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झोली खाली सांझी रसोई की, मदद का इंतजार

मनदीप कुमार, संगरूर : जरूरतमंद को 10 रुपये में भरपेट खाना मुहैया करवाने के लिए राज्य भ

By JagranEdited By: Published: Thu, 06 Jul 2017 06:22 PM (IST)Updated: Thu, 06 Jul 2017 06:22 PM (IST)
झोली खाली सांझी रसोई की, मदद का इंतजार
झोली खाली सांझी रसोई की, मदद का इंतजार

मनदीप कुमार, संगरूर :

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जरूरतमंद को 10 रुपये में भरपेट खाना मुहैया करवाने के लिए राज्य भर में सरकार ने सांझी रसोई खोलने का अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बेशक शुरू कर दिया है, लेकिन फंड मुहैया नहीं करवाने की वजह से सरकार का यह प्रोजेक्ट अधिक दिन चलता दिखाई नहीं दे रहा है। रसोई घर का खर्च दिनों दिन बढ़ रहा है, लेकिन यह बढ़ता खर्च उठाने के लिए न तो प्रशासन के पास कोई पुख्ता साधन हैं और न ही सरकार उन्हें कोई फंड मुहैया करवा रही है। पहली जुलाई से संगरूर में आरंभ हुई मेहर रसोई की बात करें तो आरंभ होने के पहले एक सप्ताह में ही रसोई घर हर दिन करीब 2500 रुपये के घाटे पर चल रही है। बेशक अभी तक प्रशासन इस घाटे पर अपनी जुबान खोलने को तैयार नहीं है, लेकिन पर्याप्त फंड के प्रबंध नहीं होने से प्रशासन के लिए भी इस बोझ को उठा पाना आसान नहीं होगा।

उल्लेखनीय है कि पहली जुलाई को संगरूर शहर में मेहर रसोई के नाम पर रसोई घर की स्थापना की गई है। पांच कुक वर्कर महिलाएं यहां सब्जी-रोटी बनाने का कार्य कर रही हैं। पहले दिन जहां रसोई घर में खाना खाने के लिए आने वाले व्यक्तियों से 12 रुपये प्रति थाली खाना व चाय कप के वसूल किए गए, वहीं अब 10 रुपये थाली में लोगों को चार रोटी व सब्जी परोसी जा रही है। पहले दिनों में दो-दो सब्जी जहां थाली में दी जा रही थी वहीं वीरवार को रोटी के साथ केवल एक सब्जी ही दी गई है। ऐसे में 10 रुपये की थाली मुहैया करवा पाने में रेडक्रास सहित प्रशासन के पसीने छूटने लगे हैं।

लागत अधिक तथा वसूली हो रही कम

10 रुपये की थाली मुहैया करवाने को चलाई रसोई हर दिन लगातार घाटे में चल रही है। घाटे का आलम यह है कि रसोई पर कुक की तनख्वाह से लेकर राशन इत्यादि के खर्च भी पूरे नहीं हो रहे हैं। रसोई में वीरवार को 252 व्यक्तियों ने दोपहर के समय खाना खाया, जिससे रसोई घर को 2520 रुपये की कमाई हुई, ¨कतु खाना बनाने पर रखी पांच कुक वर्कर हर दिन करीब आठ घंटे काम करके 1400 रुपये से अधिक की मजदूरी हासिल कर रही हैं। इसके अलावा हर दिन का राशन, सब्जी, गैस सिलेंडर व बिजली का खर्च अलग से रेडक्रास पर पड़ रहा है। ऐसे में रसोई घर अभी तक अपना खर्च खुद उठाने के काबिल भी नहीं हो पाई है।

प्रभावित हो रहा है कामकाज

रेडक्रास के मुलाजिम ही रसोई के सभी प्रबंधों पर नजर रखें हुए हैं। रेडक्रास के एकाउंटेंट सुमेश गोयल को रसोई के प्रबंधों की कमान दी गई है। दफ्तर के करीब छह मुलाजिम रसोई घर के प्रबंधों पर दिन भर जुटे रहते हैं। ऐसे में कंडक्टरों को ट्रे¨नग देने से लेकर एकाउंटेंट का दफ्तरी कामकाज पूरी तरह से प्रभावित हो चुका है। सरकार ने रसोई घर स्थापित किया, लेकिन स्टाफ का प्रबंध करने की बजाए रेडक्रास के मुलाजिमों पर ही अतिरिक्त बोझ डाला जा रहा है, जिसके चलते कार्यालय के कामकाज प्रभावित हो रहा है।

बढ़ रही खाना खाने के लिए आने वालों की तादाद

पहली जुलाई को जहां रसोई घर में 132 व्यक्ति खाना खाने के लिए पहुंचे, वहीं 3 जुलाई को 172, 4 जुलाई को 221, 5 जुलाई को 306, 6 जुलाई को 252 व्यक्तियों ने रसोई घर से फायदा लिया। खाना खाने आए राम लाल, प्रदीप ¨सह, मुकेश, जुगनू दीप, संदीप कुमार, सलीम खान ने बताया कि यह योजना गरीब लोगों का पेट भरने के लिए बेहद फायदेमंद है। मजदूरी का काम करने की वजह से दोपहर के समय उन्हें खाना बनाने का समय नहीं मिलता था, जिस कारण ढाबे पर महंगे दाम की रोटी खानी पड़ती थी, लेकिन अब मात्र 10 रुपये में पेटभर खाना मिलता है।

लोग दें सहयोग तो बेहतर बनाएंगे : प्रबंध

रसोई घर की नोडल अफसर सहायक कमिश्नर दीपजोत कौर ने स्वीकार किया कि रसोई घर में लागत के बराबर बेशक आमदन नहीं हो रही है, लेकिन सरकार ने इसे फायदे के मद्देनजर नहीं चलाया है। रेडक्रास के फंड से इसका प्रबंध चलाया जा रहा है। जल्द ही इसके खर्चे को चलाने के लिए पर्याप्त प्रबंध किए जाएंगे। दानी लोग यदि इसके लिए अपना सहयोग देंगे तो इसे और बेहतर बनाया जा सके।


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