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अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएं

बहुत से लोग होते हैं जो जीवन तो जीते हैं, पर उससे दुनिया में क्या फर्क पड़ रहा है। यह नहीं समझते हैं। कम ही लोग होते हैं, जो सार्थक जीवन जीते हैं। यह बहुत ही अफसोस की बात है कि न तो हम अपनी जिंदगी की कीमत आंकते हैं और न ही दूसरों की। हालांकि कुछ लोगों के जिंदगी का मकसद ही होत्

By Edited By: Published: Sat, 07 Jun 2014 04:55 PM (IST)Updated: Sat, 07 Jun 2014 04:55 PM (IST)

बहुत से लोग होते हैं जो जीवन तो जीते हैं, पर उससे दुनिया में क्या फर्क पड़ रहा है। यह नहीं समझते हैं। कम ही लोग होते हैं, जो सार्थक जीवन जीते हैं। यह बहुत ही अफसोस की बात है कि न तो हम अपनी जिंदगी की कीमत आंकते हैं और न ही दूसरों की। हालांकि कुछ लोगों के जिंदगी का मकसद ही होता है दूसरों की भलाई के लिए काम करना। ऐसी ही शख्सियत हैं डॉ. रंजना कुमारी। वह तीस साल से महिलाओं के लिए काम कर रही हैं। वह महिलाओं की समस्याओं को बडे़ ही शिद्दत के साथ सुनती हैं और उसे सुलझाने की भरपूर कोशिश करती हैं। वह चाहती हैं कि राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बराबर की हो। प्रस्तुत हैं उनसे बातचीत के प्रमुख अंश

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अपने बारे में बताएं?

मैं बनारस की रहने वाली हूं। मेरा जन्म स्वतंत्रता सेनानी परिवार में हुआ था। हमारा पूरा परिवार राजनीति में काफी सक्रिय रहा है। यही वजह है कि घर में राजनीतिक माहौल था और इसका प्रभाव मुझ पर भी पड़ा। मानसिक रूप से मैं भी राजनीतिक सोच की हूं। मेरी पढ़ाई-लिखाई बीएचयू और जेएनयू से हुई है। कुछ दिनों तक मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी है। मैंने यूनाइटेड नेशन में जेंडर एक्सपर्ट के रूप में काम भी किया है। साथ ही नौ किताबें भी लिखी हैं। हम तीन बहनें और तीन भाई हैं।

इस फील्ड में कैसे आई?

इमर्जेंसी का समय था। पूरे देश में आंदोलन चल रहा था। उस समय मैं जेएनयू की छात्रा थी और काफी सक्रिय थी। उसी दौरान दहेज के कारण एक हत्या हुई थी, जिसमें मुझे भी बुलाया गया था। वहां मुझे इस तरह के अनुभव हुए कि मैंने राजनीति में जाने की अपेक्षा महिलाओं के हक के लिए राजनीति करना अच्छा समझा।

महिला सशक्तीकरण के बारे में खूब चर्चाएं होती हैं। क्या आप मानती हैं कि आज भी महिलाओं की स्थिति वैसी ही है?

जब तक महिलाओं को संतति, संपति और सत्ता में बराबरी का दर्जा नहीं मिलेगा तब तक समाज और देश का विकास संभव नहीं है।

आप सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की डायरेक्टर हैं। महिलाओं के उत्थान के लिए क्या कर रही हैं?

यदि किसी महिला और गरीब पर अन्याय होता है तो हम लोग उसके लिए लड़ते हैं और उनको हक दिलाने के लिए पूरी कोशिश करते हैं। हम लोग महिलाओं के अधिकार, सुरक्षा और संरक्षण के लिए भी काम करते हैं।

क्या आप महिला आरक्षण के पक्ष में हैं? अगर हां तो क्यों?

राजनीति में महिलाओं की बराबर की हिस्सेदारी को मैं अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मुददा मानती हूं।

आप बहुत तरह का काम करती हैं। इसके लिए इतनी ऊर्जा कहां से लाती हैं?

मैं जिस संघर्ष से जूझ रही हूं, वह रास्ता इतना आसान नहीं है। यह मानवीय संवेदनाओं की बात है। मैं महिलाओं के साथ जुड़कर काम करना चाहती हूं। उनको नया जीवन देने के लिए मैं सदा प्रयत्नशील रहती हूं। जब भी मैं महिलाओं का मुस्कुराता हुआ चेहरा देखती हूं तो ऊर्जा से लबालब हो जाती हूं और मुझे अपार आनंद की अनुभूति होती है।

क्या आप मानती हैं कि सोशल मीडिया बहुत ताकतवर है?

हां, यह युवाओं को आपस में जोड़ने का एक रास्ता है। यही नहीं सोशल मीडिया के द्वारा महिलाओं की रचनात्मकता भी दिखलाई देती है।

आप अपने काम को लेकर संतुष्ट हैं?

