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बस हो गई पढ़ाई

बात इंटर के छमाही इम्तिहानों की है। मेरी प्रिय शिक्षिका मिसेज द्विवेदी ने उत्तरपुस्तिका लगभग मेरी ओर फेंकते हुए कहा, 'बस हो गई तुम्हारी पढ़ाई। छोड़ दो, यह तुम्हारे वश की नहीं है।' बात बड़ी कड़वी थी जो भीतर तक जा धंसी। पढ़ाई तो क्या, पूरे परिवार की दुर्दशा थी। प्

By Edited By: Published: Mon, 09 Jun 2014 11:51 AM (IST)Updated: Mon, 09 Jun 2014 11:51 AM (IST)

बात इंटर के छमाही इम्तिहानों की है। मेरी प्रिय शिक्षिका मिसेज द्विवेदी ने उत्तरपुस्तिका लगभग मेरी ओर फेंकते हुए कहा, 'बस हो गई तुम्हारी पढ़ाई। छोड़ दो, यह तुम्हारे वश की नहीं है।'

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बात बड़ी कड़वी थी जो भीतर तक जा धंसी। पढ़ाई तो क्या, पूरे परिवार की दुर्दशा थी। पति का व्यवसाय अचानक खत्म हुआ तो ससुर जी को हार्टअटैक पड़ गया। सास ने चारपाई पकड़ ली। गांव का वातावरण ऐसा न था कि सास काम करे और बहू बैठे कागज काला करे। क्या सटीक निकला था मिसेज द्विवेदी के मुख से। कुल मिला कर पढ़ाई छूट ही गई।

पढ़ाई छूटने की टीस बहुत गहरी थी। व्याकुल चित्त एक सुबह ऐसा शिथिल हुआ कि हाथ से रस्सी फिसल गई और बाल्टी सहित कुएं में जा गिरी। डांट पड़ी अवश्य, पर लाभ भी इसी से मिला। इसे मेरा तनाव समझा गया और पढ़ाई की अनुमति मिली। प्राइवेट पढ़ाई करते हुए इंटर से एमए तक का मुश्किल सफर पूरा हुआ। ध्येय वाक्य वही बना, 'बस हो गई पढ़ाई'। बीएड में प्रवेश हेतु गांव जो छूटा तो हमेशा के लिए छूट गया। पूरे छ: सालों बाद कहीं जाकर मेरिट में नाम आया। अति समर्पित पति का हाथ कंधे पर पड़ता तो दोहरी हो जाती ऊर्जा। पीएचडी टॉपिक के अप्रूव होने और शहर के प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूल में नियुक्ति से वह तिहरी-चौहरी हो उठी।

एक दिन वह भी आया जब एक डिग्री कॉलेज में मेरा साक्षात्कार पड़ा। मेरे आश्चर्य और हर्ष का तब ठिकाना न रहा जब मैंने एक्सपर्ट के रूम में उन्हीं मिसेज द्विवेदी को अन्य तीन लोगों के साथ सामने बैठे पाया। मेरी चेतना में तो हर उतार-चढ़ाव में वे ही बसी थीं पर मुझे पहचानने में उनको कुछ वक्त लगा। बीस वर्ष के अंतराल में मेरी इकहरी काया दोहरी जो हो गई थी। साक्षात्कार के पश्चात, 'अच्छा फलां स्कूल में विभाग प्रमुख हो। बिना ब्रेक पढ़ाई पूरी कर ली' जैसे वाक्य उनके मुख से अमृत बरसाते प्रतीत हो रहे थे। वे शुद्ध स्नेह से अभिषिक्त थे। खुशी व संतुष्टि के सैलाब को आंखों से मैंने बहने दिया और बमुश्किल इतना, 'सब आपके आशीर्वाद ..' कह सकी। घटना याद आते ही उनका संकोच से भर उठना कितना मीठा, कितना अपूर्व था। परंतु इस लंबी यात्रा में वही वाक्य तो प्रकाशस्तंभ बनकर हर प्रकार के अंधेरे को चीरता रहा था!

डॉ. आशा शर्मा, कानपुर (उत्तर प्रदेश)


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