पिता के जाने के बाद हुआ दायित्वों का एहसास
संवाद सहयोगी, रूपनगर पिता जब दुनिया से सदा के लिए चला जाता है तभी परिवार के दायित्वों का एहसास होत
संवाद सहयोगी, रूपनगर
पिता जब दुनिया से सदा के लिए चला जाता है तभी परिवार के दायित्वों का एहसास होता है। यही नहीं पिता की कमी, पिता का प्यार, स्नेह तथा परिवार के लिए उनके द्वारा अपने सुखों को त्याग कर की गई कुबार्नियों का एहसास भी पिता के जाने के बाद ही होता है। मैने तो अभी जवानी की दहलीज पर कदम ही रखा था कि मेरे पिता स्वर्गीय दर्शन ¨सह एक सड़क हादसे का शिकार हो गए तथा हम सभी को बिलखता हुआ छोड़ सदा के लिए इस संसार से चले गए। हालांकि माता ने अपने प्यार व दायित्व से हमें पाला-पोसा व इस योग्य बनाया कि आज हम अपने परिवार को चलाने के योग्य हो गए हैं। लेकिन समाज में जो मुझे व मेरे पूरे परिवार को इज्जत मिल रही है वो पिता द्वारा दिए गए संस्कारों की देन है। पिता कहा करते थे कि हर किसी से मिलकर रहो, बड़ों का सत्कार करो व जरूरतमंद लोगों की सहायता करो। आज मैं व मेरा परिवार पिता द्वारा दिए संस्कारों पर चलने का संकल्प लेते हुए उन्हें नमन करते हैं।
(समाज सेवक, सु¨रदर ¨सह, जिला रूपनगर)