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दिखानी होगी अपनी काबिलियत

पुरूष राजनीतिज्ञों के बीच अपने कार्यो के बल पर उन्होंने अपने लिए ठोस जगह बनाई है। किसी को मदद पहुंचाकर चाहे वह इंसान हो या पशु, उन्हें बेहद सुकून मिलता है। यह हैं केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी, जिनका मूल मंत्र है निरंतर कर्म करते रहना। व

By Edited By: Published: Mon, 04 Aug 2014 04:56 PM (IST)Updated: Mon, 04 Aug 2014 04:56 PM (IST)

पुरूष राजनीतिज्ञों के बीच अपने कार्यो के बल पर उन्होंने अपने लिए ठोस जगह बनाई है। किसी को मदद पहुंचाकर चाहे वह इंसान हो या पशु, उन्हें बेहद सुकून मिलता है। यह हैं केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी, जिनका मूल मंत्र है निरंतर कर्म करते रहना। वह मानती हैं कि घर-परिवार का अपना एक स्थान जरूर है, लेकिन कर्तव्यों का पालन सबसे ऊपर है। बातचीत में ज्यादातर समय उन्होंने देश की महिलाओं और बच्चों के हितों संबंधी मुद्दों पर ही अपनी राय रखी। वह चार सरकारों में अलग-अलग मंत्रालय संभाल चुकी हैं। हर बार उन्होंने अपने कार्यकाल में कई अलग-अलग जनोपयोगी कानून बनाए और योजनाएं शुरू कीं। जानी-मानी पर्यावरणविद् मेनका गांधी भारत की पहली शख्सियत हैं, जिन्होंने पशु अधिकारों के प्रश्नों को मुख्यधारा में लाया। वह लॉ, एनिमल वेलफेयर आदि विषयों पर कई किताबें लिख चुकी हैं।

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आपके तेवरों से लगता है कि इस बार भी आप कई स्कीमें शुरू करेंगी और नए कानून लाएंगी?

यह सच है कि मुझे जब भी किसी मंत्रालय में काम करने का अवसर मिलता है तो मैं कई योजनाओं की शुरुआत करती हूं। मुझे अच्छी तरह याद है कि जब मैं निर्दलीय थी तो अटल जी ने मुझसे पूछा था कि आपको कौन सा महकमा चाहिए तो मैंने सोशल जस्टिस मांगा। उन दिनों मैं विकलांगों के लिए काम करना चाहती थी। देश में ऐसे लोगों के लिए अस्पताल खोलने की शुरुआत मैंने ही की थी। कानपुर में उनके लिए जो कैंप है, उसे मैंने ही शुरू किया था। कश्मीर के लोग आज भी मुझे याद करते हैं, क्योंकि वहां विकलांगों के लिए जो अस्पताल है, उसे मैंने डिजाइन किया और बनवाया था। महिला एवं बाल विकास मंत्री के रूप में सबसे पहले जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में संसोधन लाऊंगी, क्योंकि सोलह साल के बच्चे भी इन दिनों अक्षम्य अपराधों में संलिप्त हैं।

स्कूलों में लड़कियां बड़ी संख्या में पहुंचें, क्या इसके लिए कोई प्रयास कर रही हैं?

मैं चंडीगढ़ में एक एनजीओ के लिए पॉयलट प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी। मैंने देखा कि महीने के पांच दिनों में किसी एक लड़की की उपस्थिति बहुत घट जाती है। मैंने लड़कियों को सेनेटरी टॉवेल देने की शुरुआत कराई। मैंने देखा कि लड़कियों की उपस्थिति की संख्या एकाएक बढ़ गई है। इस तरह की योजना पूरे देश में लागू कराऊंगी।

क्या महिला आयोग को और अधिक ताकतवर बनाना चाहती हैं?

मैं महिला आयोग को री-स्ट्रक्चर करना चाह रही हूं। ताकत न होने की वजह से यह आयोग अपराधियों पर लगाम लगाने में नाकामयाब है। महिला आयोग के ताकतवर होने से यौन उत्पीड़न के केसेज में कमी आएगी। आंगनबाड़ी को वर्किग महिलाओं और गर्भवती स्त्रियों के माकूल बनाने की योजना पर भी काम कर रही हूं।

अगर आम महिला राजनीति में आना चाहे तो वह क्या करे?

