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दोहों में जीवन दर्शन

आमतौर पर हिंदी साहित्य सृजन में अब दोहे कम लिखे जा रहे हैं। नए संकलन के रूप में अगर दोहे पढ़ने को मिलते भी हैं तो वे सीधे समाज से संवाद करते प्रतीत होते हैं। इसके विपरीत प्रकाशन संस्थान, दिल्ली से प्रकाशित आ'ार्य अरुण दिवाकर नाथ बाजपेयी के दोहों का संकलन वाकई में शब्द गुंफन की विलक्षणता समेटे है।

By Edited By: Published: Wed, 17 Sep 2014 05:00 PM (IST)Updated: Wed, 17 Sep 2014 05:00 PM (IST)
दोहों में जीवन दर्शन

आमतौर पर हिंदी साहित्य सृजन में अब दोहे कम लिखे जा रहे हैं। नए संकलन के रूप में अगर दोहे पढ़ने को मिलते भी हैं तो वे सीधे समाज से संवाद करते प्रतीत होते हैं। इसके विपरीत प्रकाशन संस्थान, दिल्ली से प्रकाशित आचार्य अरुण दिवाकर नाथ बाजपेयी के दोहों का संकलन वाकई में शब्द गुंफन की विलक्षणता समेटे है। 'अरुण सतसई' नामक इस कृति का हर एक दोहा रीतिकालीन कवि बिहारी की रचनाओं की तरह ही जीवन के कई भावों को उद्धृत करता है। संप्रति हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य अरुण दिवाकर नाथ बाजपेयी ने जिंदगी को जैसा जिया और भोगा, उसे पूरी ईमानदारी से दोहों में वैसे ही उतारा भी है। अर्थ गांभीर्य, भावछाया, सृजेता की मौलिक सोच, विचारशीलता और शिल्पज्ञता इस कृति को एक अलग आयाम देती है। साहित्य प्रेमियों को इस पुस्तक का हर एक दोहा चिंतन करने का पूरा मौका देगा!

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