डेढ़ वर्ष से स्कूल भवन में लटकी है अभागे की लाश
मौताणे पर सहमति नहीं बनने पर करीब डेढ़ वर्ष बाद भी मृतक को मुक्ति नहीं मिल पाई। युवक की मौत मई 2014 में हुई थी।
जयपुर। मौताणे (दाह संस्कार एवं मृत्यु भोज के लिए पैसा लेने) पर सहमति नहीं बनने पर करीब डेढ़ वर्ष बाद भी मृतक को मुक्ति नहीं मिल पाई। युवक की मौत मई 2014 में हुई थी। मृत्यु के बाद से शव राजस्थान के उदयपुर जिले में मांडवा पुलिस थाना क्षेत्र से सटी गुजरात सीमा के निचली आंजणी गांव के खंडहर हो चुके सरकारी स्कूल के पुराने भवन में लटका हुआ है। कंकाल में तब्दील हो रहा शव आधा ही बचा है।
इसे कपड़े की पोटली में बांधकर लटकाया गया है। इधर, परिजन अब तक मौताणे के लिए अड़े हैं और आरोपित पक्ष के गांव वाले आरोपों को सिरे से नकारते हुए खर्च नहीं देने पर अड़े हुए हैं। गुजरात के आंजणी गांव निवासी मृतक अजमेरी (36) को लेकर यह कशमकश चल रही है। उसके भाई पोपट ने बताया कि पिछले वर्ष मई में अजमेरी अपनी बहन से मिलने गुजरात से सटी राजस्थान सीमा के बूझा गांव गया था। तीन दिन बाद नहीं लौटा तो तलाश शुरू की गई। एक माह बाद मवेशी चराने गए गांव के लोगों ने पास की पहाड़ी पर शव मिलने की सूचना दी, जो आधा कटा था। शव का निचला हिस्सा सड़-गल चुका था।
परिजन और ग्रामीण शव को कपड़े की पोटली में बांधकर गांव ले आए। परिजनों ने राजस्थान के बूझा गांव के ग्रामीणों पर हत्या का आरोप लगाते हुए मौताणे की मांग की। बूझा के लोगों ने हत्या में अपनी भूमिका नहीं होना बताते हुए मौताणे देने से इन्कार कर दिया। परिजनों ने शव की पोटली पहाड़ी पर गांव के स्कूल भवन में लटका दी। यह प्रकरण गुजरात और राजस्थान पुलिस के बीच है, जिसका पता होने के बावजूद जाप्ता आदिवासियों के रिवाज मौताणे के आगे बेबस बना हुआ है।
आंजणी गांव गुजरात के पोशीना पुलिस थाना क्षेत्र में आता है। अजमेरी वहीं का रहने वाला था, लेकिन बूझा गांव राजस्थान के मांडवा पुलिस थाना क्षेत्र में है, जहां उसका शव मिला। मौताणे के लिए बार-बार दबाव बनाने पर बूझा वासियों ने उदयपुर जिले के कोटड़ा एसीजेएम कोर्ट में इस्तगासा पेश किया। कार्रवाई की हिदायत पर पुलिस इसे सुलझाने में जुटी है। आंजणी के लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया है।
यह होता है मौताणे
राजस्थान और गुजरात के आदिवासियों में किसी किसी की हत्या होने पर आरोपी के पूरे गांव से दाह संस्कार एवं मृत्यु भोज के लिए पैसा लिया जाता है। इसे ही मौताणे कहा जाता है।