सबसे पहले उसे अपने-आपको शिक्षित करना होगा। फिर वह सामाजिक काम करना शुरू करे। बहुत सी ऐसी महिलाएं इन दिनों राजनीति में आई हैं, जिनके पिता या पति राजनीति में हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। जो महिलाएं अपने बूते राजनीति में आती हैं, वे बढि़या काम करती हैं। सामाजिक काम, कानूनी कामकाज या फिर जिस क्षेत्र में वे काम कर रही हैं, उनमें वे ताकतवर बनकर उभरें। राजनीति में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण अगर सही ढंग से लागू किया जाए तो यह बहुत कारगर होगा।

राजनीति में पुरुषों के बीच जगह बनाना कितना कठिन है?

पुरुषों के बीच जगह बनाना कठिन है। यह सिर्फ राजनीति ही नहीं, हर क्षेत्र में है। अगर मुझे कोई दीवार तोड़नी है तो इसका उपाय मुझे खुद ढूंढ़ना होगा। पढ़ाई हो या कोई भी दूसरी चीज, महिलाएं जो भी क्षेत्र चुनें, वे इसमें इतनी माहिर बन जाएं कि दुनिया उनके पास आकर उनकी काबिलियत के बारे में जाने। औरतों की राह में सबसे बड़ी बाधा है बिजली और पानी की समस्या। गांव में जब औरतें सारा काम निपटाकर शाम को बैठती हैं तो बिजली न होने पर वे क्या करेंगी? अगर बिजली होगी तो दो-चार औरतें साथ बैठेंगी। किसी समस्या पर आपस में राय-मशविरा करेंगी। इससे आगे बढ़कर वह संगठन भी बना सकेंगी। इसी तरह अगर पानी की समस्या होगी तो दिनभर वे पूरे घर के लिए पानी ही जुटाती रहेंगी। अगर बिजली-पानी की समस्या हल कर दी जाए तो वे रानी बनकर राज कर सकती हैं।

व्यस्त क्षणों में पशु-पक्षियों के लिए समय कैसे निकाल पाती हैं?

मैं समय निकाल लेती हूं। हाल ही में एक हिरण को सही-सलामत करने में लगी हुई थी, जिसकी टांग टूट गई थी। पशुओं के प्रति मेरा प्रेम हमेशा रहेगा। पशुओं के अलावा, मैं जरूरतमंद इंसानों के लिए भी काम कर रही हूं। पिछले पंद्रह सालों से मैं पांच अनाथ आश्रम बनारस और भदोही में चला रही हूं। मेरी एक संस्था 'रग्मा' है, जिसकी मैं चेयरपर्सन हूं। हमलोगों ने 16 हजार से अधिक बच्चों को अपहरणकर्ताओं और बाल मजदूरी से बचाकर आश्रय दिलाया। हमारी संस्था बिना किसी सरकारी मदद या अनुदान के चल रही है। भदोही में कालीन उद्योग में लगे बाल मजदूरों को रिहा कराया और उनका स्कूलों में दाखिला कराया। अगर बच्चों या पशुओं के साथ किसी प्रकार की ज्यादती होती है तो मेरा हृदय कांप उठता है। मैं उन्हें न्याय दिलाने के लिए प्रयत्नशील हो जाती हूं।

क्या किसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए आप राजनीति में हैं?

मैं राजनीति में हूं, क्योंकि मुझे कोई भी सामाजिक कार्य करने में अधिक ताकत मिलती है। अगर आप बिना किसी लक्ष्य के राजनीति में आए हैं तो बेकार है। ऐसे लोगों से मेरा सिर्फ एक सवाल है कि क्या आप सिर्फ मंत्रियों के लिए अलॉट होने वाले बंगले में रहने आए हैं? यदि आप किसी एक लक्ष्य को पूरा करने के ख्वाब के साथ यहां आए हैं तो वह एक आग बन जाती है। अगर अपना हर मिनट लोगों का काम करने में इस्तेमाल करते हैं तो आपकी जिंदगी बहुत खुशी-खुशी बीतेगी, यह मेरा दावा है।

आपके सभी लक्ष्य पूरे हो गए?

