साथ मैं भी ससुराल के माहौल में ढल गई और मेरी सारी पढ़ाई और महात्वाकांक्षाओं ने दम तोड़ दिया। आज मेरी पहचान एक गृहणी के रूप में है। अब जब मेरी कहानी या कविता किसी अखबार में छपती है तो नाम के साथ किसी अधिकारी का पद नहीं, गृहणी की चिप्पी लगी होती है। इस कहानी के माध्यम से मैं कहना चाहती हूं कि इंसान को अतिआत्मविश्वास में आकर अवसर को गंवाना नहीं चाहिए क्योंकि वक्त और अवसर किसी
का इंतजार नहीं करते। शायद मैंने टीचिंग ज्वॉइन की होती तो उच्चशिक्षित होने के कारण प्रधानाचार्या तो बन ही गई होती। मैं इस कहानी के माध्यम से कहना चाहती हूं कि अगर अवसर मिले तो उसका लाभ जरूर उठाएं, क्योंकि यह किसी को पता नहीं कि कल आप किन परिस्थितियों से तालमेल बिठा रही होंगी। मैंने जीवन की जो सबसे बड़ी भूल की थी, उसका पछतावा मुझे आज भी है।
तनवीर फातिमा, पूर्वी चम्पारण (बिहार)