हां, मैं अपने काम से बहुत ही संतुष्ट हूं। मेरी हार्दिक इच्छा है कि महिला आरक्षण विधेयक पास हो जाए।

अगर आपको जिंदगी में प्यार, परिवार और कॅरियर में से किसी एक को चुनना पड़े तो?

मैं सतत प्रेमी हूं। इसलिए अपनी जिंदगी से प्यार करना चाहिए और वही काम औरत अपने लिए नहीं कर पाती है।

जिंदगी में सबसे महत्वपूर्ण चीज क्या है?

माता-पिता का प्यार और प्रेरणा, जिसको ये चीजें मिल जाती हैं, वह अपने जीवन में बहुत आगे बढ़ता है। वैसे तो हमारा एक ही मिशन है कि महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिले।

आपके लिए त्योहार के क्या मायने हैं?

त्योहार आपसी मेल-जोल और उत्साह के प्रतीक माने जाते हैं। ये लोगों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं।

एक पुरानी कहावत है कि लोग जैसा चाहते हैं उन्हें वैसी ही सरकार मिलती है। क्या आप इससे सहमत हैं?

मैं राजनीति विज्ञान की एक्सपर्ट हूं। इसलिए मुझे मालूम है कि लोकतंत्र में लोग जो भी फैसले लेते हैं, उसे वही झेलते हैं। इस चुनाव में सबसे अच्छी बात यह देखने को मिली कि महिलाओं ने बढ़-चढ़कर वोट दिया, क्योंकि असुरक्षा और महंगाई की मार सबसे अधिक महिलाओं ने ही झेला है।

आपका ड्रीम डेस्टीटनेशन क्या है? मुझे हमेशा समुंदर आकर्षित करता है, क्योंकि एक ओर उसमें जहां इतनी खलबली है तो वहीं दूसरी ओर शांति भी है। उसी तरह समाज में भी चारों तरफ अशांति है। समाज में अमन चैन कायम करने के लिए सभी को मिलकर काम करना होगा।

किसे आप बेहद प्यार करती हैं?

अपनी मां से, लेकिन अब वह इस दुनिया में नहीं हैं।

आपका पसंदीदा स्ट्रीट फूड क्या है?

मुझे साउथ इंडियन खाना बहुत पसंद है। मैं शाकाहारी हूं। जब बीएचयू में पढ़ती थी तो डोसा खाने के लिए हम लोग कॉलेज से भागकर जाते थे।

खाने में क्या पसंद करती हैं?

मुझे मीठा बेहद पसंद है।

आपके मुताबिक आपकी सबसे बड़ी मजबूती क्या है?

शुरू से ही मैं एक अच्छी विद्यार्थी रही हूं। फिर भी अपने आपको आम व्यक्ति की समस्याओं से जोड़कर देखती हूं। मैं एकेडमिक होते हुए भी एक्टीविस्ट कहलाना पसंद करती हूं। इसके अलावा बहुत ही निडर हूं और कभी भी भाव-विभोर होकर डगमगती नहीं हूं।

जिंदगी बीत जाने का नाम है या समझौतों का?

जिंदगी संघर्ष का नाम है। जिंदगी ऐसे ही नहीं बिता देनी चाहिए। अगर धरती पर आए हैं तो कुछ न कुछ देकर ही जाना चाहिए। औरत और मर्द की बराबर की जिंदगी बहुत ही खूबसूरत है, पर भारतीय मर्दो को उसका अनुभव ही नहीं है।

अब दिल्ली को कितना बदला हुआ पाती हैं?

1972 में जब पहली बार दिल्ली आई थी तो उस समय दिल्ली में न तो इतनी हरियाली थी और न ही इतनी गरीबी। चारों तरफ खुला-खुला था।

आपके घर में बॉस कौन है?

हमारे घर की बॉस हमारी बिटिया है। बेटी को हम बहुत प्यार करते हैं। वह जो कहती है उसको हम लोग मान लेते हैं।

प्रेस की आजादी होते हुए भी क्या आपने कभी इसमें कोई कमी पाई है?

दुर्भाग्य की बात है कि इन दिनों प्रेस की आजादी खंडित है, क्योंकि पैसे का दबाव है। आजकल कॉरपोरेट प्रेस का एजेंडा सेट कर रहा है, जबकि प्रेस को ही पूरे देश का एजेंडा सेट करना चाहिए।

खुद को फिट कैसे रखती हैं?

मैं पैदल बहुत चलती हूं। योगा भी करती हूं। इसके साथ ही अपने खाने-पीने पर भी ध्यान रखती हूं। मैं चाहती हूं कि सभी औरतें अपने खाने-पीने का ध्यान रखें, क्योंकि औरतें अपने खाने पर बिल्कुल ध्यान नहीं देती हैं।

महिलाओं के लिए कोई संदेश?

यदि आपकी अस्मिता पर हमला हो रहा है और आपका कोई सम्मान नहीं कर रहा है तो उसको कभी भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए। उसके खिलाफ आवाज उठाइए। महात्मा गांधी ने भी कहा था कि अन्याय का प्रतिकार करना चाहिए।


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