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बांझपन दूर करने में दक्षता

By Edited By: Published: Mon, 22 Sep 2014 02:31 AM (IST)Updated: Mon, 22 Sep 2014 01:02 AM (IST)
बांझपन दूर करने में दक्षता

हरिंदर पाल निक्का, बरनाला

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'चुनौतीपूर्ण कार्य करने की रूची थी और डॉक्टर बनने का ख्वाब भी मन में पनप रहा था। परिजनों की इच्छा भी यही थी कि उनकी बेटी एक अच्छी डॉक्टर बने। कड़ी मेहनत, लगन व कुशल मार्गदर्शन से मुझे निराशा के आलम में जी रही सैकड़ों महिलाओं की गोद भरने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।' यह कहना है बांझपन दूर करने में दक्षता हासिल कर चुकी प्रसिद्ध महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. अनुराधा सूद का।

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यमुनानगर में की प्रारंभिक पढ़ाई

मूंछ न कटवाने के ईवज में अंग्रेज शासक को जुर्माना अदा करने वाले क्षेत्र के प्रसिद्ध हलवाई साधू सूद के बेटे कुलदीप सूद के बेटे डॉ. राजवंश सूद की पत्नी अनुराधा का जन्म हरियाणा के यमुनानगर शहर के रहने वाले दौलत राम डाबरा के घर मां शोभा डाबरा की कोख से वर्ष 1981 में परिवार की शोभा बढ़ाने वाली बेटी के रूप में हुआ। पहली से दसवीं तक की शिक्षा सेक्रेड हार्ट कान्वेंट स्कूल यमुनानगर से तथा +1 व + 2 संत निश्चल सिंह पब्लिक स्कूल यमुनानगर से प्राप्त की। वर्ष 2000 में पीएमईटी पास कर डॉक्टर बनने की ओर पहला कदम रखा। महाराष्ट्र के भारतीय विद्यापीठ मेडिकल कॉलेज पूणा से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त कर सिविल अस्पताल अंबाला से एक साल की इंटरनशिप ट्रेनिंग प्राप्त की। मुंबई के महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज से गायनी की पोस्ट ग्रेजुऐशन तथा कस्तूरबा दादा देव सरकारी अस्पताल दिल्ली से सीनियर रेजीडेंसी की पढ़ाई पूरी की। बांझपन के कारण व इलाज जानने की फैलोशिप 21 सैंचुरी अस्पताल सूरत से हासिल की। अब अनुराधा, साधू सूद नगर बरनाला में अपने पति के साथ निजी अस्पताल में प्रेक्टिस कर रही है।

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-डॉ. राजवंश सूद बने हमसफर

वर्ष 2008 में डॉ. अनुराधा की शादी डॉ. राजवंश सूद से हुई। शादी के बाद घर की बगिया में दो फूल बेटी परनिका व बेटा कृषांग खिले। डॉ. अनुराधा बताती हैं कि जब ऑपरेशन के बाद उनके बेटा पैदा हुआ, तब एक महिला जिसकी शादी के पांच वर्ष बाद मेरे इलाज से बेटा पैदा हुआ था, वह मिलने की जिद लेकर मेरे पास धन्यवाद करने पहुंची। उसे देखकर मेरी खुशी दोगुनी हो गई।

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दो जिंदगियों की रहती है जिम्मेवारी

डॉ. अनुराधा बताती हैं कि बच्चा होने से पूर्व होने वाली जनन पीड़ा किसी को बता कर नहीं उठती हैं। इसलिए जब कोई मरीज देर रात को भी उनके दरवाजे पर दस्तक देता है, तो भी तुरंत उठकर इलाज में जुट जाना पड़ता है, ताकि बच्चे व मां को सुरक्षित रखा जा सके। डॉ. सूद कहती हैं कि भले ही हर डॉक्टर के हाथ एक मरीज की जिंदगी होती है। मगर, महिला रोग विशेषज्ञ के हाथ एक ही मौके पर दो जिंदगी सुरक्षित रखने की जिम्मेवारी रहती है। चूंकि पलक झपकते हुई मामूली सी लापरवाही भी मां व बच्चे के लिए जानलेवा हो सकती है।

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बच्चे के बाद होता है मां का जन्म

डॉ. अनुराधा बताती हैं कि भले ही मां ही बच्चे को जन्म देती है। मगर, दरअसल मां का जन्म भी तो बच्चा पैदा होने के बाद ही होता है। जो महिला बच्चा पैदा नहीं कर पाती, उसे कोई मां नहीं बोलता है। ऐसे में साफ है कि मां का जन्म ही बच्चे के बाद होता है।

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पुरुष में ही होती है बेटा पैदा करने की क्षमता

डॉ. अनुराधा बताती हैं कि भले ही समाज की मान्यता है कि बेटा न होने के लिए महिला जिम्मेवार है। मगर, सच्चाई इससे बिलकुल उलट है। बेटा पैदा करने की शक्ति पुरुष में ही होती है न की महिला में। महिला में एक्स-एक्स क्रोमोसोम तथा पुरुष में एक्स-वाई क्रोमोसोम होते हैं। बेटा होने के लिए पुरुष के वाई क्रोमोसोम का महिला के एक्स क्रोमोसोम से मिलना जरूरी होता है। इसलिए बेटा न होने का इलजाम महिला पर मढ़ देना कदाचित उचित नहीं है।

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भरोसा करने पर ही इलाज संभव

डॉ. अनुराधा बताती हैं कि इलाज के लिए मरीज का डॉक्टर पर भरोसा होना जरूरी है। अगर मरीज का भरोसा डॉक्टर पर नहीं रहेगा, तो इलाज ही संभव नहीं है। इसलिए भले ही मरीज किसी भी डॉक्टर से अपना इलाज करवाए, परंतु वह उस पर भरोसा अवश्य रखे।


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