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एक और एक ग्यारह हैं हम

मैं निकल रही हूं सैलून के लिए। आप जल्दी से आ जाइए। कुछ प्रोडक्ट्स ऑर्डर करने हैं और दिनभर की अपॉइंटमेंट्स मैनेज करनी हैं। आज ब्राइडल की बुकिंग भी कुछ ज्यादा है। जल्दी आकर सब संभाल लीजिएगा।' अपने निर्देश उछालती हुई तेजी से निकल गई मेकओवर आर्टिस्ट साक्षी कुमार। वह चाह

By Edited By: Published: Sat, 07 Jun 2014 12:03 PM (IST)Updated: Sat, 07 Jun 2014 12:03 PM (IST)
एक और एक ग्यारह हैं हम

मैं निकल रही हूं सैलून के लिए। आप जल्दी से आ जाइए। कुछ प्रोडक्ट्स ऑर्डर करने हैं और दिनभर की अपॉइंटमेंट्स मैनेज करनी हैं। आज ब्राइडल की बुकिंग भी कुछ ज्यादा है। जल्दी आकर सब संभाल लीजिएगा।' अपने निर्देश उछालती हुई तेजी से निकल गई मेकओवर आर्टिस्ट साक्षी कुमार। वह चाहती थीं कि पति जल्दी से सैलून आ जाएं और दिनभर के काम को संभाल लें। पति के आ जाने पर उनको कोई चिंता नहीं रहती और वे दिल लगा कर काम करती हैं। क्लाइंट्स को पूरी तरह से संतुष्ट करती हैं। घर में खोले गए एक छोटे से ब्यूटी पार्लर ने साक्षी की लगन के कारण आज मेकओवर स्टूडियो की शक्ल धारण कर ली है। एक समय ऐसा भी आया कि जब बढ़ते काम को अकेले संभालना उनके लिए मुश्किल हो गया। ऐसे में पति ने अपनी जॉब छोड़कर उनका हाथ बंटाना शुरू कर दिया। अब उनके टैलेंट और पति के मैनेजमेंट से बिजनेस तेजी से बढ़ रहा है। वे जो भी फैसले लेती हैं, पति उन्हें पूरा करने में जुट जाते हैं। एक ही जगह काम करने से बच्चे और घर का काम भी आसानी से हो जाता है। बेशक वह बॉस हैं अपने सैलून की, लेकिन पति का सहयोग उन्हें तनावमुक्त रहकर काम करने की आजादी देता है।

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आज के परिवेश में महिला आधारित उद्यमों जैसे डांस-म्यूजिक स्कूल, किड्स प्ले स्कूल, फिटनेस सेंटर, इंग्लिश स्पीकिंग, ब्यूटी सैलून या बुटीक, यहां तक कि ऑनलाइन एंटरप्राइजेज आदि की कमी नहीं है। जब इनका दायरा फैलता है और मुनाफा बढ़ता है तो यकीनन एक पॉजिटिव सोच वाले भरोसेमंद साथी की जरूरत होती है और अगर वह जीवनसाथी ही हो तो राह आसान हो जाती है। उद्यम में बेशक पत्नी का स्वामित्व हो और पति वहां कर्मचारी हो, लेकिन उनके तालमेल, आर्थिक समीकरण, वित्तीय योजनाओं पर उनकी सोच प्रभावित नहीं होती है। भविष्य के सपनों को लेकर ख˜ी-मीठी नोक-झोंक हो जाती है, लेकिन हल भी आसानी से निकल जाते हैं।