कितना अच्छा हो कि मेरे सभी लक्ष्य पूरे हो जाएं। जैसे जानवरों को बचाना, बच्चों को खुशहाल जिंदगी देना। इन सब कामों से मुझे बेहद खुशी मिलती है। मैं चाहती हूं कि जब मैं यह दुनिया छोड़ कर जाऊं तो जैसा मैंने पाया, उससे बेहतर स्थिति में हो।

सबसे ज्यादा सुकून कब मिलता है?

जब कोई थैंक यू कहता है या कोई पशु-पक्षी प्यार से देखता है। इसका मतलब यह है कि सामने वाला आपसे कह रहा है आपने मेरी मदद की या आपने मुझे बचाया, इसके लिए आपका शुक्रिया। अगर आपके प्रयासों से कोई बच्चा अपने मां-बाप से मिल जाए तो आपको कितना अच्छा लगेगा। मैं इस कहानी से बहुत प्रभावित हूं। एक आदमी समुद्र के किनारे जा रहा था। वह बार-बार जमीन पर पड़े केकड़ों को उठाकर पानी में डाल रहा था। ऐसा करते देख दूसरे आदमी ने पूछा कि हजारों केकड़े पड़े हैं, सभी को पानी में डालना असंभव है। उसने कहा कि मैं बहुतों की तो मदद नहीं कर पाऊंगा, लेकिन ऐसा करने से यदि एक पर भी फर्क पड़ता है तो इससे मुझे बहुत सुकून मिलेगा। अगर किसी का बच्चा अपहृत हुआ है तो उसे खोजने में मदद करना, किसी की जमीन किसी और ने छीनी है तो उसे न्याय दिलाना। इन सभी कामों में मुझे सुकून मिलता है।

घरेलू हिंसा को किस तरह रोकेंगी?

इसके लिए महिलाओं को खुद साहसी बनना होगा। उन्हें खुद भी कड़ा निर्णय लेना होगा। मैं घर-घर तो जा नहीं सकती। घर-घर पुलिस भेजना भी संभव नहीं है। मैं आपके सामने एक उदाहरण रखती हूं। एक आदमी अपनी बेटी के साथ मेरे पास आया। उसने कहा कि इसका पति इसे रोज पीटता है। सास और जेठ भी मारते हैं। मैंने कहा कि बेटी को तलाक दिला दो, मैं तुम्हारी मदद करूंगी। उसने कहा हम तलाक नहीं चाहते हैं, कारण बेटी के दो बच्चे भी हैं। मैंने कहा कि बच्चों की देखभाल के लिए उसके पति को पैसे देने होंगे। इस पर लड़की के पिता ने कहा हमने लड़की की शादी पर बहुत पैसा खर्च किया है। मैंने कहा कि दहेज देकर शादी कराने के लिए पहले तुम्हें जेल भेजना पड़ेगा। तुम लोग पहले दहेज ले-देकर शादी करते हो। मारपीट के बावजूद लड़कियों को ससुराल भेजते हो? कानून कहां तक इस पर अंकुश लगाएगा? महिलाओं को खुद जागरूक होना होगा। अगर किसी के पास इसका हल है तो मुझे बताए।

आपकी रुचि पढ़ने में भी है?

मैं किताबें पढ़ने की बेहद शौकीन हूं। मैं एक साथ चार किताबें पढ़ती हूं। मेरी गाड़ी में हमेशा 20-25 से ज्यादा किताबें रहती हैं। मैं हर तरह की किताबें पढ़ती हूं।

ईश्वर में कितनी आस्था है?

सौ फीसदी। अपने आपमें मैं कुछ भी नहीं हूं।

खुद के बारे में एक वाक्य में क्या कहना चाहेंगी?

मैं नहीं कह पाऊंगी। मुझे नहीं लगता कि कोई व्यक्ति खुद को डिस्क्राइब कर सकता है। मैं आज जैसी हूं, कल वैसी नहीं रह सकती। वक्त और जरूरत के आधार पर खुद को बदलना पड़ता है। मेरे बारे में यह जरूर कहा जा सकता है- एक ऐसा व्यक्ति, जिसने बहुत परिश्रम किया है।

(स्मिता)


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