अजमेर दरगाह में उर्स का झंडा कल
अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में 803वें उर्स की औपचारिक शुरुआत बुधवार को झंडे की रस्म के साथ होगी। भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी का परिवार ख्वाजा साहब की दरगाह स्थित ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे पर झंडे की रस्म अदा करेगा।
जयपुर, जागरण संवाद केंद्र। अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में 803वें उर्स की औपचारिक शुरुआत बुधवार को झंडे की रस्म के साथ होगी। भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी का परिवार ख्वाजा साहब की दरगाह स्थित ऐतिहासिक बुलंद दरवाजे पर झंडे की रस्म अदा करेगा। गौरी परिवार सोमवार सुबह ही झंडा लेकर भीलवाड़ा से अजमेर के लिए रवाना हो गया। उर्स की विधिवत शुरुआत रजब का चांद दिखाई देने पर 19 या 20 अप्रैल को होगी। झंडे की रस्म की परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है।
जानकारी के अनुसार वर्ष 1928 से उनके पीरो मुर्शीद अब्दुल सत्तार बादशाह झंडे की रस्म अदा करते थे। बाद में 1944 से उनके दादा लाल मोहम्मद गौरी को यह जिम्मेदारी सौंपी गई। उनके इंतकाल के बाद 1991 से पुत्र मोईनुद्दीन गौरी यह रस्म निभाने लगे और वर्ष 2007 से फखरुद्दीन इस रस्म को अदा कर रहे है।
बताया जाता है कि वर्षों पहले जब झंडे की रस्म शुरू हुई, तब बुलंद दरवाजे पर चढ़ाया गया झंडा आस-पास के गांवों तक नजर आता था। उस वक्त मकान छोटे-छोटे थे और बुलंद दरवाजा काफी दूर से नजर आता था। इस दरवाजे पर झंडा देखकर ही लोग समझ जाते थे कि पांच दिन बाद गरीब नवाज का उर्स शुरू होने वाला है। यह संदेश एक से दूसरे तक दूर-दूर तक पहुंच जाता था।