उसका-मेरा नहीं, है हमारा

जालंधर के खुशी ब्यूटी पार्लर की संचालिका रुचि गुप्ता का काम जब ज्यादा बढ़ गया और उन्हें एक हेल्पिंग हैंड की जरूरत महसूस होने लगी तो उनके पति नवीन गुप्ता ने उनका हाथ बंटाने के लिए अपनी जॉब छोड़ दी और उनके साथ हो लिए। रुचि व खुद को एक और एक ग्यारह बताते हुए नवीन कहते हैं, 'बदलते समीकरण में जब पति-पत्नी दोनों ही गृहस्थी की गाड़ी के पहियों को मेहनत से खींचकर जिम्मेदारियां निभा रहे हों तो दोनों का महत्व बराबर है। अब इस दोपहिया वाहन में कौन-सा पहिया आगे है और कौन सा पीछे वाला, इससे फर्क नहीं पड़ता। हम अपने काम को 'उसका' या 'मेरा' नहीं, बल्कि 'हमारा' समझते हैं। पहले हम किराये के मकान में रहते थे और वहीं एक कमरे में पार्लर चलता था। धीरे-धीरे काम बढ़ने लगा तो मुझे भी यह बात समझ में आने लगी कि रुचि को मदद की जरूरत है। मैंने उनके बाहर के कामों में हाथ बंटाना शुरू किया। अब बाहर के सारे काम मैं संभाल लेता हूं, ताकि उन्हें पार्लर के लिए पूरा टाइम मिल सके।' अपने तालमेल को बेहतर बताते हैं नवीन। अब पार्लर में अपना पूरा ध्यान लगाती हैं रुचि और कहीं आने-जाने के काम को मैनेज कर लेते हैं नवीन। वह कहते हैं, 'होम सर्विस या किसी मैरिज पर मेकअप आदि के लिए बुकिंग हो तो भी पार्लर में काम करने वाली ब्यूटिशियन्स को वहां ले जाने व वापस लाने की जिम्मेदारी मेरी होती है। ऊपर वाले की कृपा तथा दोनों की मेहनत से आज अपना मकान, दो दुकानें, कार, सब कुछ है। घर के कामकाज, बच्चों की देखरेख में भी हम एक दूसरे की पूरी सहायता करते हैं। एक बिजी हो तो दूसरा घर पर बच्चों की देखभाल करता है। बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए हमने सोच-समझ कर ऐसा तालमेल बनाया है और वे भी इस बात को भली भांति समझते हैं।'

'ईगो' नहीं हमारी डिक्शनरी में

लखनऊ में एक राष्ट्रीयकृत बैंक में एसडब्ल्यूओ ('ए' कैटेगरी) पद पर कार्यरत हैं मोना शर्मा। उनके पति ओम शर्मा भी उसी बैंक की दूसरी शाखा में कार्यरत हैं। दोनों के बीच नौकरी को लेकर कभी अहं आड़े नहीं आया और न ही कभी घर-परिवार और दोस्तों के बीच इस तरह की कोई बात हुई कि कौन सीनियर और कौन जूनियर है। उनकी न्यूक्लियर फैमिली है, जिसमें पति व दो बच्चों के साथ बेहद खुश हैं। वह कहती हैं, 'लाइफ में कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं, जब परिवार या जॉब में किसी एक को प्राथमिकता देनी होती है। जीवन में एक नहीं कई बार ऐसे मौके आए जब हम दोनों को प्रमोशन के ऑफर मिले, लेकिन हमें बच्चों व एक दूसरे से दूर न होना पड़े, इसलिए हमने प्रमोशन स्वीकार नहीं किया। वर्ष 1989 में हमारी शादी ओम से हुई। शादी के पहले से ही हम दोनों बैंक में कार्यरत थे। हमारी डिक्शनरी में 'ईगो' शब्द की कोई जगह ही नहीं रही है। आज बेटी फैशन डिजाइनर और बेटा इंजीनियरिंग कर रहा है।' बैंक में जिम्मेदार अफसर और घर में पत्नी, मां व गृहिणी की भूमिका निभा रहीं मोना को हर काम में पति का भी भरपूर सहयोग मिलता हैं। उन्हें मैनेजर की पोस्ट के लिए प्रमोशन का ऑफर मिला था, लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा दिया। परिवार उनकी पहली प्राथमिकता है। वह कहती हैं, 'पति लाइफ पार्टनर ही नहीं, बल्कि एक अच्छे दोस्त भी हैं। वह अच्छे कुक भी हैं और अक्सर संडे या छुट्टी पर पूरे परिवार के लिए चाट और स्वादिष्ट व्यंजन तैयार करते हैं। भविष्य की आर्थिक योजनाओं को लेकर हम अपना नजरिया बच्चों के सामने भी रखते हैं और एक-दूसरे की भावनाओं व विचारों की बहुत कद्र करते हैं।'

(यशा माथुर)

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